ब्राह्मी की खेती
ब्राह्मी का बानस्पतिक नाम बैकोपा मोनिएरी है और यह सक्रोफुलेरीएसी प्रजाति से संबंध रखती है। औषधीय जगत में एक जड़ी बूटी के रूप में ब्राह्मी को अत्यधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है। ब्राह्मी जिसे अंग्रेजी में थाइम लिविड ग्रेटेयाला के नाम से जाना जाता है। जिसका वानस्पतिक नाम बाकोपा मोनीएरी है। यह पौधा स्क्रोफुलरियेसी कुल की सदस्य हैं। यह आमतौर पर गर्म और नमी वाले इलाकों में पायी जाती है। पूरी जड़ी बूटी, जैसे कि इसके बीज, जड़ें, पत्ते, गांठे आदि का प्रयोग अलग अलग तरह की दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। ब्राह्मी से तैयार दवाई कैंसर के विरूद्ध और अनीमिया, दमा, मूत्र वर्धक, रसौली और मिरगी आदि के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। इसका प्रयोग सांप के काटने पर भी इलाज के तौर पर भी किया जाता है। यह एक वार्षिक जड़ी बूटी है, जिसका कद 2-3 फीट होता है और इसकी जड़ें गांठों से फैली होती हैं। इसके फूलों का रंग सफेद या पीला-नीला होता है और फल छोटे और अंडाकार होते हैं। इसके बीजों का आकार 0.2-0.3 मि.ली. और रंग गहरा-भूरा होता है। उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत, एशिया और अफ्रीका आदि ब्राह्मी पैदा करने वाले मुख्य देश हैं।
क्षेत्रीय नाम
संस्कृत- किनीर ब्रह्मी, हिंदी- ब्रह्मी, मराठी, तमिल एवं मलयालम- निर ब्रह्मी, कन्नड़- निरुब्रह्मी, बंगाली- जलनीम, अंग्रेजी थाइम लीवड ग्रेटेयाला।
मिट्टी
इसे बहुत तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। ब्राह्मी की खेती के लिए दोमट, रेतीली, हल्की काली मिट्टी उपयोगी होती है। साथ ही शीत प्रधान एवं आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं। यह सैलाबी दलदली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। इसे दलदली इलाकों, नहरों और अन्य जल स्त्रोतों के पास उगाया जा सकता है। इसके अच्छे विकास के लिए इसे तेजाबी मिट्टी की जरूरत होती है।
ज़मीन की तैयारी
ब्राह्मी की खेती के लिए, भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए, खेत को जोतें और फिर हैरों का प्रयोग करें। जब ज़मीन को प्लाटों में बदल दिया जाये तो तुरंत सिंचाई करें। जोताई करते समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
बिजाई का समय
इसकी बिजाई मध्य जून या जुलाई महीने के शुरू में कर लेनी चाहिए।
फासला
पनीरी वाले पौधों का रोपण् 20x20 सैं.मी. के फासले पर करें।
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मुख्य खेत में पनीरी लगा कर की जाती है।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए लगभग 25000 कटे हिस्सों की जरूरत होती है।
खाद
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA SSP MURIATE OF POTASH
87 150 40
तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 24 24
खेत की तैयारी के समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और अच्छी तरह मिट्टी में मिलायें। इसके इलावा नाइट्रोजन 40 किलो (87 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 24 किलो (40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस और पोटाश को शुरूआती खाद के तौर पर डालें और नाइट्रोजन को 3 हिस्सों में डालें। पहला हिस्सा बिजाई के 30 दिन बाद, फिर दूसरा हिस्सा 60-70 दिन बाद और तीसरा हिस्सा 90 दिनों के बाद डालें।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए हाथों से गोडाई करें। पहली गोडाई पनीरी लगाने के 15-20 दिनों के बाद और फिर दूसरी गोडाई 2 महीनों के फासले पर करें।
सिंचाई
यह वर्षा ऋतु की फसल है, इसलिए इसे वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद तुरंत पानी की आवश्यकता होती है। सर्दियों में 20 और गर्मियों में 15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें।
हानिकारक कीट और रोकथाम
घास का टिड्डा: यह कीट हरे पौधे खाते हैं। यह पत्तों और पौधे के हिस्सों को नष्ट कर देते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए नुवोक्रोन 0.2 % या नीम से बने कीटनाशकों की स्प्रे करें।
फसल की कटाई
पनीरी लगाने के 5-6 महीने बाद पौधा उपज देनी शुरू कर देता है। इसकी कटाई अक्तूबर-नवंबर महीने में की जाती है। कटाई के लिए पौधे का जड़ से ऊपर वाला हिस्सा जो कि 4-5 सैं.मी. होता है, को काटा जाता है। एक वर्ष में 2-3 कटाई की जा सकती है।
कटाई के बाद
कटाई के बाद ताजी सामग्री को छांव में सुखाया जाता है। फिर लंबी दूरी पर ले जाने के लिए हवा-मुक्त पैकटों में पैक कर लिया जाता है। इस सूखी हुई सामग्री से बहुत सारे उत्पाद जैसे कि ब्राह्मीघृतम, सरस्वतरिस्तम, ब्राह्मीताइलम, मिसराकसनिहाम, मैमरी पलस आदि तैयार किए जाते हैं।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Pragyashakti: यह किस्म सी आई एम ए पी, लखनऊ की तरफ से तैयार की गई है। इस किस्म में 1.8-2 प्रतिशत बैकोसाइड होता है और यह ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए प्रयोग की जाती है।
Subodhak: इस किस्म को भी सी आई एम ए पी, लखनऊ की तरफ से तैयार किया गया है। इस किस्म में 1.8-2 प्रतिशत बैकोसाइड होता है और यह ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए प्रयोग की जाती है।
ब्राह्मी का बानस्पतिक नाम बैकोपा मोनिएरी है और यह सक्रोफुलेरीएसी प्रजाति से संबंध रखती है। औषधीय जगत में एक जड़ी बूटी के रूप में ब्राह्मी को अत्यधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है। ब्राह्मी जिसे अंग्रेजी में थाइम लिविड ग्रेटेयाला के नाम से जाना जाता है। जिसका वानस्पतिक नाम बाकोपा मोनीएरी है। यह पौधा स्क्रोफुलरियेसी कुल की सदस्य हैं। यह आमतौर पर गर्म और नमी वाले इलाकों में पायी जाती है। पूरी जड़ी बूटी, जैसे कि इसके बीज, जड़ें, पत्ते, गांठे आदि का प्रयोग अलग अलग तरह की दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। ब्राह्मी से तैयार दवाई कैंसर के विरूद्ध और अनीमिया, दमा, मूत्र वर्धक, रसौली और मिरगी आदि के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। इसका प्रयोग सांप के काटने पर भी इलाज के तौर पर भी किया जाता है। यह एक वार्षिक जड़ी बूटी है, जिसका कद 2-3 फीट होता है और इसकी जड़ें गांठों से फैली होती हैं। इसके फूलों का रंग सफेद या पीला-नीला होता है और फल छोटे और अंडाकार होते हैं। इसके बीजों का आकार 0.2-0.3 मि.ली. और रंग गहरा-भूरा होता है। उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत, एशिया और अफ्रीका आदि ब्राह्मी पैदा करने वाले मुख्य देश हैं।
क्षेत्रीय नाम
संस्कृत- किनीर ब्रह्मी, हिंदी- ब्रह्मी, मराठी, तमिल एवं मलयालम- निर ब्रह्मी, कन्नड़- निरुब्रह्मी, बंगाली- जलनीम, अंग्रेजी थाइम लीवड ग्रेटेयाला।
मिट्टी
इसे बहुत तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। ब्राह्मी की खेती के लिए दोमट, रेतीली, हल्की काली मिट्टी उपयोगी होती है। साथ ही शीत प्रधान एवं आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं। यह सैलाबी दलदली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। इसे दलदली इलाकों, नहरों और अन्य जल स्त्रोतों के पास उगाया जा सकता है। इसके अच्छे विकास के लिए इसे तेजाबी मिट्टी की जरूरत होती है।
ज़मीन की तैयारी
ब्राह्मी की खेती के लिए, भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए, खेत को जोतें और फिर हैरों का प्रयोग करें। जब ज़मीन को प्लाटों में बदल दिया जाये तो तुरंत सिंचाई करें। जोताई करते समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
बिजाई का समय
इसकी बिजाई मध्य जून या जुलाई महीने के शुरू में कर लेनी चाहिए।
फासला
पनीरी वाले पौधों का रोपण् 20x20 सैं.मी. के फासले पर करें।
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मुख्य खेत में पनीरी लगा कर की जाती है।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए लगभग 25000 कटे हिस्सों की जरूरत होती है।
खाद
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA SSP MURIATE OF POTASH
87 150 40
तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 24 24
खेत की तैयारी के समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और अच्छी तरह मिट्टी में मिलायें। इसके इलावा नाइट्रोजन 40 किलो (87 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 24 किलो (40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस और पोटाश को शुरूआती खाद के तौर पर डालें और नाइट्रोजन को 3 हिस्सों में डालें। पहला हिस्सा बिजाई के 30 दिन बाद, फिर दूसरा हिस्सा 60-70 दिन बाद और तीसरा हिस्सा 90 दिनों के बाद डालें।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए हाथों से गोडाई करें। पहली गोडाई पनीरी लगाने के 15-20 दिनों के बाद और फिर दूसरी गोडाई 2 महीनों के फासले पर करें।
सिंचाई
यह वर्षा ऋतु की फसल है, इसलिए इसे वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद तुरंत पानी की आवश्यकता होती है। सर्दियों में 20 और गर्मियों में 15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें।
हानिकारक कीट और रोकथाम
घास का टिड्डा: यह कीट हरे पौधे खाते हैं। यह पत्तों और पौधे के हिस्सों को नष्ट कर देते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए नुवोक्रोन 0.2 % या नीम से बने कीटनाशकों की स्प्रे करें।
फसल की कटाई
पनीरी लगाने के 5-6 महीने बाद पौधा उपज देनी शुरू कर देता है। इसकी कटाई अक्तूबर-नवंबर महीने में की जाती है। कटाई के लिए पौधे का जड़ से ऊपर वाला हिस्सा जो कि 4-5 सैं.मी. होता है, को काटा जाता है। एक वर्ष में 2-3 कटाई की जा सकती है।
कटाई के बाद
कटाई के बाद ताजी सामग्री को छांव में सुखाया जाता है। फिर लंबी दूरी पर ले जाने के लिए हवा-मुक्त पैकटों में पैक कर लिया जाता है। इस सूखी हुई सामग्री से बहुत सारे उत्पाद जैसे कि ब्राह्मीघृतम, सरस्वतरिस्तम, ब्राह्मीताइलम, मिसराकसनिहाम, मैमरी पलस आदि तैयार किए जाते हैं।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Pragyashakti: यह किस्म सी आई एम ए पी, लखनऊ की तरफ से तैयार की गई है। इस किस्म में 1.8-2 प्रतिशत बैकोसाइड होता है और यह ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए प्रयोग की जाती है।
Subodhak: इस किस्म को भी सी आई एम ए पी, लखनऊ की तरफ से तैयार किया गया है। इस किस्म में 1.8-2 प्रतिशत बैकोसाइड होता है और यह ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए प्रयोग की जाती है।
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