Tuesday 7 May 2019

नीम के खेती मशरूम बेबी कॉर्न  मशरूम मधुमखी पालन मछली  बकरी पालना

नीम (अजाडिरेकटा इंडिका) वनस्पति जगत के मेलियेसी कुल का तेजी वे बढ़ने वाला एक सदाबहार (शुष्क क्षेत्रों में पतझड़) वृक्ष है| जिसकी उत्पति भारतीय उप – महाद्वीप (भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश व म्यांमार) में हुई हैं| नीम के बीजों से निकला तेल दवाइयों और कीड़ों को रोकने के लिए प्रयोग किया जाता है। नीम से तैयार किये गए उत्पादों का कीट नियंत्रण अनोखा हैं, इस कारण नीम से बनाई गई दवा विश्व में सबसे अच्छी कीट नियंत्रण दवा मानी जाती हैं।
भारत में इसकी लकड़ी सामान बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। नीम की खल खादों के तौर पर भी प्रयोग की जाती है। इसे चिकित्सक वृक्ष के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। यह 100 फुट लंबा सदाबहार वृक्ष है। यह बहार ऋतु में खिलता है और सफेद फूल निकालता है।

मिट्टी और जलवायु
सभी प्रकार की मिट्टियों में नीम की खेती की जा सकती है। यहाँ तक कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है,  6-7.5 पी.एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर पाया गया है। यह समुद्र तटीय क्षेत्रों सहित खराब मिट्टी और कम गुणवत्ता वाली मिट्टी को भी सहन कर लेती है। गर्म और आर्द्र जलवायु फूल के लिए विकास और शुष्क जलवायु के लिए उपयुक्त है। 25 डिग्री से 30 सेल्सियस के तापमान नीम में फूल के लिए उपयुक्त है।



खेत की तैयारी
नीम के पौध की रोपनी में गड्ढा बनाकर किया जाता है। खेत को अच्छी तरह खरपतवार से साफ़-सफाई का 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 सेंमी. आकार का गड्ढा बनाते हैं। गड्ढे के उपरी मिट्टी के साथ 10 किलोग्राम सड़ा हुआ गोबर का खाद मिलाकर गड्ढे को भर देते हैं। इससे खेत पौध के रोपनी हेतु तैयार हो जाता है। जमीन की जोताई करें और सारे कंकड़ों को तोड़ें।

बिजाई का समय
मॉनसून के समय में चार से छः महीने पुराने पनीरी के पौधों को लगाना चाहिए।

फासला
बीजों को 15-20 सैं.मी. के फासले पर बीजें और 1-1.5 सैं.मी. गहरे बीजें और बिजाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

बीज की गहराई
बीजों को 1-1.5 सैं.मी. गहरें बीजें।

बिजाई का ढंग
नीम को सीधा गड्ढा खोद कर और पनीरी लगाकर बीजा जा सकता है।

पनीरी लगाकर बीजना
वृक्ष से पके हुए बीज इकट्ठा करें। छिल्का उतारें और पानी से साफ करें और 3-7 दिनों तक छांव में सुखाएं। 10 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और 15 सैं.मी. लंबे बैड बनाएं। रूड़ी की खाद, रेत और मिट्टी को 1:1:3 की मात्रा में मिलाएं और बैडों पर 1:1:5 सैं.मी. गहरे बीजें और हल्की सिंचाई करें। पनीरी 5-6 दिनों में तैयार हो जाती है फिर प्लास्टिक के लिफाफों में बरेती, चिकनी रेतली और रूड़ी की खाद 1:1:1:1 के अनुपात में डालें और पनीरी को इनमें लगाएं।

खेत में लगाना
4-6 महीने के और 15-20 सैं.मी.  लंबे पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। 30x30x30 सैं.मी. के गड्ढे 5x5 मीटर के फासले पर उखाड़ें और सावन के महीने पनीरी को इनमें लगाएं। वर्षा के अनुसार 2-3 दिन बाद सिंचाई करें। बाद में पानी 7-10 दिनों के बाद  भी दिया जा सकता है।

कलम द्दारा
इसे कलम द्दारा भी आसानी से लगाया जा सकता है।
12-13 महीने पुरानी नर्सरी के पौधो से कलमों को तैयार किया जाता है।

Note बीज की मात्रा : एक गड्ढे में एक बीज बोयें

खाद
खादें (ग्राम/प्रति एकड़)

VAM AZOSPIRILLUM PHOSPHOBACTERIA
22 20 20
50 ग्राम VAM, 20 ग्राम एज़ोसपाईरीलियम और फास्फोबैक्टीरिया जरूर डालें।

खरपतवार नियंत्रण
गोडाई पके हुए बूटों में करें और अपने खेत को साफ और नदीन रहित रखें। यदि नदीन ज्यादा हों तो पौधे का विकास रूक सकता है। नीम की फसल के पूरे विकास के लिए दो साल सिंचाई और गोडाई बहुत जरूरी है। गोडाई से हवा का बहाव और जड़ों का अच्छा विकास होता है।

सिंचाई
फसल के विकास के लिए पहले दो साल तक नदीनों की रोकथाम और सिंचाई करनी बहुत जरूरी है। प्रत्येक गोडाई के बाद सिंचाई करें। यदि पानी की कमी हो तो 10 दिनों के फासले पर अकेले-अकेले बूटे को पानी दें। पौधों के आस-पास पराली बिछाकर पानी बचाया जा सकता हैं।

कीट प्रबंधन
1.हेलोपेलटिस एटोनी (टी मासकिटो बग ) क्षति पहुंचना
यह कीट नीम के पेड़ो को क्षति पहुँचाता है।
नियंत्रण
 0.01-0.2% डाईमेथोएट के छिड़काव द्दारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
एन्डोसल्फान या फोआलोन या मोनोक्रोटोफास 2 मि.ली./ली. पानी के साथ शाम के समय छिड़कना उपयुक्त होता है।


फसल की कटाई
3-5 साल बाद फल बनने शुरू हो जाते हैं। उत्तरी भारत में मार्च-अप्रैल में और जून-जुलाई में फल बनते हैं। वर्षा और मिट्टी की किस्म के अनुसार इसकी पैदावार 30-100 किलो प्रति वृक्ष हो सकता है। भराई के लिए बीजों को छांव में सुखाएं। फफूंदी से बचाने के लिए इसे पटसन की बोरी में भरें। यदि बीज को एक महीने से ज्यादा समय के लिए रखा जाये तो पौधे का विकास रूक सकता है। यदि तुरंत बिजाई करनी हो तो बीज को ना सुखाएं।

फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
सुखाना
फलों को छाया में सुखाया जाता है।
सुखाने के लिए छोटी सुखाने वाली ट्रे का उपयोग किया जाता है।

पैकिंग (Packing)
 इसे वायुरोधी थैलो या टीन के डिब्बों में पैक किया जाना चाहिए।

भडांरण (Storage)
शुष्क स्थानों मे संग्रहीत किया जाना चाहिए।
गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है।
शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है।

परिवहन
सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचाता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लारियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।

अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions)
१.नीम फेस पैक
२.नीम तेल
३.नीम शैम्पू
४.नीम टूथपेस्ट
५.नीम साबुन
६.नीम पाऊडर
७.नीम अगरबत्ती और क्वाइल्स

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