गिलोय(Guduchi) की खेती
गिलोय (अंग्रेज़ी:टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि।'बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है। गिलोय का पौधा दरअसल एक झाडीदार लता यानि बेल होती है यह खेतों की मेंड़, घने जंगल, घर के बगीचे, मैदानों में लगे पेड़ों के सहारे कहीं भी गिलोय की बेल प्राकृतिक रूप से अपना घर बना लेती है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर पाउडर के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं | यह नीम और आम आदि के वृक्षों पर फैली हुई देखी जा सकती है। इसके पत्ते चिकने और पान की शक्ल के होते हैं । इसकी बेल पीले सफेद रंग की होती है। और पुरानी होने पर मोटी होती जाती है यह कभी सूखती या नष्ट नहीं होती है तथा इसे काट देने पर उसमें से फिर नई लता पैदा हो जाती है । यह पेड़ के सहारे ही चढ़ती है और उसके ऊपर फ़ैल जाती है ।
भूमि एवं जलवायु
किसी भी प्रकार की भूमि में यह फसल हो सकती है जिस मिटटी में गीलापन या पानी रोकने की ज्यादा क्षमता हो वह इसकी फसल के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है आद्र्र या नम जलवायु इस लता के लिए लाभप्रद होती है
गिलोय की रोपाई
रोपाई गिलोय की खेती के लिए खेत में मेड़ बाड़ या बड़े पौधे का सहारा लेना चाहिए या खेत में लता को च़ने में आसानी हो इस हिसाब से मंडप बनाने चाहिए बीजों से रोपाई न करते हुए अच्छे सशक्त जल्दी बढ़नेवाले पौधों से 15॰20 से॰मी॰ लंबाई की 4॰5 आंखोवाली उंगली से थोड़ी मोटी शाखाओं के टुकड़ों को उपयोग में लाना चाहिए इन टुकड़ों को मई॰जून माह में लगाकर पौधशाला तैयारी करनी चाहिए कमल लगाते वक्त रेज्ड बेडस या पालीथीन बैग का प्रयोग करना चाहिए कमल के निचले हिस्सो को रूटेक्स पाउडर के घोल में 15॰20 मिनट डुबोकर रखने के बाद लगाना चाहिए पौधशाला का छाया में होना जरूरी होता है पौधशाला में एक दिन छोड़कर दूसरे दिन सिंचन करना चाहिए 30॰45 दिन बाद पौधे स्थानांतरण योग्य हो जाते हैं कृषि योग्य भूमि में खेती करते वक्त दो पौधे और कतार में 120॰150 से॰मी॰ का अंतर रखना चाहिए इस फसल को अतिरिक्त खाद देने की जरूरत नहीं है मगर स्थानांतरण के 20॰25 दिन बाद प्रति पौधा 15॰20 ग्राम नत्रजन की मात्रा देने से पौधे की वृद्धि में तेजी आती है
कटाई पौधा 10॰11 माह का होते ही गरमी में पतझड़ होने के बाद भूमि से 30 से॰मी॰ अंतर पर तेज धार के हंसिए से पौधा काटकर शाखाएं जमा कर लेनी चाहिए इन शाखाओं के 6॰10 से॰मी॰ लंबाई के टुकड़े करके हल्की धूप में सुखाना चाहिए या गिलोय सत्व निकालना चाहिए ।
उत्पादन अगर कृषि भूमि में 120 ग 150 से॰मी॰ पर खेती की गई हो तो गिलोय की सूखी हुई शाखाओं की प्रति एकड़ 4॰5 किंवटल उपज मिलती है इन शाखाओं से गिलोय सत्व तैयार किया जाता है यह गिलोय सत्व प्रति किलो शाखा से सिर्फ 200 ग्राम निकलता है
सिंचाई
पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद की जाती है। इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारियों में पानी का बहाव अधिक तेज न हो। दूसरी सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने | इसके बाद मृदा की संरचना तथा मौसम के अनुसार 15-25 दिन के अन्तराल पर 5 सिंचाईयां पर्याप्त होगी। फव्वारा विधि द्धारा बुवाई समेत पांच सिंचाईयां बुवाई के समय, दस, बीस, पचपन एवं अस्सी दिनों की अवस्था पर करें।
निराई-गुड़ाई
खरपतवार गिलोय की खेती में एक गंभीर समस्या है। प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद व दूसरी 55-60 दिन बाद करनी चाहिये। अतिरिक्त पौधों को हटाने के लिए निराई किया जाना चाहिए। गिलोय में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के समय दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन(स्टोम्प ) नामक खरपत वार नाशी की बाजार में उपलब्ध3.3 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहियेI इसके उपरान्त जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहियेI यदि मजदूरों की समस्या हो तो आक्सीडाईजारिल (राफ्ट)नामक खरपतवार-नाशी की बाजार में उपलब्ध 750 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये |
औषधीय उपयोग
गिलोय की मुख्यतः तना व शाखाएं गिलोय सत्व निकालने हेतु उपयोग में आते हैं वैसे जड़ फल तथा पत्तियां भी उपयोग में आती हैं
गिलोय का तना तथा सत्व त्रिदोशनाशक है सत्व का उपयोग खासी कफ श्वास रोग सिरदर्द ज्वर जीर्ण ज्वर वात ज्वर प्रसूति ज्वर कफ ज्वर मलेरिया टायफाइड नेत्ररोग तृष्णा अम्लपित्त वातपित्त वात विकार जोड़ो का दर्द सूजन प्रमेह पांडु क्षयरोग श्वेत प्रदर माताओं का दूध बढ़ाने हेतु प्लीहा रोग पीलिया हृदय दौर्बल्य रक्तचाप नियंत्रण या दिल की अनियमित धड़कन रक्त॰विकार मधुमेह पैर बिवाई वीर्य॰वृद्धि बंधत्व उपदंश कर्करोग इत्यादि विकारों की औषधीय निर्मितियों में होता है गिलोय की जड़े दमा सर्प विश उतारने कुष्ठ रोग निवारण हेतु उत्तम औषध तथा वमनकारक के तौर पर उपयोग में लाई जाती है गिलोय के फल पीलिया गठिया तथा शकितवर्धक के रूप में उपयोग होते है
क्षयरोग उत्पन्न करने वाले माइक्रोबैक्टीरियम टुबरकुलोसिस जीवाणु की वृद्धि को गिलोय सफलतापूर्वक रोकती है तथा इन जीवाणुओं के सिस्ट बनाने की किया में व्यवधान डालकर उसे नष्ट कर देती है । मूत्रवाही संस्थान तथा आंत्र संस्थान को प्रभावित करनेवाले एस्कोनिषिया कोलाइ नामक रोगाणु को भी जड़ से नष्ट कर देती है ।
गिलोय का रक्त प्रभाव शर्करा को कम कर देने वाला होता है हायपरग्लाइसीमिया में इसका लाभकारी एवं तुरंत परिणाम दिखाई देता है यह शरीर में इंसुलिन की उत्पतित व रक्त में उसकी घुलनषीलता ग्लूकोज जलाने की क्षमता को बढ़ाती है इससे रक्त शर्करा घटती है
गिलोय की पत्तियों में प्रोटीन कैलिसयम तथा फास्फोरस होने के कारण इसे पीलिया तथा गठिया में उपयोगी माना गया है ।
आयुर्वेदिक में गिलोय के योग से बनी कामयाब दवाइयां
गुडूच्यादि चूर्ण, गुडूच्यादि क्वाथ, गुडूचीलौह, अमृतादि क्वाथ, अमृतारिष्ट, गुडूची तैल आदि गिलोय-प्रधान योग हैं। इसको काढ़े के रूप में सेवन करने की मात्रा 50 मि.लि. (एक कप), चूर्ण के रूप में 3 से 5 ग्राम रस के रूप में 1 से 2 चम्मच बडा और सत्व के रूप में 1 या 2 ग्राम है। इसका उपयोग ठंड से चढने वाले बुखार, शुक्र-क्षय, कमजोरी और मूत्र-विकारों में बहुत ही लाभप्रद रहता है ।
1 आयुर्वेदाचार्य ज्यादातर गिलोय की डंडी का ही प्रयोग करते हैं ; पत्तों का नहीं उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है। डंडी को ऐसे भी चूस भी सकते है या आप चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी |
2 गिलोय क्वाथ से मरिचचूर्ण तथा शहद मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है।
3 गिलोय तथा अश्वगन्धा को दूध में पकाकर लेने से बांझपन दूर होता है।
4 गिलोय सत्व को आँवले के रस के साथ लेने से आँखों के कई रोग दूर होते है।
गिलोय का रस बनाने की विधि
गिलोय का रस पत्तो से तथा इसकी डंडी से बनाया जाता है और दोनों का ही अलग- अलग महत्त्व है तथा अलग-अलग रोगों के उपचार में प्रयोग किया है | जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी डंडी का अधिक महत्त्व होता है | गिलोय की तासीर गर्म होती है तथा यह एक हर्ब होती है इसलिए इसको अधिक मात्रा में या बिना सही जानकारी के ना पियें इससे नुकसान भी हो सकता है | गिलोय का रस तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है। गिलोय का रस बनाने के लिए इसकी डंडी लेकर काट कर छोटे-छोटे टुकड़े करके जूसर में डालकर जूस निकाल ले | बेहतर यह होगा की आप किसी पत्थर के सिल बट्टे पर इसको पीसे उसके बाद गिलोय की डंडी से बने इस पेस्ट को निचोड़ ले हालांकि यह थोडा कठिन होता है |
गिलोय (अंग्रेज़ी:टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि।'बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है। गिलोय का पौधा दरअसल एक झाडीदार लता यानि बेल होती है यह खेतों की मेंड़, घने जंगल, घर के बगीचे, मैदानों में लगे पेड़ों के सहारे कहीं भी गिलोय की बेल प्राकृतिक रूप से अपना घर बना लेती है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर पाउडर के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं | यह नीम और आम आदि के वृक्षों पर फैली हुई देखी जा सकती है। इसके पत्ते चिकने और पान की शक्ल के होते हैं । इसकी बेल पीले सफेद रंग की होती है। और पुरानी होने पर मोटी होती जाती है यह कभी सूखती या नष्ट नहीं होती है तथा इसे काट देने पर उसमें से फिर नई लता पैदा हो जाती है । यह पेड़ के सहारे ही चढ़ती है और उसके ऊपर फ़ैल जाती है ।
भूमि एवं जलवायु
किसी भी प्रकार की भूमि में यह फसल हो सकती है जिस मिटटी में गीलापन या पानी रोकने की ज्यादा क्षमता हो वह इसकी फसल के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है आद्र्र या नम जलवायु इस लता के लिए लाभप्रद होती है
गिलोय की रोपाई
रोपाई गिलोय की खेती के लिए खेत में मेड़ बाड़ या बड़े पौधे का सहारा लेना चाहिए या खेत में लता को च़ने में आसानी हो इस हिसाब से मंडप बनाने चाहिए बीजों से रोपाई न करते हुए अच्छे सशक्त जल्दी बढ़नेवाले पौधों से 15॰20 से॰मी॰ लंबाई की 4॰5 आंखोवाली उंगली से थोड़ी मोटी शाखाओं के टुकड़ों को उपयोग में लाना चाहिए इन टुकड़ों को मई॰जून माह में लगाकर पौधशाला तैयारी करनी चाहिए कमल लगाते वक्त रेज्ड बेडस या पालीथीन बैग का प्रयोग करना चाहिए कमल के निचले हिस्सो को रूटेक्स पाउडर के घोल में 15॰20 मिनट डुबोकर रखने के बाद लगाना चाहिए पौधशाला का छाया में होना जरूरी होता है पौधशाला में एक दिन छोड़कर दूसरे दिन सिंचन करना चाहिए 30॰45 दिन बाद पौधे स्थानांतरण योग्य हो जाते हैं कृषि योग्य भूमि में खेती करते वक्त दो पौधे और कतार में 120॰150 से॰मी॰ का अंतर रखना चाहिए इस फसल को अतिरिक्त खाद देने की जरूरत नहीं है मगर स्थानांतरण के 20॰25 दिन बाद प्रति पौधा 15॰20 ग्राम नत्रजन की मात्रा देने से पौधे की वृद्धि में तेजी आती है
कटाई पौधा 10॰11 माह का होते ही गरमी में पतझड़ होने के बाद भूमि से 30 से॰मी॰ अंतर पर तेज धार के हंसिए से पौधा काटकर शाखाएं जमा कर लेनी चाहिए इन शाखाओं के 6॰10 से॰मी॰ लंबाई के टुकड़े करके हल्की धूप में सुखाना चाहिए या गिलोय सत्व निकालना चाहिए ।
उत्पादन अगर कृषि भूमि में 120 ग 150 से॰मी॰ पर खेती की गई हो तो गिलोय की सूखी हुई शाखाओं की प्रति एकड़ 4॰5 किंवटल उपज मिलती है इन शाखाओं से गिलोय सत्व तैयार किया जाता है यह गिलोय सत्व प्रति किलो शाखा से सिर्फ 200 ग्राम निकलता है
सिंचाई
पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद की जाती है। इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारियों में पानी का बहाव अधिक तेज न हो। दूसरी सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने | इसके बाद मृदा की संरचना तथा मौसम के अनुसार 15-25 दिन के अन्तराल पर 5 सिंचाईयां पर्याप्त होगी। फव्वारा विधि द्धारा बुवाई समेत पांच सिंचाईयां बुवाई के समय, दस, बीस, पचपन एवं अस्सी दिनों की अवस्था पर करें।
निराई-गुड़ाई
खरपतवार गिलोय की खेती में एक गंभीर समस्या है। प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद व दूसरी 55-60 दिन बाद करनी चाहिये। अतिरिक्त पौधों को हटाने के लिए निराई किया जाना चाहिए। गिलोय में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के समय दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन(स्टोम्प ) नामक खरपत वार नाशी की बाजार में उपलब्ध3.3 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहियेI इसके उपरान्त जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहियेI यदि मजदूरों की समस्या हो तो आक्सीडाईजारिल (राफ्ट)नामक खरपतवार-नाशी की बाजार में उपलब्ध 750 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये |
औषधीय उपयोग
गिलोय की मुख्यतः तना व शाखाएं गिलोय सत्व निकालने हेतु उपयोग में आते हैं वैसे जड़ फल तथा पत्तियां भी उपयोग में आती हैं
गिलोय का तना तथा सत्व त्रिदोशनाशक है सत्व का उपयोग खासी कफ श्वास रोग सिरदर्द ज्वर जीर्ण ज्वर वात ज्वर प्रसूति ज्वर कफ ज्वर मलेरिया टायफाइड नेत्ररोग तृष्णा अम्लपित्त वातपित्त वात विकार जोड़ो का दर्द सूजन प्रमेह पांडु क्षयरोग श्वेत प्रदर माताओं का दूध बढ़ाने हेतु प्लीहा रोग पीलिया हृदय दौर्बल्य रक्तचाप नियंत्रण या दिल की अनियमित धड़कन रक्त॰विकार मधुमेह पैर बिवाई वीर्य॰वृद्धि बंधत्व उपदंश कर्करोग इत्यादि विकारों की औषधीय निर्मितियों में होता है गिलोय की जड़े दमा सर्प विश उतारने कुष्ठ रोग निवारण हेतु उत्तम औषध तथा वमनकारक के तौर पर उपयोग में लाई जाती है गिलोय के फल पीलिया गठिया तथा शकितवर्धक के रूप में उपयोग होते है
क्षयरोग उत्पन्न करने वाले माइक्रोबैक्टीरियम टुबरकुलोसिस जीवाणु की वृद्धि को गिलोय सफलतापूर्वक रोकती है तथा इन जीवाणुओं के सिस्ट बनाने की किया में व्यवधान डालकर उसे नष्ट कर देती है । मूत्रवाही संस्थान तथा आंत्र संस्थान को प्रभावित करनेवाले एस्कोनिषिया कोलाइ नामक रोगाणु को भी जड़ से नष्ट कर देती है ।
गिलोय का रक्त प्रभाव शर्करा को कम कर देने वाला होता है हायपरग्लाइसीमिया में इसका लाभकारी एवं तुरंत परिणाम दिखाई देता है यह शरीर में इंसुलिन की उत्पतित व रक्त में उसकी घुलनषीलता ग्लूकोज जलाने की क्षमता को बढ़ाती है इससे रक्त शर्करा घटती है
गिलोय की पत्तियों में प्रोटीन कैलिसयम तथा फास्फोरस होने के कारण इसे पीलिया तथा गठिया में उपयोगी माना गया है ।
आयुर्वेदिक में गिलोय के योग से बनी कामयाब दवाइयां
गुडूच्यादि चूर्ण, गुडूच्यादि क्वाथ, गुडूचीलौह, अमृतादि क्वाथ, अमृतारिष्ट, गुडूची तैल आदि गिलोय-प्रधान योग हैं। इसको काढ़े के रूप में सेवन करने की मात्रा 50 मि.लि. (एक कप), चूर्ण के रूप में 3 से 5 ग्राम रस के रूप में 1 से 2 चम्मच बडा और सत्व के रूप में 1 या 2 ग्राम है। इसका उपयोग ठंड से चढने वाले बुखार, शुक्र-क्षय, कमजोरी और मूत्र-विकारों में बहुत ही लाभप्रद रहता है ।
1 आयुर्वेदाचार्य ज्यादातर गिलोय की डंडी का ही प्रयोग करते हैं ; पत्तों का नहीं उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है। डंडी को ऐसे भी चूस भी सकते है या आप चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी |
2 गिलोय क्वाथ से मरिचचूर्ण तथा शहद मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है।
3 गिलोय तथा अश्वगन्धा को दूध में पकाकर लेने से बांझपन दूर होता है।
4 गिलोय सत्व को आँवले के रस के साथ लेने से आँखों के कई रोग दूर होते है।
गिलोय का रस बनाने की विधि
गिलोय का रस पत्तो से तथा इसकी डंडी से बनाया जाता है और दोनों का ही अलग- अलग महत्त्व है तथा अलग-अलग रोगों के उपचार में प्रयोग किया है | जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी डंडी का अधिक महत्त्व होता है | गिलोय की तासीर गर्म होती है तथा यह एक हर्ब होती है इसलिए इसको अधिक मात्रा में या बिना सही जानकारी के ना पियें इससे नुकसान भी हो सकता है | गिलोय का रस तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है। गिलोय का रस बनाने के लिए इसकी डंडी लेकर काट कर छोटे-छोटे टुकड़े करके जूसर में डालकर जूस निकाल ले | बेहतर यह होगा की आप किसी पत्थर के सिल बट्टे पर इसको पीसे उसके बाद गिलोय की डंडी से बने इस पेस्ट को निचोड़ ले हालांकि यह थोडा कठिन होता है |
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