तुलसी के पौधा
तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
जलवायु
तुलसी को शुष्क एवं अर्ध शुष्क जलवायु की विस्तृत दशाओं के मध्य आसानी से उगाया जा सकता है ।इसके बीजों से अंकुरण के समय कुछ गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता पड़ती है ।इसकी पुष्पावस्था गिरते हुए तापक्रम के साथ बरसाती मौसम के बाद आती है इसको कम वर्षा तथा अधिक वर्षा वाले दोनों क्षेत्रों में समान रूप से उगाया जा सकता है।इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों में असमान एवं त्रुटी पूर्ण वर्षा होती है अथवा जो सूखा प्रभावित क्षेत्र है, के लिए भी यह उपयुक्त पौधा है।
मिट्टी
यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले, और दोमट मिट्टी काली मिट्टी में होता है। दोमट भूमि में इसकी खेती अच्छी होती है। जल जमाव वाले क्षेत्र उपयुक्त नहीं हैं।
प्रवर्धन विधि
तुलसी का प्रवर्धन मुख्यत: बीजों द्वारा होता है । यह प्राकृतिक रूप से भी जंगलों में नमी के कारण अंकुरित होकर स्वत: उग आता है ।परन्तु इस तरह से उपजे पौधों की वृद्धि कम ही रहती है तथा वांछित उपज नहीं मिलती है अत: अच्छी उपज लेने के लिए हमें निम्न तीन विधियों द्वारा प्रवर्धन करना पड़ता है।
मौसम
हालांकि तुलसी किसी भी मौसम में लगायी जा सकती है, लेकिन सितंबर से नवंबर तक का महीना इसे लगाए जाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा इसका भी ध्यान रखें कि जब भी आप नर्सरी या किसी से मांगकर तुलसी का कोई पौधा अपने घर लगाने के लिए लाते हैं तो वह बिल्कुल नई पौध हो।
कहने का अर्थ यह कि वह बहुत बड़ा पौधा नहीं होना चाहिए क्योंकि तब तक उसकी जड़ें विकास कर चुकी होंगी और आप चाहे उसे किसी भी प्रकार से लगाएं लेकिन पौधा बहुत अच्छा विकास नहीं करेगा।
कैसे तैयार करें मिट्टी
90 प्रतिशत मिट्टी और 10 प्रतिशत गोबर का खाद लेकर उसे अच्छी तरह मिलाते हुए एकदम भुरभुरा कर लें। अगर पीली या चिकनी मिट्टी हो तो 60 प्रतिशत मिट्टी, 30 प्रतिशत बालू और 10 प्रतिशर गोबर की खाद लें। बर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद भी ले सकत हैं लेकिन रासायनिक खाद ना लें। तुलसी एक आयुर्वेदिक औषधि भी है और रासायनिक खाद इसके गुणों को नष्ट कर सकते हैं।
गोबर की खाद इस्तेमाल करते हुए भी यह ध्यान रखें कि इसे बहुत अधिक मात्रा में इस्तेमाल ना करें। ज्यादातर लोग इसे खाद समझकर ज्यादा इस्तेमाल कर लेते हैं कि इससे पौधा और ज्यादा तेजी से बढ़ेगा, जबकि इसके ज्यादा इस्तेमाल से यह पौधे की जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है और आपकी तुलसी नहीं बढ़ेगी।
रोपण
गमले में इस मिट्टी को दबाते हुए पूरा भरें। इससे मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाएगी और पौधा गिरने से बचेगा। ऊपर तक मिट्टी भरने के बाद इसके बीच एक गहरा छेद बनाएं और उसमें तुलसी का पौधा लगा दें। मिट्टी से उसकी जड़ों को ढंकते हुए फिर से अच्छी प्रकार दबाएं। पानी से गमला भर दें। रोजाना पानी दें और 2 से 3 महीनों तक इसे छाया में ही रखें। इसके बाद हल्की-हल्की धूप लगाएं।
सिंचाई
नर्सरी में बीज बोने के बाद अच्छा अंकुरण होने के लिए नित्य सुबह-सायं फव्वारे से पानी देना आवश्यक है ।रोपण से एक माह पहले पौधों को पानी की मात्रा कम क्र देनी चाहिए ताकि पौधे सख्त (हार्डनिंग) हो सकें।
खाद एवं उर्वरक
रोपण से पूर्व गड्ढे और खेत की मिट्टी में (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें। दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर (50 ग्राम ) प्रति गड्डा में डालें, तत्पश्चात पौधा रोपण करें।
खरपतवार नियंत्रण
नर्सरी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण हेतु विशेष ध्यान रखें तथा रोपा फसल में फावड़े, खुरपी आदि की मदद से घास हटा दें। वर्षा ऋतु में प्रत्येक माह खरपतवार नियंत्रण करें।
रोग नियंत्रण
कोमल पौधों में जड़-सड़न तथा तना बिगलन रोग मुख्य है। नर्सरी तथा पौधों में रोग के लक्षण होने पर 2 ग्राम बीजोपचार मिश्रण प्रति लीटर पानी में घोल को सप्ताह में दो बार छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण
कोमल पौधों में कटूवा (सूंडी) तने को काट सकता है। इसके लिए Lindane या Follidol धूल का सूखा पाउडर भूरकाव से नियंत्रण किया जा सकता है। माइट के प्रकोप से बचाव के लिए 1 मिली लीटर मेटासिस्टॉक्स दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
प्रजातियाँ
तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:
१- ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
२- ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
३- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
४- आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
५- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
६- ऑसीमम सैक्टम
७- ऑसीमम विरिडी।
तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
जलवायु
तुलसी को शुष्क एवं अर्ध शुष्क जलवायु की विस्तृत दशाओं के मध्य आसानी से उगाया जा सकता है ।इसके बीजों से अंकुरण के समय कुछ गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता पड़ती है ।इसकी पुष्पावस्था गिरते हुए तापक्रम के साथ बरसाती मौसम के बाद आती है इसको कम वर्षा तथा अधिक वर्षा वाले दोनों क्षेत्रों में समान रूप से उगाया जा सकता है।इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों में असमान एवं त्रुटी पूर्ण वर्षा होती है अथवा जो सूखा प्रभावित क्षेत्र है, के लिए भी यह उपयुक्त पौधा है।
मिट्टी
यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले, और दोमट मिट्टी काली मिट्टी में होता है। दोमट भूमि में इसकी खेती अच्छी होती है। जल जमाव वाले क्षेत्र उपयुक्त नहीं हैं।
प्रवर्धन विधि
तुलसी का प्रवर्धन मुख्यत: बीजों द्वारा होता है । यह प्राकृतिक रूप से भी जंगलों में नमी के कारण अंकुरित होकर स्वत: उग आता है ।परन्तु इस तरह से उपजे पौधों की वृद्धि कम ही रहती है तथा वांछित उपज नहीं मिलती है अत: अच्छी उपज लेने के लिए हमें निम्न तीन विधियों द्वारा प्रवर्धन करना पड़ता है।
मौसम
हालांकि तुलसी किसी भी मौसम में लगायी जा सकती है, लेकिन सितंबर से नवंबर तक का महीना इसे लगाए जाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा इसका भी ध्यान रखें कि जब भी आप नर्सरी या किसी से मांगकर तुलसी का कोई पौधा अपने घर लगाने के लिए लाते हैं तो वह बिल्कुल नई पौध हो।
कहने का अर्थ यह कि वह बहुत बड़ा पौधा नहीं होना चाहिए क्योंकि तब तक उसकी जड़ें विकास कर चुकी होंगी और आप चाहे उसे किसी भी प्रकार से लगाएं लेकिन पौधा बहुत अच्छा विकास नहीं करेगा।
कैसे तैयार करें मिट्टी
90 प्रतिशत मिट्टी और 10 प्रतिशत गोबर का खाद लेकर उसे अच्छी तरह मिलाते हुए एकदम भुरभुरा कर लें। अगर पीली या चिकनी मिट्टी हो तो 60 प्रतिशत मिट्टी, 30 प्रतिशत बालू और 10 प्रतिशर गोबर की खाद लें। बर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद भी ले सकत हैं लेकिन रासायनिक खाद ना लें। तुलसी एक आयुर्वेदिक औषधि भी है और रासायनिक खाद इसके गुणों को नष्ट कर सकते हैं।
गोबर की खाद इस्तेमाल करते हुए भी यह ध्यान रखें कि इसे बहुत अधिक मात्रा में इस्तेमाल ना करें। ज्यादातर लोग इसे खाद समझकर ज्यादा इस्तेमाल कर लेते हैं कि इससे पौधा और ज्यादा तेजी से बढ़ेगा, जबकि इसके ज्यादा इस्तेमाल से यह पौधे की जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है और आपकी तुलसी नहीं बढ़ेगी।
रोपण
गमले में इस मिट्टी को दबाते हुए पूरा भरें। इससे मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाएगी और पौधा गिरने से बचेगा। ऊपर तक मिट्टी भरने के बाद इसके बीच एक गहरा छेद बनाएं और उसमें तुलसी का पौधा लगा दें। मिट्टी से उसकी जड़ों को ढंकते हुए फिर से अच्छी प्रकार दबाएं। पानी से गमला भर दें। रोजाना पानी दें और 2 से 3 महीनों तक इसे छाया में ही रखें। इसके बाद हल्की-हल्की धूप लगाएं।
सिंचाई
नर्सरी में बीज बोने के बाद अच्छा अंकुरण होने के लिए नित्य सुबह-सायं फव्वारे से पानी देना आवश्यक है ।रोपण से एक माह पहले पौधों को पानी की मात्रा कम क्र देनी चाहिए ताकि पौधे सख्त (हार्डनिंग) हो सकें।
खाद एवं उर्वरक
रोपण से पूर्व गड्ढे और खेत की मिट्टी में (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें। दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर (50 ग्राम ) प्रति गड्डा में डालें, तत्पश्चात पौधा रोपण करें।
खरपतवार नियंत्रण
नर्सरी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण हेतु विशेष ध्यान रखें तथा रोपा फसल में फावड़े, खुरपी आदि की मदद से घास हटा दें। वर्षा ऋतु में प्रत्येक माह खरपतवार नियंत्रण करें।
रोग नियंत्रण
कोमल पौधों में जड़-सड़न तथा तना बिगलन रोग मुख्य है। नर्सरी तथा पौधों में रोग के लक्षण होने पर 2 ग्राम बीजोपचार मिश्रण प्रति लीटर पानी में घोल को सप्ताह में दो बार छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण
कोमल पौधों में कटूवा (सूंडी) तने को काट सकता है। इसके लिए Lindane या Follidol धूल का सूखा पाउडर भूरकाव से नियंत्रण किया जा सकता है। माइट के प्रकोप से बचाव के लिए 1 मिली लीटर मेटासिस्टॉक्स दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
प्रजातियाँ
तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:
१- ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
२- ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
३- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
४- आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
५- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
६- ऑसीमम सैक्टम
७- ऑसीमम विरिडी।
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