अनार की खेती
अनार पौष्टिक गुणों से परिपूर्ण, स्वादिष्ट, रसीला एवं मीठा फल है। अनार का रस स्वास्थ्यवर्धक तथा स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है। अनार का पौधा तीन-चार साल में पेड़ बनकर फल देने लगता है और एक पेड़ करीब 25 वर्ष तक फल देता है। साथ ही अब तक के अनुसंधान के मुताबिक प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए अगर दो पौधों के बीच की दूरी को कम कर दिया जाए तो प्रति पेड़ पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन ज्यादा पेड़ होने के कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादन करीब डेढ़ गुना हो जाता है। परंपरागत तरीके से अनार के पौधों की रोपाई करने पर एक हैक्टेयर में 400 पौधे ही लग पाते हैं जबकि नए अनुसंधान के अनुसार पांच गुणा तीन मीटर में अनार के पौधों की रोपाई की जाए तो पौधों के फलने-फूलने पर कोई असर नहीं पड़ेगा और एक हैक्टेयर में छह सौ पौधे लगने से पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ जाएगी।
जलवायु
शुष्क एवं अर्ध-शुष्क जलवायु अनार उत्पादन के लिए बहुत ही उपयुक्त होती है। पौधों में सूखा सहन करने की अत्यधिक क्षमता होती है परन्तु फल विकास के समय नमी आवश्यक है। अनार के पौधों में पाला सहन करने की भी क्षमता होती है। फलों के विकास में रात में समय ठण्डक तथा दिन में शुष्क व गर्म जलवायु काफी सहायक होती है। ऐसी परिस्थितियों में दानों का रंग गहरा लाल तथा स्वाद मीठा होता है। वातावरण एवं मृदा में नमी के अत्यधिक उतार-चढ़ाव से फलों में फटने की समस्या बढ़ जाती है तथा उनकी गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
भूमि
अनार का बाग लगाने के लिए 7 से 8 पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसके पौधों में लवण एवं क्षारीयता सहन करने की भी क्षमता होती है। अतः क्षारीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। यही नहीं लवणीय पानी से सिंचाई करके भी अनार की अच्छी पैदावार ली जा सकती है।
पौध तैयार करना
सख्त काष्ठ कलम अनार के वानस्पतिक प्रवर्धन की सबसे आसान तथा व्यवसायिक विधि है । कलमें तैयार करने के लिए एक वर्षीय पकी हुई टहनियों को चुनते हैं । टहनियों की जब वार्षिक काट-छाँट होती है, उस समय लगभग 15-20 से.मी. लम्बी स्वस्थ कलमें, जिनमें 3-4 स्वस्थ कलियाँ मौजूद हों, को काट कर बंडल बना लेते हैं। ऊपर का कटाव आँख के 5.5 से.मी. ऊपर व नीचे का कटाव आँख के ठीक नीचे करना चाहिए । पहचान के लिए कलम का ऊपरी कटाव तिरछा व नीचे का कटाव सीधा बनाना चाहिए । तत्पश्चात कटी हुई कलमों को 0.5 प्रतिशत कार्बेंडाजिम या काॅपर आक्सीक्लोराइड के घोल में भिगो लेना चाहिए तथा भीगे हुए भाग को छाया में सुखा लेना चाहिए ।
कलमों को लगाने से पहले आधार भाग का 6 से.मी. सिरा 2000 पीपीएम ( 2 ग्राम/ली. ) आई.बी.ए. के घोल में 55 सैकण्ड के लिए उपचारित करें । इससे जड़ें शीघ्र फूट जाती हैं । कलमों को उपयुक्त मिश्रण से भरी हुई थैलियों में थोड़ा तिरछा करके रोपण कर देते हैं । कलम की लगभग आधी लम्बाई भूमि के भीतर व आधी बाहर रखते हैं । दो आँखे भूमि के बाहर व अन्य आँखें भूमि में गाड़ देनी चाहिए । कलम को गाड़ते समय यह ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि कलम कहीं उल्टी न लग जाए । कलमें लगाने के पश्चात् सिंचाई करें व उसके बाद नियमित सिंचाई करते रहना चाहिए । लगभग 2 महीने बाद अधिक बढ़ी हुई टहनियों की कटाई-छाटाई कर देनी चाहिए तथा समय-समय पर कृषि क्रियाएँ तथा छिड़काव आदि करते रहना चाहिए ।
शुष्क क्षेत्र के लिए अनार की उन्नत किस्में
क्षेत्र की जलवायु, मृदा एवं पानी की गुणवत्ता तथा बाजार मांग के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों का चुनाव अति महत्वपूर्ण है । राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्धशुष्क जलवायु के लिए जालोर सीडलैस, जी-137, पी-23, मृदुला, भगवा आदि किस्में अति उत्तम पायी गयी हैं । जालोर सीडलैस में जहाँ दाने मीठे तथा मुलायम होते हैं, वहीं जी-137 तथा पी-23 के फल बहुत ही आकर्षक तथा बड़े होते हैं तथा इनमें फटने की समस्या भी कम होती है । मृदुला, भगवा या सिंदूरी फलों का रंग गहरा चमकीला लाल होने की वजह से बाजार भाव काफी अच्छा रहता है ।
बाग की स्थापना
अनार का बगीचा लगाने के लिए रेखांकन एवं गड्डा खोदने का कार्य मई माह में संपंन कर लेना चाहिए । इसके लिए वर्गाकार या आयताकार विधि से 4 * 4 मीटर ( 625 पौधे प्रति हैक्टर ) या 5 * 3 मीटर ( 666 पौधे प्रति हैक्टर ) की दूरी पर, 60 * 60 * 60 सेमी आकार के गड्डे खोदकर 0.1 प्रतिशत कार्बेंडाजिम के घोल से अच्छी तरह भिगो देना चाहिए । तत्पश्चात 50 ग्राम प्रति गड्डे के हिसाब से कार्बोनिल चूर्ण व थिमेट का भुरकाव भी गड्डे भरने से पहले अवश्य करना चाहिए ।
जिन स्थानों पर बैक्टीरिल ब्लाइट की समस्या हो वहाँ प्रति गड्डे में 100 ग्राम कैल्शियम हाइपोक्लोराइट से भी उपचार करना चाहिए । ऊपरी उपजाऊ मिट्टी में 10 कि.ग्रा. सड़ी गोबर या मींगनी की खाद, 2 कि.ग्रा. वर्मीकम्पोस्ट, 2 कि.ग्रा. नीम की खली तथा यदि संभव हो तो 25 ग्राम ट्राइकोडरमा आदि को मिलाकर गड्डों को ऊपर तक भर कर पानी डाल देना चाहिए जिससे मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए । पौध रोपण से एक दिन पहले 100 ग्राम नत्रजन, 50 ग्राम फाॅस्फोरस तथा 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्डों के हिसाब से डालने से पौधों की स्थापना पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है । पौध रोपण के लिए जुलाई-अगस्त का समय अच्छा रहता है । परन्तु पर्याप्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने पर फरवरी-मार्च में भी पौधे लगाये जा सकते हैं
पौधे लगाना
दूरी - 5x5 मीटरगड्ढे का आकार - 60x60x60 सें.मी.गड्ढे भराई का मिश्रण प्रत्येक गड्ढे में 5 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट अथवा 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद, आधा किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण को मिट्टी में मिलाकर भरना चाहिए। यदि तालाब की मिट्टी उपलब्ध हो तो उसकी भी कुछ मात्रा गड्ढे में डालनी चाहिए। गड्ढों को मानसून आने से पहले ही भर देना चाहिए। पौधे लगाने का कार्य जुलाई-अगस्त अथवा फरवरी-मार्च में करना चाहिए।अन्तराशस्य - आरम्भ के तीन वर्षो तक बाग में सब्जियाँ जैसे मटर, ग्वार, चौलाई, बैंगन, टमाटर आदि ली जा सकती हैं।सधाई - अनार के पौधों को उचित आकार व ढाँचा देने के लिए स्थाई एवं काट-छाँट की नितान्त आवश्यकता होती है। एक स्थान पर चार तने रखकर अन्य शाखाओं को हटाते रहें।सिंचाई - अच्छी गुणवत्ता एवं अधिक फल उत्पादन के लिए गर्मी के मौसम में 7-10 दिन के अन्तराल पर तथा सर्दी में 15-20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फल विकास के समय वातावरण तथा मृदा में नमी का असंतुलन रहता है तो फल फट जाते हैं। इसके लिए फल विकास के समय भूमि तथा वातावरण से निरन्तर पर्याप्त नमी बनाये रखनी चाहिये।बहार नियंत्रण - अनार में वर्ष में तीन बार फूल आते हैं जिसे बहार कहते हैं।
1 अम्बे बहार (जनवरी-फरवरी)
2 मृग बहार (जून-जुलाई)
3 हस्त बहार (सितम्बर-अक्टूबर)
खाद एवं उर्वरक
उर्वरक एवं सूक्ष्म पोषक तत्व निर्धारित करने के लिए मृदा परीक्षण अति आवश्यक है । सामान्य मृदा में 10 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद, 250 ग्राम नाइट्रोजन, 125 ग्राम फास्फोरस तथा 125 ग्राम पोटेशियम प्रतिवर्ष प्रति पेड़ देना चाहिए । प्रत्येक वर्ष इसकी मात्रा इस प्रकार बढ़ाते रहना चाहिए कि पांच वर्ष बाद प्रत्येक पौधों को क्रमशः 625 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस तथा 250 ग्राम पोटेशियम दिया जा सके ।
शुरू में तीन वर्ष तक जब पौधों में फल नहीं आ रहे हों, उर्वरकों को तीन बार में जनवरी, जून तथा सितम्बर में देना चाहिए तथा चैथे वर्ष में जब फल आने लगे तो मौसम ( बहार ) के अनुसार दो बार में देना चाहिए । शुष्क क्षेत्रों में मृग बहार लेने की संस्तुति की जाती है । अतः गोबर की खाद व फाॅस्फोरस की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन व पोटाश की आधी मात्रा जुलाई में तथा शेष आधी अक्टूबर में पौधों के चारों तरफ एक से डेढ़ मीटर की परिधि में 15-20 से.मी. गहराई में डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए । अनार की खेती में सूक्ष्म तत्वों का एक अलग महत्व है इसके लिए जिंक सल्फेट ( 6 ग्रा./ली.), फेरस सल्फेट ( 4 ग्रा./ली.) या मल्टीप्लेक्स 2 मिली/लीटर का पर्णीय छिड़काव फूल आने तथा फल बनने के समय करना चाहिए ।
सिंचाई एवं जल प्रबंधन
अनार के सफल उत्पादन के लिए सिंचाई एवं महत्वपूर्ण कारक है । गर्मियों में 5-7 दिन, सर्दियों में 10-12 दिन तथा वर्षा ऋतु में 10-15 दिनों के अन्तराल पर 20-40 लीटर/पौधा सिंचाई की आवश्यकता होती है । अनार में टपक सिंचाई पद्धति अत्यधिक लाभप्रद है क्योंकि इससे 20-43 प्रतिशत पानी की बचत होती है । साथ ही 30-35 प्रतिशत उपज में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है तथा फल फटने की समस्या का भी कुछ सीमा तक समाधान हो जाता है । मृदा नमी को संरक्षित रखने के लिए काली पाॅलीथीन ( 150 गेज ) का पलवार बिछाना चाहिए तथा केओलीन के 6 प्रतिशत ( 6 ग्रा./ली.) घोल का पर्णीय छिड़काव करना काफी लाभप्रद रहता है ।
अनार की प्रमुख रोग
पत्ती एवं फल धब्बा रोग
इस रोग का प्रकोप अधिकतर मृगबहार की फसल में होता है। वर्षा ऋतु में अधिक नमी के कारण पत्तियों और फलों के ऊपर फफूँद के भूरे धब्बे दिखाई देते हैं जिससे रोगी पत्तियां गिर जाती हैं तथा फलों के बाजार मूल्य में गिरावट आ जाती है। फल सड़ने भी लगते हैं।
नियंत्रण
(1) बाग की समय-समय पर सफाई करते रहना चाहिए।
(2) रोगग्रसित फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
(3) मैन्कोजेब या जिनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 15-20 दिन के अन्तराल पर तीन-चार बार छिड़काव करना चाहिए।
पत्ती मोड़क (बरुथी)
इस रोग के प्रभाव से पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अक्सर पौधे की बढ़वार व फलन बुरी तरह प्रभावित होता है। यह रोग सितम्बर के महीने में अधिक फैलता है।
नियंत्रण
ओमाइट या इथियोन 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। 15 दिन के बाद दूसरा छिड़काव भी करना चाहिए।
तेलीय धब्बा रोग
यह अनार का सबसे भयंकर रोग है। इस रोग का प्रभाव पत्तियों, टहनियाँ व फलों पर होता है। शुरु में फलों पर भूरे-काले रंग के तेलीय धब्बे बनते हैं। बाद में फल फटने लगते हैं तथा सड़ जाते हैं। रोग के प्रभाव से पूरा बगीचा नष्ट हो जाता है।
नियंत्रण
कैप्टॉन 0.5 प्रतिशत या बैक्टीरीनाशक 500 पीपीएम का छिड़काव करना चाहिए और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम, स्टेªप्टो साइक्लिन 0.5 ग्राम का छिड़काव करें।
पर्ण एवं फल चित्ती रोग
इस रोग के नियंत्रण हेतु डाइथेन एम-45 या कैप्टान 500 ग्राम 200 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तराल में 3-4 बार छिड़काव करें।
प्रमुख कीट
तना छेदक
यह कीट पेड़ की छाल को खाता है तथा छिपने के लिए अन्दर शाखा में गहरे तक सुरंग बना लेता है। जिससे शाखा कभी-कभी कमजोर पड़ जाती हैं।
नियंत्रण
सूखी शाखाओं को काट कर जला देना चाहिए। सुरंग में 3 से 5 मिलीलीटर केरोसिन तेल डालें तथा सुरंग को गीली मिट्टी से बंद कर दें। क्यूनालफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर शाखाओं तथा डालियों पर छिड़कें।
अनार की तितली -
मादा तितली पुष्प कली पर अण्डे देती है। इनसे लटें निकल कर बनते हुए फलों में प्रवेश कर जाती हैं। फल को अन्दर ही अन्दर खाती हैं। फलस्वरुप फल सड़ कर गिर जाते हैं।
नियंत्रण
फल बनते समय कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।मिली बग - इसके अव्यस्क शिशु, प्रायः नवबर-दिसम्बर में बाहर निकल कर तने के सहारे चढ़ते हुए वृक्ष की कोमल टहनियों एवं फूलों पर एकत्रित हो जाते हैं तथा रस चूस कर नुकसान पहुँचाते हैं। इसके प्रकोप से फल नहीं बन पाते हैं। इसके द्वारा एक तरह का मीठा चिचिपा पदार्थ छोड़ा जाता है।
नियंत्रण
अगस्त-सितम्बर तक पेड़ के थांवले की मिट्टी को पलटते रहें जिससे अण्डे बाहर आकर नष्ट हो जायें। मिथाइल पैराथियॉन चूर्ण 50-100 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से थांवले में 10-25 सेन्टीमीटर की गहराई में मिलायें। शिशु कीट को पेड़ पर चढ़ने से रोकने के लिए नवम्बर में 30-40 सेन्टीमीटर चौड़ी 400 गेज एल्काथिन की पट्टी जमीन से 60 सेन्टीमीटर की ऊँचाई पर तने के चारों ओर लगाएं तथा इसके निचले 15-20 सेन्टीमीटर भाग तक ग्रीस का लेप करें। यदि पेड़ पर मिली चढ़ गयी हो तो इमिडोक्लोप्रिड 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर या डाईमिथोएट 30 ई सी 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
फल तोड़ाई एवं उपज
उचित देख रेख तथा उन्नत प्रबंधन अपनाने से अनार से चैथे वर्ष में फल लिया जा सकता है । परन्तु इसकी अच्छी फसल 6-7 वर्ष पश्चात ही मिलती है तथा 25-30 वर्ष तक अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है । एक विकसित पेड़ पर लगभग 50-60 फल रखना उपज एवं गुणवत्ता की दृष्टि से ठीक रहता है । एक हैक्टेयर में 600 पौधे लग पाते हैं इस हिसाब से प्रति हैक्टेयर 90 से 120 क्विंटल तक बाजार भेजने योग्य फल मिल जाते हैं । इस हिसाब से एक हैक्टेयर से 5-6 लाख रूपये सालाना आय हो सकती है । लागत निकालने के बाद भी लाभ आकर्षक रहता है ।
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