काला सीसम की खेती
शीशम (Shisham या Dalbergia sissoo) भारतीय उपमहाद्वीप का वृक्ष है। इसकी लकड़ी फर्नीचर एवं इमारती लकड़ी के लिये बहुत उपयुक्त होती है।
शीशम बहुपयोगी वृक्ष है। इसकी लकड़ी, पत्तियाँ, जड़ें सभी काम में आती हैं। लकड़ियों से फर्नीचर बनता है। पत्तियाँ पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त चारा होती हैं। जड़ें भूमि को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। पत्तियाँ व शाखाएँ वर्षा-जल की बूँदों को धीरे-धीरे जमीन पर गिराकर भू-जल भंडार बढ़ाती हैं।
शीशम की लकड़ी भारी, मजबूत व बादामी रंग की होती है। इसके अंतःकाष्ठ की अपेक्षा बाह्य काष्ठ का रंग हल्का बादामी या भूरा सफेद होता है। लकड़ी के इस भाग में कीड़े लगने की आशंका रहती है। इसलिए इसे नीला थोथा, जिंक क्लोराइड या अन्य कीटरक्षक रसायनों से उपचारित करना जरूरी है।
शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
भूमि एवं जलवायु
हल्की एवं मध्यम उपज वाली बलुई दोमट मिट्टी शीशम वर्गीय फलों के लिए उपयुक्त होती है। शीशम का पेड़ लगाने के लिए वहां की मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। यदि पीएच इससे कम है, तो आप इसे नियंत्रित करनें के लिए मिट्टी में बेकिंग सोडा या अन्य कोई छारिय दवाई डाल सकते हैं। झारखंड , बिहार , उत्तर प्रदेश राज्य की लाल लेटराईट , काली मिट्टी जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है तथा पी.एच.मान भी अम्लीय है शीशम वर्गीय पौधे के लिए उपयुक्त है। इसके लिए उपोष्ण कटिबन्धीय अर्धशुष्क जलवायु अत्यंत उपयुक्त है। जिन क्षेत्रों में सर्दी लम्बे समय तक होती है और पाला पड़ने की सम्भावना रहती है इसके लिए उपयुक्त नहीं है।
शीशम के पौधे की रोपाई
शीशम के बीज दिसंबर-जनवरी माह में पेड़ों से प्राप्त होते हैं। एक पेड़ से एक से दो किलो बीज मिल जाते हैं। बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार होते हैं। बीजों को दो तीन दिन पानी में भिगोने के बाद बोने से अंकुरण जल्दी होता है। इसलिए इन्हें 10 सेमी की दूरी पर कतार में 1-3 सेमी के अंतर से व 1 सेमी की गहराई में बोया जाता है। नर्सरी में बीज लगाने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च है। पौधों की लंबाई 10-15 सेमी होने पर इन्हें सिंचित क्षेत्र में अप्रैल-मई व असिंचित क्षेत्र में जून-जुलाई में रोपा जाता है। रोपों को प्रारंभिक दौर में पर्याप्त नमी मिलना ज़रूरी है।
कहाँ लगा सकते हैं
शीशम के पेड़ सड़क-रेल मार्ग के दोनों ओर, खेतों की मेड़, स्कूल व पंचायत भवन परिसर, कारखानों के मैदान तथा कॉलोनी के उद्यान में लगा सकते हैं। मालवा-निमाड़ के खंडवा-खरगोन ज़िलों तथा चंबल संभाग के श्योपुर क्षेत्र में इसे उगाया जा सकता है।
कैसे रोपे जाते हैं
पौधे रोपने के लिए पहले से ही 1 फीट गोलाई व 1 फुट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पौध मिश्रण भर दिया जाता है। पेड़ों के बीच कितनी दूरी रखी जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ की मिट्टी कैसी है व इन्हें किस स्थान पर लगाना है। हल्की मिट्टी में बढ़वार कम होती है। इसी प्रकार जहाँ सिर्फ शीशम की खेती करना हो, वहाँ ढाई से तीन मीटर की गहराई में लगाया जाता है। भारी मिट्टी वाले उपजाऊ खेतों की मेड़ पर इन्हें कम से कम पाँच मीटर की दूरी पर लगाया जाता है।
कीड़ों का उपचार ज़रूरी
शीशम की लकड़ी भारी, मजबूत व बादामी रंग की होती है। इसके अंतःकाष्ठ की अपेक्षा बाह्य काष्ठ का रंग हल्का बादामी या भूरा सफेद होता है। लकड़ी के इस भाग में कीड़े लगने की आशंका रहती है। इसलिए इसे नीला थोथा, जिंक क्लोराइड या अन्य कीटरक्षक रसायनों से उपचारित करना ज़रूरी है।
हाई ब्रीड शीशम की किस्मे
1 हाई ब्रीड शीशम एक इमरती लकड़ी का पौधा होता ही
2 हाई लैब टेकनीक जेनेटिक बायो प्लांट सिस्टम द्बारा तैयार
3 उच्च ब्यापारिक बाजार मूल्य बाला
4 पूर्ण जैबिक बिधि पर आधारित
स्वरूप
शीशम के पेड़ 100 फुट तक ऊंचे होते हैं। इसकी छाल मोटी, भूरे रंग की तथा लम्बाई के रूख में कुछ विदीर्ण होती है। शीशम की नई टहनियां कोमल एवं अवनत होती है। शीशम के पत्ते एकान्तर, पत्तों की संख्या में 3 से 5 एकान्तर, 1 से 3 इंच लम्बे, रूपरेखा में चौडे़ लट्वाकर होते हैं। शीशम के फूल पीताभ-सफेद, फली लम्बी, चपटी तथा 2 से 4 बीज युक्त होती है। शीशम का सारकाष्ठ पीताभ भूरे रंग का होता है। इसकी एक दूसरी प्रजाति का सारकाष्ठ कृष्णाभ भूरे रंग की होती है।
शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
रासायनिक संघटन
शीशम के तने में तेल पाया जाता है और फलियों में टैनिन और बीजों में भी एक स्थिर तेल पाया जाता है।
पोधो की कटाई
इमरती लकड़ी के रूप में प्रयोग करना हो तो शीशम के पोधो की कटाई 20 से 25 साल की आयु होने पर करना चाहिए | इसे पहले पेड़ो क कटाई करने पर लकड़ी की गुणबत्ता अच्छी हो होती है
उपयोग
1 शीशम बहुउपयोगी पौधा है
2 इसकी लकड़ी पति जड़ो सभी उपयोगी है
3 पत्या पशुओं के प्रोटीन युक्त चारा होती है
4 जेड भूमि को बहुत उपजाऊ बनती है
5 जेड ंहुमी में नइट्रोजन एकत्रित करती है
गुण
शीशम, कड़वा, गर्म, तीखा, सूजन, वीर्य में गर्मी पैदा करने वाला, गर्भपात कराने वाला, कोढ़ (कुष्ठ रोग), सफेद दाग, उल्टी, पेट के कीड़े को खत्म करने वाला, बस्ति रोग, हिक्का (हिचकी), शोथ (सूजन), विसर्प, फोड़े-फुन्सियों, ख़ून की गंदगी को दूर करने वाला तथा कफ (बलगम) को नष्ट करने वाला है। शीशम सार स्नेहन, कषैला, दुष्ट व्रणों का शोधन करने वाला को खत्म करने वाला होता है। शीशम, अर्जुन, ताड़ चंदन सारादिगण, कुष्ठ रोग को नष्ट करता है, बवासीर, प्रमेह और पीलिया रोग को खत्म करता है और मेद के शोधक है। शीशम, पलाश, त्रिफला, चित्रक यह सब मेदानाशक तथा शुक्र दोष को नष्ट करने वाला है एवं शर्करा को दूर करने वाला है।
Note
वजनी होती हैं लकड़ियाँ शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
शीशम (Shisham या Dalbergia sissoo) भारतीय उपमहाद्वीप का वृक्ष है। इसकी लकड़ी फर्नीचर एवं इमारती लकड़ी के लिये बहुत उपयुक्त होती है।
शीशम बहुपयोगी वृक्ष है। इसकी लकड़ी, पत्तियाँ, जड़ें सभी काम में आती हैं। लकड़ियों से फर्नीचर बनता है। पत्तियाँ पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त चारा होती हैं। जड़ें भूमि को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। पत्तियाँ व शाखाएँ वर्षा-जल की बूँदों को धीरे-धीरे जमीन पर गिराकर भू-जल भंडार बढ़ाती हैं।
शीशम की लकड़ी भारी, मजबूत व बादामी रंग की होती है। इसके अंतःकाष्ठ की अपेक्षा बाह्य काष्ठ का रंग हल्का बादामी या भूरा सफेद होता है। लकड़ी के इस भाग में कीड़े लगने की आशंका रहती है। इसलिए इसे नीला थोथा, जिंक क्लोराइड या अन्य कीटरक्षक रसायनों से उपचारित करना जरूरी है।
शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
भूमि एवं जलवायु
हल्की एवं मध्यम उपज वाली बलुई दोमट मिट्टी शीशम वर्गीय फलों के लिए उपयुक्त होती है। शीशम का पेड़ लगाने के लिए वहां की मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। यदि पीएच इससे कम है, तो आप इसे नियंत्रित करनें के लिए मिट्टी में बेकिंग सोडा या अन्य कोई छारिय दवाई डाल सकते हैं। झारखंड , बिहार , उत्तर प्रदेश राज्य की लाल लेटराईट , काली मिट्टी जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है तथा पी.एच.मान भी अम्लीय है शीशम वर्गीय पौधे के लिए उपयुक्त है। इसके लिए उपोष्ण कटिबन्धीय अर्धशुष्क जलवायु अत्यंत उपयुक्त है। जिन क्षेत्रों में सर्दी लम्बे समय तक होती है और पाला पड़ने की सम्भावना रहती है इसके लिए उपयुक्त नहीं है।
शीशम के पौधे की रोपाई
शीशम के बीज दिसंबर-जनवरी माह में पेड़ों से प्राप्त होते हैं। एक पेड़ से एक से दो किलो बीज मिल जाते हैं। बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार होते हैं। बीजों को दो तीन दिन पानी में भिगोने के बाद बोने से अंकुरण जल्दी होता है। इसलिए इन्हें 10 सेमी की दूरी पर कतार में 1-3 सेमी के अंतर से व 1 सेमी की गहराई में बोया जाता है। नर्सरी में बीज लगाने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च है। पौधों की लंबाई 10-15 सेमी होने पर इन्हें सिंचित क्षेत्र में अप्रैल-मई व असिंचित क्षेत्र में जून-जुलाई में रोपा जाता है। रोपों को प्रारंभिक दौर में पर्याप्त नमी मिलना ज़रूरी है।
कहाँ लगा सकते हैं
शीशम के पेड़ सड़क-रेल मार्ग के दोनों ओर, खेतों की मेड़, स्कूल व पंचायत भवन परिसर, कारखानों के मैदान तथा कॉलोनी के उद्यान में लगा सकते हैं। मालवा-निमाड़ के खंडवा-खरगोन ज़िलों तथा चंबल संभाग के श्योपुर क्षेत्र में इसे उगाया जा सकता है।
कैसे रोपे जाते हैं
पौधे रोपने के लिए पहले से ही 1 फीट गोलाई व 1 फुट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पौध मिश्रण भर दिया जाता है। पेड़ों के बीच कितनी दूरी रखी जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ की मिट्टी कैसी है व इन्हें किस स्थान पर लगाना है। हल्की मिट्टी में बढ़वार कम होती है। इसी प्रकार जहाँ सिर्फ शीशम की खेती करना हो, वहाँ ढाई से तीन मीटर की गहराई में लगाया जाता है। भारी मिट्टी वाले उपजाऊ खेतों की मेड़ पर इन्हें कम से कम पाँच मीटर की दूरी पर लगाया जाता है।
कीड़ों का उपचार ज़रूरी
शीशम की लकड़ी भारी, मजबूत व बादामी रंग की होती है। इसके अंतःकाष्ठ की अपेक्षा बाह्य काष्ठ का रंग हल्का बादामी या भूरा सफेद होता है। लकड़ी के इस भाग में कीड़े लगने की आशंका रहती है। इसलिए इसे नीला थोथा, जिंक क्लोराइड या अन्य कीटरक्षक रसायनों से उपचारित करना ज़रूरी है।
हाई ब्रीड शीशम की किस्मे
1 हाई ब्रीड शीशम एक इमरती लकड़ी का पौधा होता ही
2 हाई लैब टेकनीक जेनेटिक बायो प्लांट सिस्टम द्बारा तैयार
3 उच्च ब्यापारिक बाजार मूल्य बाला
4 पूर्ण जैबिक बिधि पर आधारित
स्वरूप
शीशम के पेड़ 100 फुट तक ऊंचे होते हैं। इसकी छाल मोटी, भूरे रंग की तथा लम्बाई के रूख में कुछ विदीर्ण होती है। शीशम की नई टहनियां कोमल एवं अवनत होती है। शीशम के पत्ते एकान्तर, पत्तों की संख्या में 3 से 5 एकान्तर, 1 से 3 इंच लम्बे, रूपरेखा में चौडे़ लट्वाकर होते हैं। शीशम के फूल पीताभ-सफेद, फली लम्बी, चपटी तथा 2 से 4 बीज युक्त होती है। शीशम का सारकाष्ठ पीताभ भूरे रंग का होता है। इसकी एक दूसरी प्रजाति का सारकाष्ठ कृष्णाभ भूरे रंग की होती है।
शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
रासायनिक संघटन
शीशम के तने में तेल पाया जाता है और फलियों में टैनिन और बीजों में भी एक स्थिर तेल पाया जाता है।
पोधो की कटाई
इमरती लकड़ी के रूप में प्रयोग करना हो तो शीशम के पोधो की कटाई 20 से 25 साल की आयु होने पर करना चाहिए | इसे पहले पेड़ो क कटाई करने पर लकड़ी की गुणबत्ता अच्छी हो होती है
उपयोग
1 शीशम बहुउपयोगी पौधा है
2 इसकी लकड़ी पति जड़ो सभी उपयोगी है
3 पत्या पशुओं के प्रोटीन युक्त चारा होती है
4 जेड भूमि को बहुत उपजाऊ बनती है
5 जेड ंहुमी में नइट्रोजन एकत्रित करती है
गुण
शीशम, कड़वा, गर्म, तीखा, सूजन, वीर्य में गर्मी पैदा करने वाला, गर्भपात कराने वाला, कोढ़ (कुष्ठ रोग), सफेद दाग, उल्टी, पेट के कीड़े को खत्म करने वाला, बस्ति रोग, हिक्का (हिचकी), शोथ (सूजन), विसर्प, फोड़े-फुन्सियों, ख़ून की गंदगी को दूर करने वाला तथा कफ (बलगम) को नष्ट करने वाला है। शीशम सार स्नेहन, कषैला, दुष्ट व्रणों का शोधन करने वाला को खत्म करने वाला होता है। शीशम, अर्जुन, ताड़ चंदन सारादिगण, कुष्ठ रोग को नष्ट करता है, बवासीर, प्रमेह और पीलिया रोग को खत्म करता है और मेद के शोधक है। शीशम, पलाश, त्रिफला, चित्रक यह सब मेदानाशक तथा शुक्र दोष को नष्ट करने वाला है एवं शर्करा को दूर करने वाला है।
Note
वजनी होती हैं लकड़ियाँ शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
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