कटहल की खेती
भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल कटहल विश्व में सबसे बड़ा फल होता है। इसका प्रयोग सब्जी में ही नहीं बल्कि आचार, पकौड़े, कोपते बनाने में भी किया जाता है जब यह पक जाता है तब इसके अंदर के मीठे फल को खाया जाता है जो कि बडा़ ही स्वादिष्ट लगता है। इसका स्वास्थ्य लाभ, आंखों तथा त्वचा पर भी देखने को मिलता है। इस फल में विटामिन 'ए' पाया जाता है जिससे आंखों की रौशनी बढती है और स्किन अच्छी होती है। यह रतौंधी को भी ठीक करता है। कटहल का पौधा 12-15 मि. ऊँचा होता हैं तथा इसका फैलाव भी अधिक होता हैं। पौधा लगाने के 5 से 8 वर्ष में फल प्राप्त होते हैं। वृक्ष अनेक वर्षों तक फल देता रहता हैं। फलों का भार 5 से 30 की.ग्रा. होता हैं फल मुख्यतया तना या मोटी शाखाओं पर लगते हैं। फल मार्च से जून तक प्राप्त हो जाते हैं।
कटहल उगाने वाले क्षेत्र
इसकी सर्वाधिक खेती असम में होती है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के राज्यों में भी इसकी बागवानी बड़े पैमाने पर की जाती है।
औषधीय महत्व
आयुर्वेद के अनुसार इसका कच्चा फल कसेला, वायुनाशक, बलवर्धक व कफनाशक होता हैं। इसका फल शीतल, बलवर्धक व उत्तेजक, मोटापा बढ़ाने वाला, पितदोष वात, श्वेत कुष्ठ, फोड़े में उपयोगी, कफहारी होता हैं। इसका बीज मीठा बलवर्धक और कब्जकारक होता हैं।
जलवायु और सिंचाई
गर्म और आर्द्र नम जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता हैं। लू और पाले से छोटे पौधों को हानि होती हैं। पौधे रोपने के बाद कुछ दिन तक बराबर पानी देते रहते हैं। गर्मियों में प्रति सप्ताह और जाड़े में 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। बड़े पेड़ों की गर्मी में 15 दिन और जाड़े में एक महीने के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए। नवम्बर-दिसम्बर माह में फूल आते हैं। इसलिए इस समय सिंचाई नहीं करना चाहिए
भूमि की तैयारी
कटहल के लिए गहरी उपजाऊ दोमट भूमि, जहां पानी का निकास अच्छा हो तथा जलस्तर 2 मीटर से निचे हो उपयुक्त होती हैं। एक मीटर लम्बे चौड़े व गहरे गड्ढे को 10 मीटर की दुरी पर तैयार करें। इनमे 50 की.ग्रा. गोबर की खाद +500 ग्राम सुपर फास्फेट + 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश +50 ग्राम 5% एण्डोसल्फान चूर्ण मिट्टी में मिलाकर पौधे लगाने के दस दिन पूर्व प्रति गड्ढे में भर दी जाती हैं। गड्ढे अप्रेल-मई माह में खोद लें। पौधे वर्षा ऋतू आरम्भ होने पर जून-जुलाई में लगाए।
पौध तैयार करना
बीज द्वारा प्रवर्धन किया जाता हैं। गुटी विधि से भी पौधे तैयार किए जाते हैं।
अच्छे स्वस्थ पके फलों के बीजों को निकालकर उन्हें एक की.ग्रा. पॉलीथिन की थैली में या गमलों में बीज को बो कर तैयार किया जाता हैं। जब पौधे 1 से 2 माह के हो जाते हैं तो उन्हें निश्चित स्थान पर सावधानी से लगा दिया जाता हैं। नवीन रोपित पौधे अधिक मरते हैं तथा वृक्षों में फूल नहीं आते हैं। इसका कारण यह हैं की स्थानांतरण में हुई जड़ों की क्षति पूर्ति को पूरा नहीं कर पते हैं। इसलिए कटहल के बीजों की उचित स्थान पर गड्ढा तैयार कर बुवाई कर देनी चाहिए। एक गड्ढे में कम से कम दो तीन बीज होना चाहिए। जब पौधे विकसित हो जाए तब एक स्वस्थ व ओजस्वी पौधा छोड़ कर अन्य को निकाल देना चाहिए।
रोग एवं उपचार
कटहल की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?
(i) फल सड़न रोग_ यह रोग राइजोपस आर्टोकार्पी नामक फफूँद के कारण होता है। इस रोग के प्रकोप से छोटे फल डंठल के पास से धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं। कभी-कभी विकसित फल को भी सड़ जाते हैं। रोग के नियंत्रण हेतु रोग के लक्षण दिखते ही ब्लू कॉपर के 0.3% घोल का 2 छिड़काव 15 से 20 दिनों के अंतराल पर करना चाहिये।
खरपतवार नियंत्रण
निकाई-गुड़ाई करके पौधे के थाले साफ़ रखने चाहिए। बड़े पेड़ों के बागों की वर्ष में दो बार जुताई करनी चाहिए।
सहायक मशीनें
मिट्टी पलट हल, देशी हल, हैरों, खुर्पी, कुदाल,फावड़ा, हसियाँ इत्यादि यंत्रों की आवश्यकता होती है।
कटहल की किस्में
रुद्रासी
फल छोटे तथा काटे वाले होते हैं। इनका भार 4-5 की.ग्रा. तक होता हैं। फल गुच्छो में आते हैं। पूर्ण अवस्था प्राप्त वृक्ष में कभी-कभी ५०० से भी अधिक फल लग जाते हैं।
खाजा
यह सफेद कोये वाली फसल हैं। फल भार 25-30 की.ग्रा. होता हैं। खाने वाली किस्मों में यह सर्वोत्तम किस्म हैं।
सिंगापूर
वृक्षों में फूल लगने के तीन वर्ष बाद ही फल आने लगते हैं। फल आकार में बड़े होते हैं। वृक्षों पर अधिक समय तक फल आते हैं।
खाद एवं उर्वरक प्रति पौधे के लिए
पौधे की आयु गोबर की खाद (की.ग्रा.) नाइट्रोजन (ग्राम) स्फुर (ग्राम) पोटाश (ग्राम)
1 माह 100
1 वर्ष 10 200 250 75
2 वर्ष 20 300 500 275
3 वर्ष 40 400 1 की.ग्रा. 450
4 वर्ष 60 800 2 की.ग्रा. 900
5 वर्ष 80 1200 2.5 की.ग्रा. 1250
6 वर्ष तथा उसके बाद 100 1600 3 की.ग्रा. 1750
भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल कटहल विश्व में सबसे बड़ा फल होता है। इसका प्रयोग सब्जी में ही नहीं बल्कि आचार, पकौड़े, कोपते बनाने में भी किया जाता है जब यह पक जाता है तब इसके अंदर के मीठे फल को खाया जाता है जो कि बडा़ ही स्वादिष्ट लगता है। इसका स्वास्थ्य लाभ, आंखों तथा त्वचा पर भी देखने को मिलता है। इस फल में विटामिन 'ए' पाया जाता है जिससे आंखों की रौशनी बढती है और स्किन अच्छी होती है। यह रतौंधी को भी ठीक करता है। कटहल का पौधा 12-15 मि. ऊँचा होता हैं तथा इसका फैलाव भी अधिक होता हैं। पौधा लगाने के 5 से 8 वर्ष में फल प्राप्त होते हैं। वृक्ष अनेक वर्षों तक फल देता रहता हैं। फलों का भार 5 से 30 की.ग्रा. होता हैं फल मुख्यतया तना या मोटी शाखाओं पर लगते हैं। फल मार्च से जून तक प्राप्त हो जाते हैं।
कटहल उगाने वाले क्षेत्र
इसकी सर्वाधिक खेती असम में होती है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के राज्यों में भी इसकी बागवानी बड़े पैमाने पर की जाती है।
औषधीय महत्व
आयुर्वेद के अनुसार इसका कच्चा फल कसेला, वायुनाशक, बलवर्धक व कफनाशक होता हैं। इसका फल शीतल, बलवर्धक व उत्तेजक, मोटापा बढ़ाने वाला, पितदोष वात, श्वेत कुष्ठ, फोड़े में उपयोगी, कफहारी होता हैं। इसका बीज मीठा बलवर्धक और कब्जकारक होता हैं।
जलवायु और सिंचाई
गर्म और आर्द्र नम जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता हैं। लू और पाले से छोटे पौधों को हानि होती हैं। पौधे रोपने के बाद कुछ दिन तक बराबर पानी देते रहते हैं। गर्मियों में प्रति सप्ताह और जाड़े में 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। बड़े पेड़ों की गर्मी में 15 दिन और जाड़े में एक महीने के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए। नवम्बर-दिसम्बर माह में फूल आते हैं। इसलिए इस समय सिंचाई नहीं करना चाहिए
भूमि की तैयारी
कटहल के लिए गहरी उपजाऊ दोमट भूमि, जहां पानी का निकास अच्छा हो तथा जलस्तर 2 मीटर से निचे हो उपयुक्त होती हैं। एक मीटर लम्बे चौड़े व गहरे गड्ढे को 10 मीटर की दुरी पर तैयार करें। इनमे 50 की.ग्रा. गोबर की खाद +500 ग्राम सुपर फास्फेट + 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश +50 ग्राम 5% एण्डोसल्फान चूर्ण मिट्टी में मिलाकर पौधे लगाने के दस दिन पूर्व प्रति गड्ढे में भर दी जाती हैं। गड्ढे अप्रेल-मई माह में खोद लें। पौधे वर्षा ऋतू आरम्भ होने पर जून-जुलाई में लगाए।
पौध तैयार करना
बीज द्वारा प्रवर्धन किया जाता हैं। गुटी विधि से भी पौधे तैयार किए जाते हैं।
अच्छे स्वस्थ पके फलों के बीजों को निकालकर उन्हें एक की.ग्रा. पॉलीथिन की थैली में या गमलों में बीज को बो कर तैयार किया जाता हैं। जब पौधे 1 से 2 माह के हो जाते हैं तो उन्हें निश्चित स्थान पर सावधानी से लगा दिया जाता हैं। नवीन रोपित पौधे अधिक मरते हैं तथा वृक्षों में फूल नहीं आते हैं। इसका कारण यह हैं की स्थानांतरण में हुई जड़ों की क्षति पूर्ति को पूरा नहीं कर पते हैं। इसलिए कटहल के बीजों की उचित स्थान पर गड्ढा तैयार कर बुवाई कर देनी चाहिए। एक गड्ढे में कम से कम दो तीन बीज होना चाहिए। जब पौधे विकसित हो जाए तब एक स्वस्थ व ओजस्वी पौधा छोड़ कर अन्य को निकाल देना चाहिए।
रोग एवं उपचार
कटहल की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?
(i) फल सड़न रोग_ यह रोग राइजोपस आर्टोकार्पी नामक फफूँद के कारण होता है। इस रोग के प्रकोप से छोटे फल डंठल के पास से धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं। कभी-कभी विकसित फल को भी सड़ जाते हैं। रोग के नियंत्रण हेतु रोग के लक्षण दिखते ही ब्लू कॉपर के 0.3% घोल का 2 छिड़काव 15 से 20 दिनों के अंतराल पर करना चाहिये।
खरपतवार नियंत्रण
निकाई-गुड़ाई करके पौधे के थाले साफ़ रखने चाहिए। बड़े पेड़ों के बागों की वर्ष में दो बार जुताई करनी चाहिए।
सहायक मशीनें
मिट्टी पलट हल, देशी हल, हैरों, खुर्पी, कुदाल,फावड़ा, हसियाँ इत्यादि यंत्रों की आवश्यकता होती है।
कटहल की किस्में
रुद्रासी
फल छोटे तथा काटे वाले होते हैं। इनका भार 4-5 की.ग्रा. तक होता हैं। फल गुच्छो में आते हैं। पूर्ण अवस्था प्राप्त वृक्ष में कभी-कभी ५०० से भी अधिक फल लग जाते हैं।
खाजा
यह सफेद कोये वाली फसल हैं। फल भार 25-30 की.ग्रा. होता हैं। खाने वाली किस्मों में यह सर्वोत्तम किस्म हैं।
सिंगापूर
वृक्षों में फूल लगने के तीन वर्ष बाद ही फल आने लगते हैं। फल आकार में बड़े होते हैं। वृक्षों पर अधिक समय तक फल आते हैं।
खाद एवं उर्वरक प्रति पौधे के लिए
पौधे की आयु गोबर की खाद (की.ग्रा.) नाइट्रोजन (ग्राम) स्फुर (ग्राम) पोटाश (ग्राम)
1 माह 100
1 वर्ष 10 200 250 75
2 वर्ष 20 300 500 275
3 वर्ष 40 400 1 की.ग्रा. 450
4 वर्ष 60 800 2 की.ग्रा. 900
5 वर्ष 80 1200 2.5 की.ग्रा. 1250
6 वर्ष तथा उसके बाद 100 1600 3 की.ग्रा. 1750
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