हरीतकी की खेती
हरीतकी (वानस्पतिक नाम:Terminalia chebula)
एक ऊँचा वृक्ष होता है एवं भारत में निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है। हिन्दी में इसे 'हरड़' और 'हर्रे' भी कहते हैं। आयुर्वेद ने इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं। फल एक से तीन इंच तक लंबे और अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं। कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। अप्रैल-मई में नए पल्लव आते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं। पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है।
जलवायु और मिट्टी
हरीतकी की प्रजातियों के प्राकृतिक निवास स्थान हिमालय की तराई है, हरीतकी के लिए तापमान 36 डिग्री सेल्सियस और 45 डिग्री सेल्सियस के बीच होना जरूरी है, और वर्षा 1200 मिमी से प्रतिवर्ष 3000 मिमी के बीच होनी चाहिए । हरीतकी किसी भी प्रकार के मिट्टी उत्पन्न हो जाती है | लेकिन हरीतकी के अच्छी उपज के लिए रेतीले दोमट के साथ-साथ मृण्मय दोमट मिट्टी जो मुख्य रूप में ढीला हो और अच्छी तरह से सूखा मिट्टी, पर सबसे अच्छा विकास पा लेता है। यह जंगल में खुले क्षेत्रों में बढ़ता है.
बीज और पौधे
हरीतकी के बीज पौधे से ही प्राप्त कर सकते है | इसका बीज फल के अच्छी तरह पक जाने के बाद यह पूरी तरह से पीले रंग के हो जाने के बाद बीज जैसे ही वे जमीन गिरने के बाद आप इसको मई-जून में गर्मियों में एकत्र कर सकते है|
कृषि तकनीक
1 नर्सरी तकनीक
2 रेजिंग प्रजनक
पौधे मौसम की शुरुआत जून - जुलाई में बोई जाती है | बीज को polybags में बोया जा सकता है। अगर बीज अंकुरण धीमी है, तो बीज pretreating द्वारा सुधार किया जा सकता है। बेड और polybags में मिट्टी कार्बनिक खाद की पर्याप्त अनुपात में डाले कम से कम 1 : 2 के अनुपात में होना चाहिए। कभी कभी अंकुरित बीज बेहतर दर प्राप्त करने के लिए बुवाई के लिए उपयोग किया जाता है। आम तौर पर, बड़े आकार के polybags, कम से कम 35 सेमी 22 सेमी ×, उपयोग किया जाता है, इसके बाद से पोधो में जड़ के विकास अपेक्षाकृत तेजी से होता है | Propagule दर और pretreatment 5 किलो बीज को आप अपने खेत में 1 हेक्टेयर में रोपण कर सकते है| depulped बीज या तो 15-20 दिनों की अवधि के लिए किण्वन प्रक्रिया द्वारा बिकसित किया जाना चाहिए, या आप बीज को नर्सरी बेड में बुवाई से पहले उनके व्यापक को काटा जा सकता है औरअगर आप बीज बोना पसंद करते है तो आप बीज को दो दिनों की अवधि के लिए पानी में भिगो कर छोर दे ताकि बीज अच्छी तरह से अंकुरित हो सके । वैकल्पिक रूप से आप बीज को गोबर गारा के साथ मिश्रित और एक से दो सप्ताह के लिए गड्ढे में रखा जा सकते है।
भूमि तैयार करना और उर्वरक
मिटटी को ठीक तरिके से झरझरा और भुरभुरा बना ले | गोल आकार के गढ्ढे खोदे जो 60 सेमी 60 सेमी 60 सेमी की 6 मीटर × 6 मीटर एक कतार में खोदा जाता है। प्रत्येक गड्ढे की मिट्टी के साथ 15 किलो FYM (farmyard खाद) और (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) एनपीके का एक मिश्रण 75:30:30 जी मिश्रित कर मिट्टी में पौधे और अंकुर की रोपाई कर सकते है।
सिंचाई
पौधे की सिचाई महीना में २ बार करनी जरूरी है | जिसे पौधे हिस्ट पुस्ट रहते है| पौधे की सिचाई मिट्टी में मौजूद नमी और मौसम पर निर्भर करता। गर्मी के मौसम में पोधो को हर एक सप्ताह में सिचई करना बहुत जरूरी है नहीं तो पौधे जल सकते है |
रोग और कीट नियंत्रण
पौधों मौसमी कीड़े और कीटों के हमलों जीवित रहने के लिए सक्षम हैं। क्लोरपाइरीफोस 20% चुनाव आयोग के साथ विरोधी दीमक उपचार दीमक की आशंका वाले क्षेत्रों में दी जानी चाहिए।
हरीतकी की सात जातियाँ होती हैं। यह सात जातियाँ इस प्रकार हैं:
1. विजया
2. रोहिणी
3. पूतना
4. अमृता
5. अभया
6. जीवन्ती
7. चेतकी।
हरीतकी पेट की बीमारियों के साथ और भी बहुत से बीमारियों में बेहद लाभ पहुंचाता है| हरड़ खाने के कुछ लाभ इस प्रकार है1
1 हरड़ से बनी गोलियों का सेवन करने से भूख बढ़ती है।
2 हरड़ का चूर्ण खाने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
3 उल्टी होने पर हरड़ और शहद का सेवन करने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
4 हरड़ को पीसकर आंखों के आसपास लगाने से आंखों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
5 भोजन के बाद अगर पेट में भारीपन महसूस हो तो हरड़ का सेवन करने से राहत मिलती है।
6 हरड़ का सेवन लगातार करने से शरीर में थकावट महसूस नहीं होती और स्फूर्ति बनी रहती है।
7 हरड़ का सेवन गर्भवती स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
8 हरड़ पेट के सभी रोगों से राहत दिलवाने में मददगार साबित हुई है।
9 हरड़ का सेवन करने से खुजली जैसे रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
10 अगर शरीर में घाव हो जांए हरड़ से उस घाव को भर देना चाहिए।
हरीतकी (वानस्पतिक नाम:Terminalia chebula)
एक ऊँचा वृक्ष होता है एवं भारत में निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है। हिन्दी में इसे 'हरड़' और 'हर्रे' भी कहते हैं। आयुर्वेद ने इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं। फल एक से तीन इंच तक लंबे और अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं। कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। अप्रैल-मई में नए पल्लव आते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं। पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है।
जलवायु और मिट्टी
हरीतकी की प्रजातियों के प्राकृतिक निवास स्थान हिमालय की तराई है, हरीतकी के लिए तापमान 36 डिग्री सेल्सियस और 45 डिग्री सेल्सियस के बीच होना जरूरी है, और वर्षा 1200 मिमी से प्रतिवर्ष 3000 मिमी के बीच होनी चाहिए । हरीतकी किसी भी प्रकार के मिट्टी उत्पन्न हो जाती है | लेकिन हरीतकी के अच्छी उपज के लिए रेतीले दोमट के साथ-साथ मृण्मय दोमट मिट्टी जो मुख्य रूप में ढीला हो और अच्छी तरह से सूखा मिट्टी, पर सबसे अच्छा विकास पा लेता है। यह जंगल में खुले क्षेत्रों में बढ़ता है.
बीज और पौधे
हरीतकी के बीज पौधे से ही प्राप्त कर सकते है | इसका बीज फल के अच्छी तरह पक जाने के बाद यह पूरी तरह से पीले रंग के हो जाने के बाद बीज जैसे ही वे जमीन गिरने के बाद आप इसको मई-जून में गर्मियों में एकत्र कर सकते है|
कृषि तकनीक
1 नर्सरी तकनीक
2 रेजिंग प्रजनक
पौधे मौसम की शुरुआत जून - जुलाई में बोई जाती है | बीज को polybags में बोया जा सकता है। अगर बीज अंकुरण धीमी है, तो बीज pretreating द्वारा सुधार किया जा सकता है। बेड और polybags में मिट्टी कार्बनिक खाद की पर्याप्त अनुपात में डाले कम से कम 1 : 2 के अनुपात में होना चाहिए। कभी कभी अंकुरित बीज बेहतर दर प्राप्त करने के लिए बुवाई के लिए उपयोग किया जाता है। आम तौर पर, बड़े आकार के polybags, कम से कम 35 सेमी 22 सेमी ×, उपयोग किया जाता है, इसके बाद से पोधो में जड़ के विकास अपेक्षाकृत तेजी से होता है | Propagule दर और pretreatment 5 किलो बीज को आप अपने खेत में 1 हेक्टेयर में रोपण कर सकते है| depulped बीज या तो 15-20 दिनों की अवधि के लिए किण्वन प्रक्रिया द्वारा बिकसित किया जाना चाहिए, या आप बीज को नर्सरी बेड में बुवाई से पहले उनके व्यापक को काटा जा सकता है औरअगर आप बीज बोना पसंद करते है तो आप बीज को दो दिनों की अवधि के लिए पानी में भिगो कर छोर दे ताकि बीज अच्छी तरह से अंकुरित हो सके । वैकल्पिक रूप से आप बीज को गोबर गारा के साथ मिश्रित और एक से दो सप्ताह के लिए गड्ढे में रखा जा सकते है।
भूमि तैयार करना और उर्वरक
मिटटी को ठीक तरिके से झरझरा और भुरभुरा बना ले | गोल आकार के गढ्ढे खोदे जो 60 सेमी 60 सेमी 60 सेमी की 6 मीटर × 6 मीटर एक कतार में खोदा जाता है। प्रत्येक गड्ढे की मिट्टी के साथ 15 किलो FYM (farmyard खाद) और (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) एनपीके का एक मिश्रण 75:30:30 जी मिश्रित कर मिट्टी में पौधे और अंकुर की रोपाई कर सकते है।
सिंचाई
पौधे की सिचाई महीना में २ बार करनी जरूरी है | जिसे पौधे हिस्ट पुस्ट रहते है| पौधे की सिचाई मिट्टी में मौजूद नमी और मौसम पर निर्भर करता। गर्मी के मौसम में पोधो को हर एक सप्ताह में सिचई करना बहुत जरूरी है नहीं तो पौधे जल सकते है |
रोग और कीट नियंत्रण
पौधों मौसमी कीड़े और कीटों के हमलों जीवित रहने के लिए सक्षम हैं। क्लोरपाइरीफोस 20% चुनाव आयोग के साथ विरोधी दीमक उपचार दीमक की आशंका वाले क्षेत्रों में दी जानी चाहिए।
हरीतकी की सात जातियाँ होती हैं। यह सात जातियाँ इस प्रकार हैं:
1. विजया
2. रोहिणी
3. पूतना
4. अमृता
5. अभया
6. जीवन्ती
7. चेतकी।
हरीतकी पेट की बीमारियों के साथ और भी बहुत से बीमारियों में बेहद लाभ पहुंचाता है| हरड़ खाने के कुछ लाभ इस प्रकार है1
1 हरड़ से बनी गोलियों का सेवन करने से भूख बढ़ती है।
2 हरड़ का चूर्ण खाने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
3 उल्टी होने पर हरड़ और शहद का सेवन करने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
4 हरड़ को पीसकर आंखों के आसपास लगाने से आंखों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
5 भोजन के बाद अगर पेट में भारीपन महसूस हो तो हरड़ का सेवन करने से राहत मिलती है।
6 हरड़ का सेवन लगातार करने से शरीर में थकावट महसूस नहीं होती और स्फूर्ति बनी रहती है।
7 हरड़ का सेवन गर्भवती स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
8 हरड़ पेट के सभी रोगों से राहत दिलवाने में मददगार साबित हुई है।
9 हरड़ का सेवन करने से खुजली जैसे रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
10 अगर शरीर में घाव हो जांए हरड़ से उस घाव को भर देना चाहिए।
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