सेब की खेती
सेब एक फल है। सेब का रंग लाल या हरा होता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे मेलस डोमेस्टिका (Melus domestica) कहते हैं। इसका मुख्यतः स्थान मध्य एशिया है। इसके अलावा बाद में यह यूरोप में भी उगाया जाने लगा। सेब के देलिशस बर्ग की किस्मो की खेती 2400 मी. तक या इससे अध्क ऊंचाई तथा उत्तरी ढलान पर 3400 मी तक करना लाभकारी पाया गया है | इस उचाई तथा इससे काम ऊंचाई 1500 मी ऊंचाई पर स्पर किस्मे उगाई जा सकती है |
व्युत्पत्ति
यह भारत के उत्तरी प्रदेश हिमाचल , शिमला जम्मू और कश्मीर में पैदा होता है , आज कल उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों पर इसके खेती की जा रही है , इसमे विटामिन होते हैं।
सेब की उन्नत किस्मे
शीघ्र तैयार होने बाली किस्मे :- अर्ली संवरी , फैनी , बिनोनी , चाबै टीया प्रिंस जे , चाबै टीया प्रिंस अनुपम , टिडमने अर्ली बरसेस्टर , वेन्स देलिशस
मध्य अब्धि :- रेड डेलिशस , रॉयल डेलिशस, गोल्डेन डेलिशस , रिच - ए - रेड, कोर्ट लैंड , रेड गोल्ड मैकिन टॉस रेड़स्पर , गोल्ड स्पार , स्कॉरलेटगाला , आर्गन्सपर , रेडचीफ , रॉयलगाला , रीगल गाला
देर से पकने बाला सेब :- रयमर , बंकिघम , गेनिसिमिथ, अम्ब्री , रेड फुजी
प्रागण कर्ता किस्मे :- अगेती किस्मे को मिला कर लगाने से प्रागण करता किस्मो की आवशयकता नहीं होती है | देलिशस समूह के लिए रेड गोल्ड तथा देलिशस परप्रागण के लिए २०-२५ प्रतिसत लगाना चाहिए
सेब के रोपण की दर एबं बिधि
6 मीटर कतार से कतार तथा 6 मीटर पौधे रोपण की कंटूर बिधि अपनानी चाहिए | इस बिधि में पौधे की कतारे समान ढाल पर बनाई जाती है जो अधिकतर ढाल से समकोण पर होती है | गड्ढे का आकर 1 मीटर लम्बा और 1 ,मीटर चौड़ा तथा 1 मीटर गहरा बनाना चाहिए | गड्ढे की खुदाई तथा भराई नबम्बर - दिसम्बर माह में पूरा क्र लेना चाहिए | 1 गड्ढे में 30 -40 किलो ग्राम अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद तथा क्लोरपायरीफास का चूर्ण (5 %) के 200 ग्राम को अच्छी तरह मिट्टी में मिला कर गड्ढे को खूब दबा कर भरना चाहिए | और समय - समय पर गड्ढे को सिचाई करनी चाहिए | जनवरी - फरवरी महीना में पौधे को रोपाई करे ध्यान रखे की पौधे का जड़ पूरी तरह से जमीन के अंदर होनी चाहिए | पौधा रोपने के तुरंत बाद उसकी सिंचाई करनी चाहिए | पौधे की सिचाई 2 से 4 दिन के अंदर करना जरुरी है |
उर्बरक एबं खाद
तौलिये या थाला में डालना: तौलिये में छोटे पौधों में आधा व बड़े पौधों में एक फुट की तने से दूरी रखते हुए खादें डाल दी जाती है| खादें पौधों की टहनियों के फैलाव के नीचे बिखेर कर डालने के बाद मिट्टी में मिला दी जाती है| मिट्टी में खादें मिलाना अति आवश्यक होता है| जब बहुत ज्यादा नमी हो या बहुत ज्यादा सुखा पड़ रहा हो तो कहें न डालें|
पट्टी में खाद डालना: टहनियों के फैलाव के बाहरी घेरे में 20-25सेंटीमीटर पट्टी में खादें डाल दी जाती है और ऊपर से ढक दिया जाता है| ऐसे विधि वहीँ प्रयोग में लाई जाती है जहाँ ज्यादा बरसात होती है|
छिड़काव विधि: पत्तों के ऊपर छिड़काव किया जाता अहि| ज्यादातर यूरिया खाद को पानी में घोल कर उसे छिड़काव द्वारा पत्तों पर डाला जाता है|
बिखरे कर डालना: पौधों की दो पत्तियों के बीच में पौधों से उचित दूरी बनाते हुए खेत में बिखरे कर खादें डाल दी जाती हैं| हिमाचल प्रदेश में इस विधि को कम ही प्रयोग किया जाता है और उन सेब के बगीचों में प्रयोग किया जाता है जहाँ तौलिये के बदले पूरा खेत ही साफ रखा हो|
खाद व उर्वरकों डालने की मात्रा |
उर्बरक का प्रयोग मिट्टी के आधार पर करनी चाहिए इसके अभाब में 10 किलो सड़ी हुयी गोबर खाद।, 70 ग्राम नाइट्रोजन , 35 ग्राम फास्फोरस तथा 70 ग्राम पोटास प्रति बर्ष आयु के अनुशार देना चाहिए
खादें डालने की मुख्य विधियाँ
सेब की बागवानी में निम्नलिखित सारणी सुझाई गई है:
पौधे की आयु गोबर की खाद (कि.ग्रा.) कैन खाद (ग्राम) सुपर फास्फेट (ग्राम) म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (ग्राम)
1 10 280 220 120
2 20 560 440 240
3 30 840 660 360
4 40 1120 880 480
5 50 1400 1100 600
6 60 1680 1320 720
7 70 1960 1540 840
8 80 2240 1760 960
9 90 2520 1980 1080
10 और ऊपर 100 2800 2200 1200
अफलित वर्ष 100 2000 1560 665
ध्यान देने योग्य विशेष सुझाव
1 खादें व उर्वरक पहले सुझाई गई विधियों द्वारा डालें| उन जगहों में जहाँ पोषक तत्वों की अधिकता हो वहां ऊपर दी गई मात्रा का आधा ही डालें|
2 जिस वर्ष फसल न लगी हो उस वर्ष सारणी में अफलित वर्ष की दी गई मात्रा ही डालें|
3 सभी गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, पोटाश को दिसम्बर-जनवरी में डाल दें क्योंकि इनको उपलब्ध होने की दशा में पहुँचने में एक महीने से ऊपर समय लगता है या फिर कलियाँ फूटने से एक महीना पहले डालें|
4 नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने से 2 या 3 सप्ताह पहले डालें| यह समय मार्च तीसरे सप्ताह से मार्च अंत का चलता है|
5 नत्रजन की बाकी मात्रा पहली डाली गई मात्रा के एक महीने बाद डालें|
6 जहाँ लगातार सूखे की सम्भावना बनी रहती हो वहां पर सारी खादें के ही समय में डाल दें|
7 यदि किसी कारणवश नत्रजन की दूसरी मात्रा नहीं डाल सकें तब एक किलोग्राम यूरिया का प्रति ड्रम की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|
8 फास्फोरस की खाद का प्रयोग हो वर्ष में एक बार ही करें|
9 यदि फल भंडारण करना हो तो फल तोड़ने से 30 और 45 दिन पहले कैल्शियम क्लोराइड एक किलोग्राम प्रति ड्रम (200 लीटर) के घोल का स्प्रे करें|
10 जिस वर्ष बहुत ज्यादा फसल लगी हो, तब 2 किलिग्राम यूरिया का छिड़काव (200 लीटर पानी में) फल तोड़ने के बाद करें|
11 पत्ते गिरने से पहले 8-10 किलिग्राम यूरिया प्रति 200 लीटर पानी में घोलने के बाद छिड़काव करें|
12 छिड़काव सुबह व शाम को ही करें, तेज धूप या वर्षा की सम्भावना होने पर छिड़काव न करें|
13 पोषक तत्वों का अलग ही छिड़काव करें| पौधों की सुप्प्तावस्था या फिर फूलने के समय कोई पोषक तत्वों का छिड़काव न करें|
14 चूने का पौधे पर छिड़काव न करें और सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव तभी करें जब आपको विशेषज्ञ ने इसकी सलाह दी हो|
15 छिड़काव पौधों में ऊपर से शूरू करें और खादें डालने के बाद उनको मिलाना न भूलें|
सिचाई , निराई - गुड़ाई
पहाड़ी क्षेत्र में सेब की खेती असिंचित दसा में की जाती है | तथा नमी के संरक्षण के उपाय करने चाहिए | तथा सेब के खेत में खर पतबार उगने नहीं देना चाहिए इसके साथ साथ मार्च माह में 10 CM मोटी सुखी घास या पेड़ो की पतियों की तरह प्रत्येक पौधे के थाले में बिछा देनी चाहिए | ये बिधि नमि की सुरक्षा करती है | मार्च से जून माह तक फलो की वृद्धि के समय आवस्य्क्ता अनुसार सिचाई करनी चाहिए |
1. नमी सरंक्षण : मल्चिंग से मृदा की नमी को सरंक्षित किया जा सकता है, पानी के वाष्पीकरण न होने के कारण यह पौधे के लिए लम्बे समय तक उपलब्ध रहता है |
2. तापमान नियंत्रण : मल्चिंग के इस्तेमाल से मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है | जिससे जड़ों का उचित विकास होता है |
3. खरपतवार (Weeds) नियंत्रण : मल्चिंग के रहते सूर्य का प्रकाश खरपतवार के बीजों को नहीं मिल पाता, साथ ही मल्चिंग की परत खरपतवारों को उगने ही नहीं देती |
4. मिट्टी को नरम रखना : तौलिये के जिस भाग में मल्चिंग की जाती है वहां पर मिट्टी नरम/भुरभुरी रहती है, परिणामस्वरूप जड़ों के लिए हवा का आदान प्रदान बना रहता है |
5. मिट्टी में कार्बन तत्व की बढोतरी: घास, पतियों आदि से की गयी मल्च समय के साथ साथ सड़ती जाती है जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में बढोतरी होती है |
6. मिट्टी के अपरदन (Erosion) को रोकना : खासकर ढलानदार क्षेत्रों में जहाँ पानी के तेज बहाव के कारण अक्सर मिट्टी बह कर चली जाती है वहीँ मल्चिंग से इसे बचाया जा सकता है |
मल्चिंग के लिए घास, पत्ते, छोटी छोटी टहनियां, तिनके आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है | इसकी परत की मोटाई लगभग 4-5 इंच होनी चाहिए | इसके आलावा प्लास्टिक की मल्च का इस्तेमाल भी लाभप्रद रहता है | सेब के बगीचों में इस्तेमाल होनी वाली प्लास्टिक मल्च लगभग 200 GSM की होनी चाहिए | दोहरे रंग (सिल्वर और काली) वाली शीट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए | जिसमें चमकीली सतह ऊपर की तरफ और काली सतह नीचे तरफ रखना लाभदायक रहता है | आजकल मार्केट में मल्च मैट भी आ गयी है जिसके प्रयोग मल्चिंग से होने वाले सभी फायदे तो होते ही हैं, साथ में बारिश का पानी भी तौलियों में रिस जाता है
सेब को हानि पहुंचाने बाले कीट
संजोल स्केल
इस किट का शरीर काळा भूरे रंग के स्केल से ढका रहता है | यह किट फ्लो का रस चूस कर फलो को हानि पहुँचती है
नियंत्रण
पौधे की कटाई छटाई के समय (दिसम्बर से जनवरी माह में ) मिथाइल आड़े मेटान या दमेथोएट के। 0.1 % घोल का छिड़ कब करनी चाहिए या 15 दिन के अंदर करनी चाहिए अथवा 3 % ट्री आयल या 4 % डीजल तेल का छिड़काब करे |
उली एफिश
यह किट सफेद रुई जैसे पदार्थ के निचे गुलाबी रंग के महू के रूप में पौधे की जड़े , तना की छाल , कोमल टहनी तथा पतियों का रश चुस्त है | जड़ो में प्रकोप होने पर गांठ बन जाती है
नियंत्रण मिथाइल आड़े मेटान या डाइमेथोएट के ०. १ % घोल का छिड़काब अप्रैल - मई तथा सिप्टेम्बर माह में करनी चाहिए |
टेंट केटर पिलर
तना बेधक किट
किट तनो में छेद कर अंदर घुस कर तने को खा जाते है तथा बाहर निकले बुरादे से इसकी पहचान होती है
नियंत्रण
डाई मेथोएट के ०. ०३ % घोल में ृय डुबो कर तर की सहायता से छेड़ो में ठूस दे |..
सेब में सूक्ष्म व अन्य पोषक तत्वों की कमी दूर करने हेतु छिड़काव
कुछ पौधों पर नाइट्रोजन, जस्ता, सुहागा, मैगनीज व कैल्शियम की कमी हो जाती है| इनमें से मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाशियम को भूमि में डालना चाहिए जबकि सूक्ष्म पोषक तत्वों को छिड़काव द्वारा देना चाहिए| जहाँ नाइट्रोजन का अभाव हो वहां पौधों पर 1% यूरिया (2 किलिग्राम 200लीटर पानी) के छिड़काव द्वारा इस आभाव को पूरा किया जा सकता है| पोषक तत्वों का छिड़काव फूलों की पंखुडियां झड़ जाने के 10-15 दिन के बाद करना चाहिये| सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए नीचे दी गई सारणी के अनुसार छिड़काव करें|
तत्व प्रयुक्त रसायन मात्रा 200 लीटर पानी में छिड़काव अंतराल छिडकाव समय
जिंक (जस्ता) जिंक सल्फेट 1 किलोग्राम 1-2 (15 दिन के अन्तराल पर मई-जून
बेरोन बोरिक एसिड 200 ग्राम –यथोपरि- जून
मैगनीज मैगनीज सल्फेट 800 ग्राम –यथोपरि- जून
कॉपर (तम्बा) कॉपर सल्फेट 600 ग्राम 2 (15 दिन के अन्तराल पर) जून-जुलाई
कैल्शियम कैल्शियम क्लोराइड 1 किलोग्राम –यथोपरि- पहला तुडाई से 45 दिन और दूसरा 30 दिन पहले
नोट: जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट और मैगनीज सल्फेट के साथ आधी मात्रा में अनबूझा चूना अवश्य मिला लें|
सेब के पौधों में फ़लों का झड़ना (Fruit Dropping)
फ़्रुट ड्रापिंग सेब के बागवानों के लिये एक गंभीर समस्या बन चुका है | सेटिंग के बाद जैसे ही ड्रापिंग शुरु होती है,
1). प्रथम ड्राप : कुछ फ़लों में परागण और निषेचन (Pollination and Fertilisation) प्रक्रिया पूरी न होने के कारण पंखुड़ीपात अवस्था (Petal Fall Stage) के बाद यह ड्राप हो जाता है | इसमें फ़ल की डंडी पीली पड़ना शुरु हो जाती है और वह गिर जाता है | शुरु में ऐसा प्रतीत होता है मानो सेटिंग बंपर हुई हो परन्तु इसे False Pollination कहा जाता है | फ़ुलों के खिलने के पांच सप्ताह के तक यदि पौधे को अच्छी धूप न मिले तो भी ड्रापिंग भारी मात्रा में होती है | हालांकी पांच सप्ताह के बाद फ़िर चाहे छाया क्यों न हो जाये इससे फ़्रुट ड्रापिंग में फ़र्क नहीं पड़ता |
इस ड्राप ने निज़ात पाने के लिये बागीचे में कम से कम 33% तीन प्रकार की परागण किस्में लगायें | मधुमक्खियों के बक्सों को बागिचों में रखें तथा पिंक कली अवस्था पर बोरोन का छिड़काव करें |
2). जून ड्राप : अक्सर बागवान के मन में यह भ्रांति रहती है कि जून ड्राप का मुख्य कारण सुखा पड़ना (Drought) है, लेकिन इसका मुख्य कारण पोषक तत्वों के प्रति बढ़ती प्रतिस्पर्धा है | इस अवस्था में जैसे-जैसे फलों का आकार बढ़ना शुरु होता है वैसे- वैसे उनकी पोषक तत्वों की जरुरत भी बढ़ती जाती है | अत: नाईट्रोजन, फोसफोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैगनिशियम, सल्फर के अतिरिक्त सुक्ष्मतत्वों का पौधे की कली फ़ुटने से लेकर तुड़ान से 15 दिन पहले तक की अवस्था तक उपलब्ध करवाना अनिवार्य रहता है | तुड़ान के बाद दिये गये पोषक तत्व पौधे में रिजर्व भोजन का काम करता है |
3). फ़ल तोड़ने से पूर्व की ड्रापिंग : इसका मुख्य कारण जमीन में पर्याप्त मात्रा में नमी न होना व फ़लों का पकना रहता है | जैसे-जैसे फ़ल पकना शुरु होता है वैसे- वैसे इथिलिन नामक हार्मोन बनना शुरु हो जाता है | परिणामस्वरुप फल की डंडी व बीमे के बीच बनी परत टूट जाती है और फ़ल गिर जाता है | इस ड्राप को रोकने के लिये यदि संभव हो तो सिंचाई का प्रयोग करें और मल्चिंग का इस्तेमाल करें | प्लास्टिक मलच शीट के अतिरिक्त घास या फ़िर कायल (Pinus wallichiana) या देवदार की सुखी पतियों की 5-6 इंच मोटी मल्चिंग करें | चीड़ के पतियों की मल्चिंग न करें | इसके इलावा NAA 10 mg/lt (2 gram per drum) की स्प्रे इस ड्रोपिंग के शुरु होने से पहले कर लें | अन्यथा ड्रोपिंग के शुरु होने के बाद की गयी स्प्रे ज्यादा लाभप्रद नहीं रहती |
वैसे तो ड्रोपिंग को 100% तक रोक पाना मुश्किल है लेकिन फ़िर भी कुछ छोटी-छोटी, लेकिन महत्वूर्ण बातों का ध्यान रख कर हम इस पर काफ़ी हद तक काबू पा सकते हैं
फल लगने से फल तुड़ाई की अवस्था
फल लगने से फल बढ़ोतरी तक (मई - जून ) असामयिकी पतझड़ एबं सकबे रोग की रोकथाम के लिए जिनवे (३०० ग्राम ) या डोडिन (७५ ग्राम ) या मेंकोजेब (३०० ग्राम ) या कार्बनडोजिम (५० ग्राम ) को १०० लीटर पानी में घोल कर प्रयोग करे |
सेब एक फल है। सेब का रंग लाल या हरा होता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे मेलस डोमेस्टिका (Melus domestica) कहते हैं। इसका मुख्यतः स्थान मध्य एशिया है। इसके अलावा बाद में यह यूरोप में भी उगाया जाने लगा। सेब के देलिशस बर्ग की किस्मो की खेती 2400 मी. तक या इससे अध्क ऊंचाई तथा उत्तरी ढलान पर 3400 मी तक करना लाभकारी पाया गया है | इस उचाई तथा इससे काम ऊंचाई 1500 मी ऊंचाई पर स्पर किस्मे उगाई जा सकती है |
व्युत्पत्ति
यह भारत के उत्तरी प्रदेश हिमाचल , शिमला जम्मू और कश्मीर में पैदा होता है , आज कल उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों पर इसके खेती की जा रही है , इसमे विटामिन होते हैं।
सेब की उन्नत किस्मे
शीघ्र तैयार होने बाली किस्मे :- अर्ली संवरी , फैनी , बिनोनी , चाबै टीया प्रिंस जे , चाबै टीया प्रिंस अनुपम , टिडमने अर्ली बरसेस्टर , वेन्स देलिशस
मध्य अब्धि :- रेड डेलिशस , रॉयल डेलिशस, गोल्डेन डेलिशस , रिच - ए - रेड, कोर्ट लैंड , रेड गोल्ड मैकिन टॉस रेड़स्पर , गोल्ड स्पार , स्कॉरलेटगाला , आर्गन्सपर , रेडचीफ , रॉयलगाला , रीगल गाला
देर से पकने बाला सेब :- रयमर , बंकिघम , गेनिसिमिथ, अम्ब्री , रेड फुजी
प्रागण कर्ता किस्मे :- अगेती किस्मे को मिला कर लगाने से प्रागण करता किस्मो की आवशयकता नहीं होती है | देलिशस समूह के लिए रेड गोल्ड तथा देलिशस परप्रागण के लिए २०-२५ प्रतिसत लगाना चाहिए
सेब के रोपण की दर एबं बिधि
6 मीटर कतार से कतार तथा 6 मीटर पौधे रोपण की कंटूर बिधि अपनानी चाहिए | इस बिधि में पौधे की कतारे समान ढाल पर बनाई जाती है जो अधिकतर ढाल से समकोण पर होती है | गड्ढे का आकर 1 मीटर लम्बा और 1 ,मीटर चौड़ा तथा 1 मीटर गहरा बनाना चाहिए | गड्ढे की खुदाई तथा भराई नबम्बर - दिसम्बर माह में पूरा क्र लेना चाहिए | 1 गड्ढे में 30 -40 किलो ग्राम अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद तथा क्लोरपायरीफास का चूर्ण (5 %) के 200 ग्राम को अच्छी तरह मिट्टी में मिला कर गड्ढे को खूब दबा कर भरना चाहिए | और समय - समय पर गड्ढे को सिचाई करनी चाहिए | जनवरी - फरवरी महीना में पौधे को रोपाई करे ध्यान रखे की पौधे का जड़ पूरी तरह से जमीन के अंदर होनी चाहिए | पौधा रोपने के तुरंत बाद उसकी सिंचाई करनी चाहिए | पौधे की सिचाई 2 से 4 दिन के अंदर करना जरुरी है |
उर्बरक एबं खाद
तौलिये या थाला में डालना: तौलिये में छोटे पौधों में आधा व बड़े पौधों में एक फुट की तने से दूरी रखते हुए खादें डाल दी जाती है| खादें पौधों की टहनियों के फैलाव के नीचे बिखेर कर डालने के बाद मिट्टी में मिला दी जाती है| मिट्टी में खादें मिलाना अति आवश्यक होता है| जब बहुत ज्यादा नमी हो या बहुत ज्यादा सुखा पड़ रहा हो तो कहें न डालें|
पट्टी में खाद डालना: टहनियों के फैलाव के बाहरी घेरे में 20-25सेंटीमीटर पट्टी में खादें डाल दी जाती है और ऊपर से ढक दिया जाता है| ऐसे विधि वहीँ प्रयोग में लाई जाती है जहाँ ज्यादा बरसात होती है|
छिड़काव विधि: पत्तों के ऊपर छिड़काव किया जाता अहि| ज्यादातर यूरिया खाद को पानी में घोल कर उसे छिड़काव द्वारा पत्तों पर डाला जाता है|
बिखरे कर डालना: पौधों की दो पत्तियों के बीच में पौधों से उचित दूरी बनाते हुए खेत में बिखरे कर खादें डाल दी जाती हैं| हिमाचल प्रदेश में इस विधि को कम ही प्रयोग किया जाता है और उन सेब के बगीचों में प्रयोग किया जाता है जहाँ तौलिये के बदले पूरा खेत ही साफ रखा हो|
खाद व उर्वरकों डालने की मात्रा |
उर्बरक का प्रयोग मिट्टी के आधार पर करनी चाहिए इसके अभाब में 10 किलो सड़ी हुयी गोबर खाद।, 70 ग्राम नाइट्रोजन , 35 ग्राम फास्फोरस तथा 70 ग्राम पोटास प्रति बर्ष आयु के अनुशार देना चाहिए
खादें डालने की मुख्य विधियाँ
सेब की बागवानी में निम्नलिखित सारणी सुझाई गई है:
पौधे की आयु गोबर की खाद (कि.ग्रा.) कैन खाद (ग्राम) सुपर फास्फेट (ग्राम) म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (ग्राम)
1 10 280 220 120
2 20 560 440 240
3 30 840 660 360
4 40 1120 880 480
5 50 1400 1100 600
6 60 1680 1320 720
7 70 1960 1540 840
8 80 2240 1760 960
9 90 2520 1980 1080
10 और ऊपर 100 2800 2200 1200
अफलित वर्ष 100 2000 1560 665
ध्यान देने योग्य विशेष सुझाव
1 खादें व उर्वरक पहले सुझाई गई विधियों द्वारा डालें| उन जगहों में जहाँ पोषक तत्वों की अधिकता हो वहां ऊपर दी गई मात्रा का आधा ही डालें|
2 जिस वर्ष फसल न लगी हो उस वर्ष सारणी में अफलित वर्ष की दी गई मात्रा ही डालें|
3 सभी गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, पोटाश को दिसम्बर-जनवरी में डाल दें क्योंकि इनको उपलब्ध होने की दशा में पहुँचने में एक महीने से ऊपर समय लगता है या फिर कलियाँ फूटने से एक महीना पहले डालें|
4 नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने से 2 या 3 सप्ताह पहले डालें| यह समय मार्च तीसरे सप्ताह से मार्च अंत का चलता है|
5 नत्रजन की बाकी मात्रा पहली डाली गई मात्रा के एक महीने बाद डालें|
6 जहाँ लगातार सूखे की सम्भावना बनी रहती हो वहां पर सारी खादें के ही समय में डाल दें|
7 यदि किसी कारणवश नत्रजन की दूसरी मात्रा नहीं डाल सकें तब एक किलोग्राम यूरिया का प्रति ड्रम की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|
8 फास्फोरस की खाद का प्रयोग हो वर्ष में एक बार ही करें|
9 यदि फल भंडारण करना हो तो फल तोड़ने से 30 और 45 दिन पहले कैल्शियम क्लोराइड एक किलोग्राम प्रति ड्रम (200 लीटर) के घोल का स्प्रे करें|
10 जिस वर्ष बहुत ज्यादा फसल लगी हो, तब 2 किलिग्राम यूरिया का छिड़काव (200 लीटर पानी में) फल तोड़ने के बाद करें|
11 पत्ते गिरने से पहले 8-10 किलिग्राम यूरिया प्रति 200 लीटर पानी में घोलने के बाद छिड़काव करें|
12 छिड़काव सुबह व शाम को ही करें, तेज धूप या वर्षा की सम्भावना होने पर छिड़काव न करें|
13 पोषक तत्वों का अलग ही छिड़काव करें| पौधों की सुप्प्तावस्था या फिर फूलने के समय कोई पोषक तत्वों का छिड़काव न करें|
14 चूने का पौधे पर छिड़काव न करें और सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव तभी करें जब आपको विशेषज्ञ ने इसकी सलाह दी हो|
15 छिड़काव पौधों में ऊपर से शूरू करें और खादें डालने के बाद उनको मिलाना न भूलें|
सिचाई , निराई - गुड़ाई
पहाड़ी क्षेत्र में सेब की खेती असिंचित दसा में की जाती है | तथा नमी के संरक्षण के उपाय करने चाहिए | तथा सेब के खेत में खर पतबार उगने नहीं देना चाहिए इसके साथ साथ मार्च माह में 10 CM मोटी सुखी घास या पेड़ो की पतियों की तरह प्रत्येक पौधे के थाले में बिछा देनी चाहिए | ये बिधि नमि की सुरक्षा करती है | मार्च से जून माह तक फलो की वृद्धि के समय आवस्य्क्ता अनुसार सिचाई करनी चाहिए |
1. नमी सरंक्षण : मल्चिंग से मृदा की नमी को सरंक्षित किया जा सकता है, पानी के वाष्पीकरण न होने के कारण यह पौधे के लिए लम्बे समय तक उपलब्ध रहता है |
2. तापमान नियंत्रण : मल्चिंग के इस्तेमाल से मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है | जिससे जड़ों का उचित विकास होता है |
3. खरपतवार (Weeds) नियंत्रण : मल्चिंग के रहते सूर्य का प्रकाश खरपतवार के बीजों को नहीं मिल पाता, साथ ही मल्चिंग की परत खरपतवारों को उगने ही नहीं देती |
4. मिट्टी को नरम रखना : तौलिये के जिस भाग में मल्चिंग की जाती है वहां पर मिट्टी नरम/भुरभुरी रहती है, परिणामस्वरूप जड़ों के लिए हवा का आदान प्रदान बना रहता है |
5. मिट्टी में कार्बन तत्व की बढोतरी: घास, पतियों आदि से की गयी मल्च समय के साथ साथ सड़ती जाती है जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में बढोतरी होती है |
6. मिट्टी के अपरदन (Erosion) को रोकना : खासकर ढलानदार क्षेत्रों में जहाँ पानी के तेज बहाव के कारण अक्सर मिट्टी बह कर चली जाती है वहीँ मल्चिंग से इसे बचाया जा सकता है |
मल्चिंग के लिए घास, पत्ते, छोटी छोटी टहनियां, तिनके आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है | इसकी परत की मोटाई लगभग 4-5 इंच होनी चाहिए | इसके आलावा प्लास्टिक की मल्च का इस्तेमाल भी लाभप्रद रहता है | सेब के बगीचों में इस्तेमाल होनी वाली प्लास्टिक मल्च लगभग 200 GSM की होनी चाहिए | दोहरे रंग (सिल्वर और काली) वाली शीट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए | जिसमें चमकीली सतह ऊपर की तरफ और काली सतह नीचे तरफ रखना लाभदायक रहता है | आजकल मार्केट में मल्च मैट भी आ गयी है जिसके प्रयोग मल्चिंग से होने वाले सभी फायदे तो होते ही हैं, साथ में बारिश का पानी भी तौलियों में रिस जाता है
सेब को हानि पहुंचाने बाले कीट
संजोल स्केल
इस किट का शरीर काळा भूरे रंग के स्केल से ढका रहता है | यह किट फ्लो का रस चूस कर फलो को हानि पहुँचती है
नियंत्रण
पौधे की कटाई छटाई के समय (दिसम्बर से जनवरी माह में ) मिथाइल आड़े मेटान या दमेथोएट के। 0.1 % घोल का छिड़ कब करनी चाहिए या 15 दिन के अंदर करनी चाहिए अथवा 3 % ट्री आयल या 4 % डीजल तेल का छिड़काब करे |
उली एफिश
यह किट सफेद रुई जैसे पदार्थ के निचे गुलाबी रंग के महू के रूप में पौधे की जड़े , तना की छाल , कोमल टहनी तथा पतियों का रश चुस्त है | जड़ो में प्रकोप होने पर गांठ बन जाती है
नियंत्रण मिथाइल आड़े मेटान या डाइमेथोएट के ०. १ % घोल का छिड़काब अप्रैल - मई तथा सिप्टेम्बर माह में करनी चाहिए |
टेंट केटर पिलर
तना बेधक किट
किट तनो में छेद कर अंदर घुस कर तने को खा जाते है तथा बाहर निकले बुरादे से इसकी पहचान होती है
नियंत्रण
डाई मेथोएट के ०. ०३ % घोल में ृय डुबो कर तर की सहायता से छेड़ो में ठूस दे |..
सेब में सूक्ष्म व अन्य पोषक तत्वों की कमी दूर करने हेतु छिड़काव
कुछ पौधों पर नाइट्रोजन, जस्ता, सुहागा, मैगनीज व कैल्शियम की कमी हो जाती है| इनमें से मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाशियम को भूमि में डालना चाहिए जबकि सूक्ष्म पोषक तत्वों को छिड़काव द्वारा देना चाहिए| जहाँ नाइट्रोजन का अभाव हो वहां पौधों पर 1% यूरिया (2 किलिग्राम 200लीटर पानी) के छिड़काव द्वारा इस आभाव को पूरा किया जा सकता है| पोषक तत्वों का छिड़काव फूलों की पंखुडियां झड़ जाने के 10-15 दिन के बाद करना चाहिये| सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए नीचे दी गई सारणी के अनुसार छिड़काव करें|
तत्व प्रयुक्त रसायन मात्रा 200 लीटर पानी में छिड़काव अंतराल छिडकाव समय
जिंक (जस्ता) जिंक सल्फेट 1 किलोग्राम 1-2 (15 दिन के अन्तराल पर मई-जून
बेरोन बोरिक एसिड 200 ग्राम –यथोपरि- जून
मैगनीज मैगनीज सल्फेट 800 ग्राम –यथोपरि- जून
कॉपर (तम्बा) कॉपर सल्फेट 600 ग्राम 2 (15 दिन के अन्तराल पर) जून-जुलाई
कैल्शियम कैल्शियम क्लोराइड 1 किलोग्राम –यथोपरि- पहला तुडाई से 45 दिन और दूसरा 30 दिन पहले
नोट: जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट और मैगनीज सल्फेट के साथ आधी मात्रा में अनबूझा चूना अवश्य मिला लें|
सेब के पौधों में फ़लों का झड़ना (Fruit Dropping)
फ़्रुट ड्रापिंग सेब के बागवानों के लिये एक गंभीर समस्या बन चुका है | सेटिंग के बाद जैसे ही ड्रापिंग शुरु होती है,
1). प्रथम ड्राप : कुछ फ़लों में परागण और निषेचन (Pollination and Fertilisation) प्रक्रिया पूरी न होने के कारण पंखुड़ीपात अवस्था (Petal Fall Stage) के बाद यह ड्राप हो जाता है | इसमें फ़ल की डंडी पीली पड़ना शुरु हो जाती है और वह गिर जाता है | शुरु में ऐसा प्रतीत होता है मानो सेटिंग बंपर हुई हो परन्तु इसे False Pollination कहा जाता है | फ़ुलों के खिलने के पांच सप्ताह के तक यदि पौधे को अच्छी धूप न मिले तो भी ड्रापिंग भारी मात्रा में होती है | हालांकी पांच सप्ताह के बाद फ़िर चाहे छाया क्यों न हो जाये इससे फ़्रुट ड्रापिंग में फ़र्क नहीं पड़ता |
इस ड्राप ने निज़ात पाने के लिये बागीचे में कम से कम 33% तीन प्रकार की परागण किस्में लगायें | मधुमक्खियों के बक्सों को बागिचों में रखें तथा पिंक कली अवस्था पर बोरोन का छिड़काव करें |
2). जून ड्राप : अक्सर बागवान के मन में यह भ्रांति रहती है कि जून ड्राप का मुख्य कारण सुखा पड़ना (Drought) है, लेकिन इसका मुख्य कारण पोषक तत्वों के प्रति बढ़ती प्रतिस्पर्धा है | इस अवस्था में जैसे-जैसे फलों का आकार बढ़ना शुरु होता है वैसे- वैसे उनकी पोषक तत्वों की जरुरत भी बढ़ती जाती है | अत: नाईट्रोजन, फोसफोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैगनिशियम, सल्फर के अतिरिक्त सुक्ष्मतत्वों का पौधे की कली फ़ुटने से लेकर तुड़ान से 15 दिन पहले तक की अवस्था तक उपलब्ध करवाना अनिवार्य रहता है | तुड़ान के बाद दिये गये पोषक तत्व पौधे में रिजर्व भोजन का काम करता है |
3). फ़ल तोड़ने से पूर्व की ड्रापिंग : इसका मुख्य कारण जमीन में पर्याप्त मात्रा में नमी न होना व फ़लों का पकना रहता है | जैसे-जैसे फ़ल पकना शुरु होता है वैसे- वैसे इथिलिन नामक हार्मोन बनना शुरु हो जाता है | परिणामस्वरुप फल की डंडी व बीमे के बीच बनी परत टूट जाती है और फ़ल गिर जाता है | इस ड्राप को रोकने के लिये यदि संभव हो तो सिंचाई का प्रयोग करें और मल्चिंग का इस्तेमाल करें | प्लास्टिक मलच शीट के अतिरिक्त घास या फ़िर कायल (Pinus wallichiana) या देवदार की सुखी पतियों की 5-6 इंच मोटी मल्चिंग करें | चीड़ के पतियों की मल्चिंग न करें | इसके इलावा NAA 10 mg/lt (2 gram per drum) की स्प्रे इस ड्रोपिंग के शुरु होने से पहले कर लें | अन्यथा ड्रोपिंग के शुरु होने के बाद की गयी स्प्रे ज्यादा लाभप्रद नहीं रहती |
वैसे तो ड्रोपिंग को 100% तक रोक पाना मुश्किल है लेकिन फ़िर भी कुछ छोटी-छोटी, लेकिन महत्वूर्ण बातों का ध्यान रख कर हम इस पर काफ़ी हद तक काबू पा सकते हैं
फल लगने से फल तुड़ाई की अवस्था
फल लगने से फल बढ़ोतरी तक (मई - जून ) असामयिकी पतझड़ एबं सकबे रोग की रोकथाम के लिए जिनवे (३०० ग्राम ) या डोडिन (७५ ग्राम ) या मेंकोजेब (३०० ग्राम ) या कार्बनडोजिम (५० ग्राम ) को १०० लीटर पानी में घोल कर प्रयोग करे |
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