सरीफा की खेती
शरीफा (सीताफल)एक मीठा व स्वादिष्ट फल हैं | इसका वानस्पतिक नाम अनोनस्क्चैमोसा है। जिसमें काफी मात्रा में कैलोरी पायी जाती हैं। यह आयरन और विटामिन सी से भरपूर होता है। शरीफा औषधीय महत्व का भी पौधा है। इसकी पत्तियाँ हृदय रोग में टॉनिक का कार्य करता है क्योंकि इसकी पत्तियों में टेट्राहाइड्रो आइसोक्विनोसीन अल्कलायड पाया जाता है। इसकी जड़े तीव्र दस्त के उपचार में लाभकारी होती हैं। शरीफे के बीजों से निकालकर सुखाई हुई गिरी में 30 प्रतिशत तेल पाया जाता है, इससे साबुन तथा पेन्ट बनाया जाता है। पोषण की दृष्टि से भी शरीफा का फल काफी अच्छा माना गया है। फलों में 14.5 प्रतिशत शर्करा पाई जाती है जिसमें ग्लूकोज की अधिकता होती है। फलों के गूदे को दूध में मिलाकर पेय पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है एवं आइस्क्रीम इत्यादि बनाया जाता है।
सीताफल (शरीफा) उगाने वाले क्षेत्र
यह भारत में सभी जगहों में पाया जाता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आंध्र प्रदेश में ज्यादा देखे जा सकते हैं।
जलवायु
शरीफा का पौधा काफी सहिष्णु (कठोर) होता है, और शुष्क जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसके पोधों पर पाले का भी असर कम पड़ता हैं। अधिक ठंडे मौसम में फल कड़े हो जाते हैं, तथा पकते नही हैं। फूल आने के समय शुष्क मौसम होना आवश्यक होता है परंतु 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर फूल झड़ने लगते हैं। वर्षा ऋतु आने के साथ फल लगने प्रारंभ हो जाते है। सीताफल हेतु 50-75 से.मी. वार्षिक औसत वर्षा उचित मानी जाती है। झारखंड के हजारीबाग, राँची, साहेबगंज, पाकुड़, गोड्डा इत्यादि जिलों में इसकी अच्छी खेती की जा सकती है।
भूमि की तैयारी
शरीफा के पौधे लगभग सभी प्रकार के भूमि में पनप जाते हैं परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी , हलकी दोमट रेतीली मिट्टी,पथरीली,जमीन और ढालू जमीन जहां पर पानी का निकास पूर्ण हो इसकी बढ़वार एवं पैदावार के लिये उपयुक्त होती है। कमजोर एवं पथरीली भूमि में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। इसका पौधा भूमि में 50 प्रतिशत तक चूने की मात्रा सह लेता है। भूमि का पी.एच.मान 5.5 से 6.5 के बीच अच्छा माना जाता है। लेकिन इसे 7-9 p.h मान वाली भूमि पर भी उत्पादन लिया जा सकता है।
गड्ढे तैयार करना
उद्यान लगाने से 2 महीने पहले 50 ग 50 ग 50 से. मी. आकार के गड्ढे 4.5 से 5.0 मीटर की दूरी पर खोद लें। एक महीने तक गड्ढे खुदे रहने के बाद 10-15 किलो पकी हुई गोबर की खाद तथा आवश्यकतानुसार 250 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 50 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश मिट्टी में मिला दें। दीमक के बचाव के लिये लिन्डेन की 100 ग्राम मात्रा प्रति गड्ढा मिलायें। गड्ढे की खुदाई के समय 25 से.मी. की गहराई तक की मिट्टी एक तरफ तथा निचली 25 से.मी. गहराई मिट्टी दूसरी तरफ डालें तथा भरते समय उपर की मिट्टी नीचे तथा नीचे वाली मिट्टी के साथ खाद मिला कर उपर भर दें।
बोने की विधि
बरसात पूर्व 4×4 मीटर की दूरी पर 60×60 सेमी चौड़े और 80 सेमी गहरे गड्ढे खोद लिये जाते हैं। गड्ढों से निकली हुई मिट्टी में सड़ी हुई गोबर की खाद और प्रति गड्ढा 100 ग्राम D.A.P. मिला कर एक दो अच्छी बरसात हो जाने के बाद पौधों को गड्ढों में रोप दिया जाता है।
सीताफल की कुछ उत्त्म जातियाँ निम्नानुसार हैं
1 अर्का सहान
यह एक संकर किस्म है जिसे भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर से विकसित किया गया हैं। यह किस्म अपने मीठे स्वाद, सफेद गूदे, उन्नत भण्डारण क्षमता व कम बीजों (9 ग्राम/100 ग्राम फल भार) के कारण पहचानी जाती है। इसमें शर्करा 22.8 प्रतिशत प्रोटीन 2.49 प्रतिशत फाॅस्फोरस 42.29 मिलीग्राम, कैल्शियम 225 मिलीग्राम पाया जाता हैं। जबकि सीताफल की अन्य किस्मों में प्रोटीन 1.33 प्रतिशत फाॅस्फोरस 17.05 मि.ग्रा. व कैल्शियम 159 मि.ग्रा. पाया जाता हैं।
2 लाल सीता फल
इस किस्म के फल हल्के गुलाबी रंग के एवं आकर्षक होते हैं। फलों में बीजों की संख्या अधिक होती है तथा औसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष 40-50 फल आते हैं। फलों में 30.5 प्रतिशत गुदा, कुल विलेय ठोस (कुल घुलनशील पदार्थ) 22.3 प्रतिशत तथा अम्लता 0.24 प्रतिशत होती हैं।
3 मैमथ
फल गोलाकार, आँखे बड़ी तथा गोलाकार होती हैं। फलों का स्वाद अच्छा होता हैं। प्रति वृक्ष 60-80 फल प्राप्त होते हैं। फल की फाँके गोलाई लिये काफी चैड़ी होती हैं। फलों में 44.8 प्रतिशत गूदा, कुल विलेय ठोस 20 प्रतिशत तथा अम्लता 0.19 प्रतिशत होती हैं।
4 बालानगर
फलों का औसतन भार 137 ग्राम और औसत उपज 5 से 7 कि.ग्राम प्रति वृक्ष होती हैं।
5 बारबाडोज सीडलिंग
फलों का भार 145 ग्राम तक होता है, औसत उपज 3.5 से 4.5 कि.ग्रा. प्रति वृक्ष होती है।
6 ब्रिटिश ग्वाईना
फलों का औसत भार लगभग 150 ग्राम होता हैं एवं औसत उपज लगभग 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है।
पौधे की रोपाई:-
शरीफा की खेती के लिए पौधे को दो तरीके से की जा सकती हैं।
1 नर्सरी में पौधा तैयार कर के
2 बारिश में कलम द्वारा
1. पौधों को पौधशाला (नर्सरी) से रोपने की जगह पर लायें।
2. प्रत्येक गड्ढे के पास में एक पौधा रखते जायें।
3. पाॅलीथिन की थैली या पिण्ड के आकार एवं माप के अनुसार ही गड्ढे में जगह खाली रखें।
4. मिट्टी के पिंड के बाहर लगी पुआल या घास को हटा दें। यदि पौधे पाॅलीथिन की थैली में उगायें, तो चाकू से उपर से नीचे तक चीर दें। इसके बाद पौधों को थैली से बाहर मिट्टी के पिंड सहित निकालें। पाॅलीथिन की थैली को पूरी तरह अलग कर दें।
5. पौधों को मिट्टी के पिंड के साथ आधे भरे हुए गड्ढे के बीचो-बीच रखें। अब इसके चारों तरफ मिट्टी डालें और पैर से अच्छी तरह दबा दें।
6. पौध रोपण हमेशा शाम के समय करें।
7. पौधे जुलाई-अगस्त तथा फरवरी-मार्च में लगायें।
शरीफा के पौधे को बरसात में लगाना सबसे अच्छा रहता है । इसलिए बरसात पूर्व 4×4 मीटर की दूरी पर 60×60 सेमी. चौड़े और 80 सेमी. गहरे खड्डे खोदे। खड्डो से निकली हुई मिट्टी में 30 प्रतिशत अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद् और प्रति खड्डा 100 ग्राम डी ए पी मिला कर एक दो अच्छी बरसात हो जाने के बाद पौधों को खड्डो में रोपाई कर दे और ऊपर से हाथों से तने की आसपास की मिट्टी को दबा दे नर्सरी में तैयार अच्छी किस्म के पौधे की कीमत 70 से 100 रूप ये तक होती है।एक हेक्टेयर में अनुमानित 450 पौधे तक लग सकते है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण हेतु समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
सीताफल के खाद एवं उर्वरक
सीताफल को अधिकांशतयः कमजोर मिट्टी या अनुउपजाउ भूमि पर लगाते हैं, जहाँ खाद व उर्वरकों का उपयोग नही किया जाता हैं। अतः अच्छे फल एवं अधिक उत्पादन के लिये आवश्यक खाद एवं उर्वरकों की मात्रा समय समय पर दें।
पौधे की आयु गेबर की खाद (कि.गा्र.) अमोनियम सल्फेट(ग्राम) सिंगल सुपर फास्फेट(ग्राम) म्यरेट आॅफ पोटाश(ग्राम)
पौधा लगाते समय 10 50 100 25
1-3 वर्ष 20 100 200 50
4-7 वर्ष 20 150 300 75
8 वर्ष या अधिक 20 200 400 100
खाद एवं उर्वरक सामान्य नियमों के अनुसार दें। इन्हें माॅनसू के आने के समय बगीचों में डालना लाभप्रद होता है। इसके अतिरिक्त वर्षा ऋतु के प्रारंभ में सनई, मूँग या उड़द जैसी फसल बो कर तथा फूल आने के थोड़ा पहले इसे मिट्टी में जोत कर मिलाने से काफी लाभ होता हैं।
सिंचाई कैसे करे
अगर पौधे लगाने के बाद बरसात आती रहे हो सिंचाई के कोई आवश्यकता नही होती है। लेकिन बारिश ना आने पर अगर पौधे मुरझाये हुए हो तो एक बार सिंचाई कर दे और गर्मी के दिनों में एक week में सिंचाई करे और सर्दी के दिनों में महीने भर में एक बार सिंचाई कर सकते है। फल लगते समय एक सिंचाई ज़रुर करे ताकि व्रद्धि दर बड सके
सधाई एवं छटाई
सधाई आवश्यकतानुसार एक निश्चित रूप प्रदान करने के लिये आवश्यक हैं। समय -समय पर सूखी टहनियों को काट दें एवं फल तुड़ाई पश्चात अनावश्यक रूप से बढी हुई शाखाओं की पेड़ को आकार देने के लिये हल्की छटाई करें।
रोग और किट
इस पर किसी भी प्रकार के रोग नही आते है।लेकिन कभी कभी पत्तियों को नुकसान पहुँचने वाले किट और बग़ आ जाये तो दवाई का स्प्रे कर उन्हें ख़तम कर दे और मौसम में परिवर्तन या अन्य कारणों से यदि फूल जड़ने लगे तो भी आप दवाई का उपयोग कर सकते है।
पुष्पन एवं फलन
शरीफा में पुष्पन काफी लम्बे समय तक चलता है। उत्तर भारत में मार्च से ही फूल निकलना प्रारंभ हो जाता है और जुलाई तक आता है। पुष्प कालिका के आँखों से दिखाई पड़ने की स्थिति से लेकर पूर्ण पुष्पन में लगभग एक महीने तथा पुष्पन के बाद फल पकने तक लगभग 4 महीने का समय लगता है। पके फल सितम्बर-अक्टूबर से मिलना शुरू हो जाते है। बीज द्वारा तैयार किये गये पौधे तीसरे वर्ष फल देना प्रारंभ करते हैं जबकि बडिंग एवं ग्राफ्टिंग द्वारा तैयार पौधे दूसरे वर्ष में अच्छी फलन देने लगते है। फूल खिलने के तुरन्त बाद 50 पी.पी.एम. जिबरेलिक एसिड के घोल का छिड़काव कर देने से फलन अच्छी होती है।
फलो की तुड़ाई
एक स्वस्थ सीताफल के पेड़ से औसत 80-100 फल मिल जाते है। फल जब पेड़ पर कठोर हो जाये तब उसे तोड़ लेना चाहिए ज्यादा दिनों तक पेड़ पर फल रहने से वो सख़्त हो कर फट जाता है। सामान्य रूप से पेड़ से फलो को तोड़ने के 6-9 दिनों में पक जाते है। लेकिन इन्हें कृत्रिम रूप से भी पकाया जा सकता है।पेड़ पर पके हुए फल की पहचान आप फल पर काले भूरा रंग के धब्बों जिन्हें ग्रामीण बोली में आँख दिखना कहते है। कर सकते है। पके हुए फलो की बाज़ार में कीमत लगभग 150 किलो तक रहती है।
शरीफा (सीताफल)एक मीठा व स्वादिष्ट फल हैं | इसका वानस्पतिक नाम अनोनस्क्चैमोसा है। जिसमें काफी मात्रा में कैलोरी पायी जाती हैं। यह आयरन और विटामिन सी से भरपूर होता है। शरीफा औषधीय महत्व का भी पौधा है। इसकी पत्तियाँ हृदय रोग में टॉनिक का कार्य करता है क्योंकि इसकी पत्तियों में टेट्राहाइड्रो आइसोक्विनोसीन अल्कलायड पाया जाता है। इसकी जड़े तीव्र दस्त के उपचार में लाभकारी होती हैं। शरीफे के बीजों से निकालकर सुखाई हुई गिरी में 30 प्रतिशत तेल पाया जाता है, इससे साबुन तथा पेन्ट बनाया जाता है। पोषण की दृष्टि से भी शरीफा का फल काफी अच्छा माना गया है। फलों में 14.5 प्रतिशत शर्करा पाई जाती है जिसमें ग्लूकोज की अधिकता होती है। फलों के गूदे को दूध में मिलाकर पेय पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है एवं आइस्क्रीम इत्यादि बनाया जाता है।
सीताफल (शरीफा) उगाने वाले क्षेत्र
यह भारत में सभी जगहों में पाया जाता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आंध्र प्रदेश में ज्यादा देखे जा सकते हैं।
जलवायु
शरीफा का पौधा काफी सहिष्णु (कठोर) होता है, और शुष्क जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसके पोधों पर पाले का भी असर कम पड़ता हैं। अधिक ठंडे मौसम में फल कड़े हो जाते हैं, तथा पकते नही हैं। फूल आने के समय शुष्क मौसम होना आवश्यक होता है परंतु 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर फूल झड़ने लगते हैं। वर्षा ऋतु आने के साथ फल लगने प्रारंभ हो जाते है। सीताफल हेतु 50-75 से.मी. वार्षिक औसत वर्षा उचित मानी जाती है। झारखंड के हजारीबाग, राँची, साहेबगंज, पाकुड़, गोड्डा इत्यादि जिलों में इसकी अच्छी खेती की जा सकती है।
भूमि की तैयारी
शरीफा के पौधे लगभग सभी प्रकार के भूमि में पनप जाते हैं परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी , हलकी दोमट रेतीली मिट्टी,पथरीली,जमीन और ढालू जमीन जहां पर पानी का निकास पूर्ण हो इसकी बढ़वार एवं पैदावार के लिये उपयुक्त होती है। कमजोर एवं पथरीली भूमि में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। इसका पौधा भूमि में 50 प्रतिशत तक चूने की मात्रा सह लेता है। भूमि का पी.एच.मान 5.5 से 6.5 के बीच अच्छा माना जाता है। लेकिन इसे 7-9 p.h मान वाली भूमि पर भी उत्पादन लिया जा सकता है।
गड्ढे तैयार करना
उद्यान लगाने से 2 महीने पहले 50 ग 50 ग 50 से. मी. आकार के गड्ढे 4.5 से 5.0 मीटर की दूरी पर खोद लें। एक महीने तक गड्ढे खुदे रहने के बाद 10-15 किलो पकी हुई गोबर की खाद तथा आवश्यकतानुसार 250 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 50 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश मिट्टी में मिला दें। दीमक के बचाव के लिये लिन्डेन की 100 ग्राम मात्रा प्रति गड्ढा मिलायें। गड्ढे की खुदाई के समय 25 से.मी. की गहराई तक की मिट्टी एक तरफ तथा निचली 25 से.मी. गहराई मिट्टी दूसरी तरफ डालें तथा भरते समय उपर की मिट्टी नीचे तथा नीचे वाली मिट्टी के साथ खाद मिला कर उपर भर दें।
बोने की विधि
बरसात पूर्व 4×4 मीटर की दूरी पर 60×60 सेमी चौड़े और 80 सेमी गहरे गड्ढे खोद लिये जाते हैं। गड्ढों से निकली हुई मिट्टी में सड़ी हुई गोबर की खाद और प्रति गड्ढा 100 ग्राम D.A.P. मिला कर एक दो अच्छी बरसात हो जाने के बाद पौधों को गड्ढों में रोप दिया जाता है।
सीताफल की कुछ उत्त्म जातियाँ निम्नानुसार हैं
1 अर्का सहान
यह एक संकर किस्म है जिसे भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर से विकसित किया गया हैं। यह किस्म अपने मीठे स्वाद, सफेद गूदे, उन्नत भण्डारण क्षमता व कम बीजों (9 ग्राम/100 ग्राम फल भार) के कारण पहचानी जाती है। इसमें शर्करा 22.8 प्रतिशत प्रोटीन 2.49 प्रतिशत फाॅस्फोरस 42.29 मिलीग्राम, कैल्शियम 225 मिलीग्राम पाया जाता हैं। जबकि सीताफल की अन्य किस्मों में प्रोटीन 1.33 प्रतिशत फाॅस्फोरस 17.05 मि.ग्रा. व कैल्शियम 159 मि.ग्रा. पाया जाता हैं।
2 लाल सीता फल
इस किस्म के फल हल्के गुलाबी रंग के एवं आकर्षक होते हैं। फलों में बीजों की संख्या अधिक होती है तथा औसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष 40-50 फल आते हैं। फलों में 30.5 प्रतिशत गुदा, कुल विलेय ठोस (कुल घुलनशील पदार्थ) 22.3 प्रतिशत तथा अम्लता 0.24 प्रतिशत होती हैं।
3 मैमथ
फल गोलाकार, आँखे बड़ी तथा गोलाकार होती हैं। फलों का स्वाद अच्छा होता हैं। प्रति वृक्ष 60-80 फल प्राप्त होते हैं। फल की फाँके गोलाई लिये काफी चैड़ी होती हैं। फलों में 44.8 प्रतिशत गूदा, कुल विलेय ठोस 20 प्रतिशत तथा अम्लता 0.19 प्रतिशत होती हैं।
4 बालानगर
फलों का औसतन भार 137 ग्राम और औसत उपज 5 से 7 कि.ग्राम प्रति वृक्ष होती हैं।
5 बारबाडोज सीडलिंग
फलों का भार 145 ग्राम तक होता है, औसत उपज 3.5 से 4.5 कि.ग्रा. प्रति वृक्ष होती है।
6 ब्रिटिश ग्वाईना
फलों का औसत भार लगभग 150 ग्राम होता हैं एवं औसत उपज लगभग 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है।
पौधे की रोपाई:-
शरीफा की खेती के लिए पौधे को दो तरीके से की जा सकती हैं।
1 नर्सरी में पौधा तैयार कर के
2 बारिश में कलम द्वारा
1. पौधों को पौधशाला (नर्सरी) से रोपने की जगह पर लायें।
2. प्रत्येक गड्ढे के पास में एक पौधा रखते जायें।
3. पाॅलीथिन की थैली या पिण्ड के आकार एवं माप के अनुसार ही गड्ढे में जगह खाली रखें।
4. मिट्टी के पिंड के बाहर लगी पुआल या घास को हटा दें। यदि पौधे पाॅलीथिन की थैली में उगायें, तो चाकू से उपर से नीचे तक चीर दें। इसके बाद पौधों को थैली से बाहर मिट्टी के पिंड सहित निकालें। पाॅलीथिन की थैली को पूरी तरह अलग कर दें।
5. पौधों को मिट्टी के पिंड के साथ आधे भरे हुए गड्ढे के बीचो-बीच रखें। अब इसके चारों तरफ मिट्टी डालें और पैर से अच्छी तरह दबा दें।
6. पौध रोपण हमेशा शाम के समय करें।
7. पौधे जुलाई-अगस्त तथा फरवरी-मार्च में लगायें।
शरीफा के पौधे को बरसात में लगाना सबसे अच्छा रहता है । इसलिए बरसात पूर्व 4×4 मीटर की दूरी पर 60×60 सेमी. चौड़े और 80 सेमी. गहरे खड्डे खोदे। खड्डो से निकली हुई मिट्टी में 30 प्रतिशत अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद् और प्रति खड्डा 100 ग्राम डी ए पी मिला कर एक दो अच्छी बरसात हो जाने के बाद पौधों को खड्डो में रोपाई कर दे और ऊपर से हाथों से तने की आसपास की मिट्टी को दबा दे नर्सरी में तैयार अच्छी किस्म के पौधे की कीमत 70 से 100 रूप ये तक होती है।एक हेक्टेयर में अनुमानित 450 पौधे तक लग सकते है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण हेतु समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
सीताफल के खाद एवं उर्वरक
सीताफल को अधिकांशतयः कमजोर मिट्टी या अनुउपजाउ भूमि पर लगाते हैं, जहाँ खाद व उर्वरकों का उपयोग नही किया जाता हैं। अतः अच्छे फल एवं अधिक उत्पादन के लिये आवश्यक खाद एवं उर्वरकों की मात्रा समय समय पर दें।
पौधे की आयु गेबर की खाद (कि.गा्र.) अमोनियम सल्फेट(ग्राम) सिंगल सुपर फास्फेट(ग्राम) म्यरेट आॅफ पोटाश(ग्राम)
पौधा लगाते समय 10 50 100 25
1-3 वर्ष 20 100 200 50
4-7 वर्ष 20 150 300 75
8 वर्ष या अधिक 20 200 400 100
खाद एवं उर्वरक सामान्य नियमों के अनुसार दें। इन्हें माॅनसू के आने के समय बगीचों में डालना लाभप्रद होता है। इसके अतिरिक्त वर्षा ऋतु के प्रारंभ में सनई, मूँग या उड़द जैसी फसल बो कर तथा फूल आने के थोड़ा पहले इसे मिट्टी में जोत कर मिलाने से काफी लाभ होता हैं।
सिंचाई कैसे करे
अगर पौधे लगाने के बाद बरसात आती रहे हो सिंचाई के कोई आवश्यकता नही होती है। लेकिन बारिश ना आने पर अगर पौधे मुरझाये हुए हो तो एक बार सिंचाई कर दे और गर्मी के दिनों में एक week में सिंचाई करे और सर्दी के दिनों में महीने भर में एक बार सिंचाई कर सकते है। फल लगते समय एक सिंचाई ज़रुर करे ताकि व्रद्धि दर बड सके
सधाई एवं छटाई
सधाई आवश्यकतानुसार एक निश्चित रूप प्रदान करने के लिये आवश्यक हैं। समय -समय पर सूखी टहनियों को काट दें एवं फल तुड़ाई पश्चात अनावश्यक रूप से बढी हुई शाखाओं की पेड़ को आकार देने के लिये हल्की छटाई करें।
रोग और किट
इस पर किसी भी प्रकार के रोग नही आते है।लेकिन कभी कभी पत्तियों को नुकसान पहुँचने वाले किट और बग़ आ जाये तो दवाई का स्प्रे कर उन्हें ख़तम कर दे और मौसम में परिवर्तन या अन्य कारणों से यदि फूल जड़ने लगे तो भी आप दवाई का उपयोग कर सकते है।
पुष्पन एवं फलन
शरीफा में पुष्पन काफी लम्बे समय तक चलता है। उत्तर भारत में मार्च से ही फूल निकलना प्रारंभ हो जाता है और जुलाई तक आता है। पुष्प कालिका के आँखों से दिखाई पड़ने की स्थिति से लेकर पूर्ण पुष्पन में लगभग एक महीने तथा पुष्पन के बाद फल पकने तक लगभग 4 महीने का समय लगता है। पके फल सितम्बर-अक्टूबर से मिलना शुरू हो जाते है। बीज द्वारा तैयार किये गये पौधे तीसरे वर्ष फल देना प्रारंभ करते हैं जबकि बडिंग एवं ग्राफ्टिंग द्वारा तैयार पौधे दूसरे वर्ष में अच्छी फलन देने लगते है। फूल खिलने के तुरन्त बाद 50 पी.पी.एम. जिबरेलिक एसिड के घोल का छिड़काव कर देने से फलन अच्छी होती है।
फलो की तुड़ाई
एक स्वस्थ सीताफल के पेड़ से औसत 80-100 फल मिल जाते है। फल जब पेड़ पर कठोर हो जाये तब उसे तोड़ लेना चाहिए ज्यादा दिनों तक पेड़ पर फल रहने से वो सख़्त हो कर फट जाता है। सामान्य रूप से पेड़ से फलो को तोड़ने के 6-9 दिनों में पक जाते है। लेकिन इन्हें कृत्रिम रूप से भी पकाया जा सकता है।पेड़ पर पके हुए फल की पहचान आप फल पर काले भूरा रंग के धब्बों जिन्हें ग्रामीण बोली में आँख दिखना कहते है। कर सकते है। पके हुए फलो की बाज़ार में कीमत लगभग 150 किलो तक रहती है।
No comments:
Post a Comment