Tuesday, 7 May 2019

शतावरी
सतावर जड़ वाली एक औषधीय फसल है जिसकी मांसल जड़ों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की औषधियों के निर्माण में होता है।  शतावरी सबसे कोमल जड़ी-बूटी है जिसमें मानव शरीर,खास कर महिलाओं के लिए व्यापक श्रृंख्ला में लाभ होते हैं। यह एक औषधीय जड़ी बूटी है और इसकी 500 टन जड़ों का प्रयोग भारत में हर साल दवाइयों के उत्पादन में किया जाता है। शतावरी से तैयार दवाइयों का प्रयोग गैस्ट्रिक अल्सर, अपच और तंत्रिका संबंधी विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। यह एक झाड़ी वाला पौधा है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-3 मीटर और इसकी जड़ेंगुच्छे में होती है। इसके फूल शाखाओं में होते हैं और 3 सैं.मी. लंबे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के और अच्छी सुगंध वाले होते हैं और 3 मि.मी. लंबे होते हैं। इसका परागकोष जामुनी रंग का और फल जामुनी लाल रंग का होता है। यह अफ्रीका, श्री लंका, चीन, भारत और हिमालय में पाई जाती है। भारत में यह अरूणाचल प्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरला और पंजाब राज्यों में पाया जाता है।
विश्व में सतावर भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, चीन, बांग्लादेश तथा अफ्रीका में भी पाया जाता है। सतावर का प्रयोग मुख्य रूप से औषधि के रूप में किया जाता है। इसका इस्तेमाल बलवर्धक, स्तनपान करने वाली महिलाओं के लिए लाभकारी दवाइयों व शारीरिक स्फूर्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ सतावर के नियमित सेवन से ल्युकोरिया व एनीमिया जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है।

सतावर का वानस्पतिक विवरण
सतावर का पौधा झाड़ीदार, कांटेदार लता होता है। इसकी शाखाएं पतली होती हैं। पत्तियां सुई के समान होती हैं जो 1.5-2.5 सेमी तक लम्बी होती हैं। इसके कांटे टेढ़े तथा 6-8 सेंमी लम्बे होते हैं। इसकी शाखाएं चारों ओर फैली होती हैं। इसके फूल सफेद या गुलाबी रंग के सुगंधयुक्त, छोटे, अनेक शाखाओं वाले डंठल पर लगते हैं जो फरवरी और मार्च में फूलते हैं। अप्रैल में फल बढ़कर बड़े-बड़े हो जाते हैं। फल मटर के समान 1-2 बीज युक्त होते हैं। इसके बीज पकने पर काले होते हैं। इसकी जड़े कन्दवत 20-30 सेंमी लम्बी, 1-2 सेंमी मोटी तथा गुच्छे में पैदा होती हैं। जड़ों की संख्या प्रति लता में 60-100 तक होती है। ये जड़े धूसर पीले रंग की हल्की सुगंधयुक्त स्वाद में कुछ मधुर तथा कड़वी लगती हैं। मांसल जड़ों को आदिवासी लोग पूरे पकने पर चाव से खाते हैं। यह सूखने पर भी प्रयोग में लाई जाती हैं। इन्हीं श्वेत जड़ों का प्रयोग चिकित्सा कार्य हेतु होता है। सूखी जड़े बाजार में सतावर के नाम से बेची जाती है। जिसमें सतावरिन-1 तथा सतावरिन-4 में ग्लूकोसाइड रसायन प्रमुख रूप से पाया जाता है। यही रसायन इसके औषधीय गुणों का स्रोत है।

मिट्टी
यह मिट्टी की कई किस्मों जैसे अच्छे जल निकास वाली लाल दोमट से चिकनी मिट्टी, काली मिट्टी से लैटेराइट मिट्टी में उगाई जाती है। यह चट्टानी मिट्टी और हल्की मिट्टी में भी उगाई जा सकती है मिट्टी की गहराई 20-30 सैं.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यह रेतली दोमट से दरमियानी काली मिट्टी जो अच्छे जल निकास वाली हो, में अच्छे परिणाम देती है। पौधे की वृद्धि के लिए मिट्टी pH 6-8 होना चाहिए।

ज़मीन की तैयारी
शतावरी की खेती के लिए, अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए, ज़मीन की अच्छे से जोताई करें, और 15 सैं.मी. की गहराई में गड्ढा खोदें। रोपाई तैयार बैडों पर की जाती है।

बिजाई
बिजाई का समय
पौधों की रोपाई जून-जुलाई के महीने में की जाती है। इसके विकास के अनुसार 4.5x 1.2 मीटर फासले का प्रयोग करें और 20 सैं.मी. गहराई में गड्ढा खोदें।

बीज की गहराई जब पौधा 45 सैं.मी. का हो जाए, तब खेत में रोपाई की जाती है।

कैसे करें खेती
सतावर की खेती के लिए मध्यम तापमान अच्छा माना जाता है। खेती के लिए उचित तापमान 10 से 50 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। इसकी खेती के लिए जुलाई-अगस्त में 2-3 बार खेत की पहली जुताई कर लेनी चाहिए। इसमें प्रति एकड़ के दर से 10 टन गोबर की खाद मिला देनी चाहिए। दूसरी जुताई नवंबर के शुरुआती दिनों में होती है।

 पौध की तैयारी
जोते गए खेत में 10 मीटर की क्यारियां बनाकर इसमें 4 और 2 के अनुपात में मिट्टी व गोबर की खाद मिलाकर डालनी चाहिए। प्रति एकड़ पांच किलोग्राम बीज की ज़रूरत होती है। अगस्त में ही क्यारियों में बीजों की बुआई कर देनी चाहिए सतावर के बीजों की खरीद के बारे वीरेंद्र बताते हैं, ''यूं तो सतावर की कई प्रजातियां पाई जाती हैं पर मुख्य रूप से दो प्रजातियों (पिली या नैपाली सतावर, बेल या देसी सतावर) को बोया जाता है। इसके बीच निजी दुकानों व सीमैप से आसानी से मिल जाते हैं।" एक हेक्टेयर के खेत में 3 से 4 किलो सतावर के बीज डाले जाते हैं। बाज़ार में इसका मूल्य 1000 रुपए प्रति किलो के हिसाब से है।

 सिंचाई
सतावर की खेती में ज़्यादा पानी की ज़रुरत नहीं होती है। पौधे लगाने के एक सप्ताह के भीतर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। यह सिंचाई पौधों के लिए पर्याप्त होती है। दूसरी हल्की सिंचाई पौधों के बड़े होने के बाद करनी चाहिए।
सतावर की खेती में सही समय पर खुदाई बेहद जरूरी होती है 'दूसरी सिंचाई के बाद जब पौध पीली पडऩे लगें तब इसकी रसदार जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए। इसी समय किसान दूसरी फसल के लिए खेत तैयार कर सकता है।"

निराई-गुड़ाई
सतावर के पौधों की जड़ों के समुचित विकास के लिए खेत को खरपतवार रहित रखना तथा मिट्टी को भुरभुरी बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए एक दो निराई-गुड़ाई आवश्यक है। निराई-गुड़ाई के दरम्यान पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

खाद
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA SSP MURIATE OF POTASH
52 200 66


तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
24 32 40
खेत की तैयारी के समय, 80 क्विंटल प्रति एकड़ गली हुई रूड़ी की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 24 किलो (यूरिया 52 किलो), फासफोरस 32 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 52 किलो), और पोटाश 40 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 66 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से पौधे को बचाने के लिए जैविक कीट नाशी जैसे धतूरा, चित्रकमूल और गाय के मूत्र का प्रयोग करें।

बीमारियां और रोकथाम
कुंगी: यह बीमारी प्यूचीनिया एस्पारगी के कारण होती है। इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्ते सूख जाते हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए बॉर्डीऑक्स घोल को 1% डालें।

खरपतवार नियंत्रण
फसल के विकास के समय लगातार गोडाई की आवश्यकता होती है। खेत को नदीन मुक्त बनाने के लिए 6-8 हाथ से गोडाई की आवश्यकता होती है।

खोदी जड़ों को सुखाना जरूरी
खोदकर निकाली गई रसदार जड़ों को साफ  कर अलग-अलग करके हल्की धूप में सुखने के लिए छोड़ देना चाहिए।

सतावर का बाज़ार
प्रति एकड़ के खेत में 300 से 350  क्विंटल गीली जड़ मिलती है जो सूखने के बाद 40 से 50 क्विंटल प्राप्त होती है । वर्तमान समय में सतावर की जड़ 250 से 300 रुपए प्रति किलो के रेट पर बिकती है।

फसल की कटाई
रोपाई के बाद 20-30 महीनों में पौधे की जड़ें परिपक्व हो जाती हैं। मिट्टी और जलवायु के आधार पर जड़ें 12-14 महीनों में पक जाती हैं। मार्च-मई के महीने में जब बीज पक जाये, तब पुटाई की जाती है। पुटाई कसी की सहायता से की जाती है। प्रक्रिया और दवाइयां बनाने के लिए अच्छे से पके बीजों की आवश्यकता होती है।

कटाई के बाद
पुटाई के बाद जड़ों को उबाल के इनका छिलका उतारा जाता है। छिल्का उतारने के बाद जड़ों को हवा में सुखाया जाता है। सूखी जड़ों का भंडारण और ज्यादा दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हवा रहित बैग में रखें। पकी जड़ों का प्रयोग विभिन्न उत्पाद जैसे पाउडर, गुलाम और घृतम बनाने के लिए किया जाता है।

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