Tuesday 7 May 2019

जीरा की खेती
जीरा का वानस्पतिक नाम है Cuminum cyminum ।  भारत में यह 'जीरा' या हिंदी में 'Zeera' के रूप में जाना जाता है।  देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात व राजस्थान राज्य में उगाया जाता हैl राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 पतिशत जीरा पैदा होता है | यह विभिन्न खाद्य तैयारी स्वादिष्ट बनाने के लिए भारतीय रसोई में इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण मसाला है। जीरा का स्वाद एक वाष्पशील तेल की उपस्थिति की वजह से है। जीरा के स्वदेशी किस्मों में, इस वाष्पशील तेल 2.5-3.5% तक मौजूद है। जीरा बड़े पैमाने पर भी विशेष रूप से मोटापा, पेट दर्द और DYSPESIA जैसी स्थितियों के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है।17.7% प्रोटीन, 23.8% वसा, 35.5% कार्बोहाइड्रेट और 7.7% खनिज इस प्रकार है: जीरा के पोषण का महत्व है।

उत्पादन केन्द्रों
भारत में जीरा मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात जैसे पश्चिमी भारतीय राज्यों में खेती की जाती है।

जलवायु
जीरे की फसल को शुष्क एवं साधारण ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। बीज पकने के समय शुष्क एवं साधारण गर्म मौसम जीरे की फसल के लिए अच्छा रहता है। अधिक वायुमण्डलीय नमी, रोग व कीड़ों को पनपाने में सहायक होती है तथा जीरे की फसल पाला सहन करने में असमर्थ होती है।

भूमि तथा भूमि की तैयारी
जीवांश युक्त दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो जीरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है। बुवाई से पूर्व यह आवश्यक है कि खेत की तैयारी ठीक तरह की जाये इसके लिये खेत को अच्छी तरह से जोत कर उसकी मिट्टी को भुरभुरी अच्छी तरह से सूखा, बलुई मिट्टी बना लिया जाए।

बीजदर व बीजोपचार 
जीरे का 12 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त है। बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बुवाई से पूर्व जीरे के बीज को 2 ग्राम कार्बेण्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिए।

बुवाई का समय व तरीका
जीरे की बुवाई मध्य नवम्बर के आसपास कर देनी चाहिये। बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि से की जाती है। तैयार खेत में पहले क्यारियां बनाते है। उनमें बीजों को एक साथ छिटक कर क्यारियों में लोहे की दंताली इस प्रकार फीरा देनी चाहिए कि बीज के ऊपर मिट्टी की एक हल्की सी परत चढ़ जाये। कतारों में बुवाई के लिए क्यारियों में 25-30 सेन्टीमीटर की दूरी पर लोहे या लकड़ी के बने हुक से लाईने बना देते हैं। बीजों को इन्हीं लाईनों में डालकर दंताली चला दी जाती है।

सिंचाई
पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद की जाती है। इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारियों में पानी का बहाव अधिक तेज न हो। दूसरी सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने पर जब बीज फूलने लगे तब करें। इसके बाद मृदा की संरचना तथा मौसम के अनुसार 15-25 दिन के अन्तराल पर 5 सिंचाईयां पर्याप्त होगी। फव्वारा विधि द्धारा बुवाई समेत पांच सिंचाईयां बुवाई के समय, दस, बीस, पचपन एवं अस्सी दिनों की अवस्था पर करें। फव्वारा तीन घण्टे ही चलायें।

निराई-गुड़ाई 
खरपतवार जीरा की खेती में एक गंभीर समस्या है। प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद व दूसरी 55-60 दिन बाद करनी चाहिये। अतिरिक्त पौधों को हटाने के लिए निराई किया जाना चाहिए। जीरे में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के समय दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन(स्टोम्प ) नामक खरपत वार नाशी की बाजार में उपलब्ध3.3 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहियेI इसके उपरान्त जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहियेI यदि मजदूरों की समस्या हो तो आक्सीडाईजारिल (राफ्ट)नामक खरपतवार-नाशी की बाजार में उपलब्ध 750 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये I

फसल चक्र
एक ही खेत में लगातार तीन वर्षो तक जीरे की फसल नहीं लेनी चाहियेI अन्यथा उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है I अतः उचित फसल चक्र अपनाना बहुत ही आवश्यक हैI बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं -बाजरा- जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र का प्रयोग लिया जा सकता है I

पौध संरक्षण
चैंपा या एफिड
इस किट का सबसे अधिक प्रकोप फूल आने की अवस्था पर होता हैI यह किट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुचांता है इस किट के नियंत्रण हेतु एमिडाक्लोप्रिड की 0.5 लीटर या मैलाथियान 50 ई.सी. की एक लीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से 500  लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये ई आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव करना चहिये i

दीमक
दीमक जीरे के पौधों की जड़ें काटकर फसल को बहुत नुकसान पहुँचाती है। दीमक की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर क्लोरोपाइरीफॉस या क्योनालफॉस की 20 -25 कि.ग्रा.मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से भुरकाव कर देनी चाहियेl खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफॉस कि 2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से सिंचाई के साथ देनी चाहियेl इसके अतिरिक्त क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मि.ली.मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिये l

उखटा रोग
इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैं तथा यह आरम्भिक अवस्था में अधिक होता है लेकिन किसी भी अवस्था में यह रोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता हैl इसकी रोकथाम के लिए बीज को  ट्राइकोडर्मा की 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचरित करके बोना चाहिये l प्रमाणित बीज का प्रयोग करेंl खेत में ग्रीष्म ऋतु में जुताई करनी चाहिये तथा एक ही खेत में लगातार जीरे की फसल नहीं उगानी चाहिएl खेत में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.50 कि.ग्रा.ट्राइकोडर्मा कि 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिये तथा हल्की सिंचाई करनी चाहिये l

झुलसा
यह रोग फसल में फूल आने के पश्चात बादल होने पर लगता है | इस रोग के कारण पौधों का ऊपरी भाग झुक जाता है तथा पतियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते है l इस रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये l

छाछया रोग
इस रोग के कारण पौधे पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता है तथा धीरे -धीरे पूरा पौधा सफ़ेद पाउडर से ढक जाता है एवं बीज नहीं बनते l बीमारी के नियंत्रण हेतु गन्धक का चूर्ण 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से भुरकाव करना चाहिये या एक लीटर कैराथेन प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहियेl जीरे की फसल में कीट एवं बीमारियों के लगने की अधिक संभावना रहती है फसल में बीमारियों एवं कीटों द्वारा सबसे अधिक नुकसान होता है l इस नुकसान से बचने के लिए जीरे में निम्नलिखित तीन छिड़काव करने चाहिये l

1 प्रथम छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन पश्चात मैन्कोजेब 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर करें l
2 दूसरा छिड़काव बुवाई के 45 -50 दिन पश्चात मैन्कोजेब 2 ग्राम,इमिडाक्लोप्रिड 0.50 मि.ली. तथा घुलनशील गंधक 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये l इसके अतिरिक्त यदि किसी बीमारी या कीट का अधिक प्रकोप हो तो उसको नियंत्रण करने के लिए संबंधित रोगनाशक या कीटनाशक का प्रयोग करें l
3 तीसरे छिड़काव में मेक्नोजेब 2ग्राम,एमिडाकलप्रिड1मि.ली. व 2 ग्राम घुलनशील गंधक प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 60-70दिन पश्चात कर देना चाहिये l

व्यावसायिक किस्मों
RZ 19
सीधा उपजी है, गुलाबी फूलों और बोल्ड रोमिल अनाज के साथ जीरा के एक लंबे विविधता; तुषार के रूप में के रूप में अच्छी तरह से wilt करने के लिए सहिष्णु; 5.6 क्विंटल / हेक्टेयर की औसत उपज के साथ 120-140 दिनों में परिपक्व होती है।

RZ 209
विल्ट और तुषार रोगों के लिए प्रतिरोधी गुलाबी फूल और बोल्ड, ग्रे, रोमिल अनाज के साथ जीरा का एक सीधा-बढ़ती विविधता;6.5 क्विंटल / हेक्टेयर की औसत उपज के साथ 140-150 दिनों में परिपक्व होती है।

जीसी 1
एक सीधा-बढ़ रही गुलाबी फूल और बोल्ड, रैखिक, आयताकार, राख भूरे रंग अनाज के साथ जीरा की विविधता; रोग wilt करने के लिए सहिष्णु; 7.0 क्विंटल / हेक्टेयर की औसत उपज के साथ 105-110 दिनों में परिपक्व होती है।

कटाई एवं गहाई
सामान्य रूप से जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाये तथा फसल पूरी पक जाये तो तुरन्त कटाई कर लेनी चाहिय l पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मँड़ाई कर दाना अलग कर लेना चाहियेl दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर साफ बोरों में भंडारित कर लिया जाना चाहिये।

उपज एवं आर्थिक लाभ 
उन्नत विधियों के उपयोग करने पर उपयोग करने पर जीरे की औसत उपज 7-8 कुन्तल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती हैl जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हज़ार रुपये प्रति हेक्टयर का खर्च आता हैI जीरे के दाने का 100 रुपये प्रति किलो भाव रहना पर 40 से 45 हज़ार रुपये प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है I

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