Tuesday 7 May 2019

आम का पौधा

परिचय

आम की खेती लगभग पूरे देश में की जाती हैI यह मनुष्य का बहुत ही प्रीय फल माना जाता है इसमे खटास लिए हुए मिठास पाई जाती है|  जो की अलग अलग प्रजातियों के मुताबिक फलो में कम ज्यादा मिठास पायी जाती है|  कच्चे आम से अमचूर, चटनी, अचार, स्क्वैश, जैम वगैरह बनाए जा सकते हैं.  इससे जैली जैम सीरप चटनी आचार अनेक प्रकार के पेय के रूप में प्रयोग किया जाता हैI आम में विटामिन ए व सी काफी मात्रा में होता है. इस फल से  यह विटामीन ए व् बी का अच्छा श्रोत हैI

जलवायु और भूमि

आम की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि की आवश्यकता होती है?
आम की खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती हैI आम की खेती समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई तक सफलता पूर्वक होती है इसके लिए 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अति उतम होता हैई आम की खेती प्रत्येक किस्म की भूमि में की जा सकती हैI परन्तु अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय तथा जल भराव वाली भूमि में इसे उगाना लाभकारी नहीं है, तथा अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सवोत्तम मानी जाती हैI आम की पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच 5.5-7.5 सही माना जाता है.

प्रजातियाँ

आम के पेड़ लगाने से पहले वो कौन-कौन सी उन्नतशील प्रजातियाँ है?

हमारे देश में उगाई जाने वाली किस्मो में, दशहरी, लगडा, चौसा, फजरी, बाम्बे ग्रीन, अलफांसो, तोतापरी, हिमसागर, किशनभोग, नीलम, सुवर्णरेखा,वनराज आदि प्रमुख उन्नतशील प्रजातियाँ हैI
गड्डों की तैयारी में सावधानियाँ
1. आम्रपाली (दशहरी - नीलम): यह एक संकर किस्म है जिसके पौधे बौने होते हैं एवं यह किस्म सघन बागवानी के लिये उपयुक्त है। इसके फल, आकार में छोटे होते हैं परन्तु प्रतिवर्ष फलते हैं। यह देर से पकने वाली किस्म है जिसमें फल जून के अंत में पकते हैं। सघन बागवानी में इससे 200 - 250 क्विंटल/हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है। 

2. मल्लिका (नीलम - दशहरी): यह एक संकर किस्म है जिसके फल बहुत बड़े (औसत वजन 500 ग्राम) होते हैं। फल का रंग गुलाबी-पीला, गुठली गूदेदार, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। यह नियमित रूप से फलने वाली किस्म है। इस किस्म की भंडारण क्षमता अधिक होती है यह किस्म खाने एवं प्रसंस्करण हेतु उपयुक्त है। एक संपूर्ण विकसित वृक्ष से औसतन 150-200 किलो ग्राम फल प्राप्त होते हैं। 

3. दशहरी: इस किस्म का उत्पत्ति स्थान लखनऊ है एवं यह उत्तर भारत की प्रमुख एवं स्वाद हेतु लोकप्रिय किस्म है। यह मध्य जून से जुलाई तक पकने वाली किस्म है। वृक्ष मध्यम ऊँचाई का फैलने वाला तथा शीर्ष गोलाकार होता है। फल, मध्यम आकार के भार 125-250 ग्राम, रंग पीला, छिल्का पतला, रेशा रहित गूदा एवं गुठली छोटी होती है। फल अच्छी भंडारण क्षमता वाले होते हैं। 

4. लंगड़ाः इसकी उत्पत्ति बनारस के समीप, गाँव में हुई । यह किस्म अंतिम मई से जुलाई के अंत तक फल देती है। वृक्ष फैलने वाली प्रकृति का एवं शीर्ष गोलाकार होता है। फल मध्यम आकार के अंडाकार, रंग हरा, रेशा रहित गूदा एवं छोटी गुठली होती है। फलों की भंडारण क्षमता कम होती है। इसका औसत उत्पादन 150-200 कि.ग्रा. प्रति वृक्ष तक होता है। 

5. सुन्दरजा: यह मध्यम अवधि में पकने वाली किस्म है जिसका उत्पत्ति स्थान रीवा है। फल मध्यम आकार का, वजन 200-250 ग्राम, तिरछा, अंडाकार, रंग पीला, सुगंधित एवं स्वादिष्ट होता है। यह बंधा रोग (मैंगो मालफ़ॉर्मेशन) के लिये अत्याधिक संवदेनशील है। 

6. गाजरिया: यह बैतूल की प्रमुख किस्म है। फल मध्यम से बड़ा, आयताकार, आधार थोड़ा चपटा, शीर्ष गोलाकार, रंग पकने पर पीला-हरा, छिल्के पर सफेद धब्बे, छिल्का मध्यम से मोटा, गूदा रसदार एवं बहुत मीठा होता है। इसमें अनन्नास जैसी सुगंध होती है तथा गूदा गाजर के समान होने के कारण इसे गाजरिया कहते हैं । पकने का समय मध्य मई से अंतिम जून तक होता है। 

7. दहियड़: यह भोपाल की रसदार किस्म है जिसका फल मध्यम आकार, तिरछा, अंडाकार, शीर्ष गोलाकार चैड़ा, रंग पकने पर पीला हरा छिल्का मोटा, गूदा रसदार, मीठा, हल्का पीला रेशा रहित होता है। दही में शक्कर मिश्रित सुगंध के कारण इसे दहियड़ कहते हैं। 

8. बॉम्बेग्रीन: यह जल्दी पकने वाली किस्म है, जिसके फल मई के तीसरे सप्ताह में पक कर तैयार होते हैं। इस किस्म के वृक्ष अधिक शाखायुक्त एवं पत्तियाँ पतली होती हैं। फलों का आकार मध्यम, पकने पर हरे रंग से हरा-पीला, फलों में गूदे की मात्रा अधिक तथा स्वाद एवं मिठास अच्छी होती है। 

9. अलफैंज़ो: यह रत्नागिरी (महाराष्ट्र) की लोकप्रिय किस्म है। फलों का आकार मध्यम, (वजन 250 ग्राम), गूदा नरम, रेशा रहित, रंग नारंगी, स्वाद खट्टा मीठा होता है। इसमें स्पंजी ऊतक नामक विकृति पायी जाती है। इसकी भंडारण क्षमता अच्छी होती है तथा निर्यात के लिये उपयुक्त है। 




आम की फसल तैयार करने के लिए गढ्ढ़ो की तैयारी किस तरह से करे और वृक्षों का रोपण करते समय किस तरह की सावधानी बरते?

वर्षाकाल आम के पेड़ो को लगाने के लिए सारे देश में उपयुक्त माना गया हैI जिन क्षेत्रो में वर्षा आधिक होती है वहां वर्षा के अन्त में आम का बाग लगाना चाहिएI लगभग 50 सेन्टीमीटर व्यास एक मीटर गहरे गढ्ढे मई माह में खोद कर उनमे लगभग 30 से 40 किलो ग्राम प्रति गड्ढा सड़ी गोबर की खाद मिटटी में मिलाकर और 100 किलोग्राम क्लोरोपाइरिफास पावडर बुरककर गड्ढो को भर देना चाहिएI
आम के पौधों को 10 X 10 मीटर की दूरी पर लगायें । किंतु सघन बागवानी में इसे 2.5 से 4 मीटर की दूरी पर लगायें। पौधा लगाने के पूर्व खेत में रेखांकन कर पौधों का स्थान सुनिश्चित कर लें। पौधे लगाने के लिये 1 X 1 X 1 मीटर आकार का गड्ढ़ा खोदें। वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व, जून माह में 20 - 30 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 2 कि.ग्रा. नीम की खली, 1 कि.ग्रा. हड्डी का चूरा अथवा सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 100 ग्राम. मिथाईल पैरामिथियॉन की डस्ट (10 %) या 20 ग्राम थीमेट 10-जी को खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी के साथ मिला कर गड्ढों को अच्छी तरह भर दें। दो-तीन बार बारिश होने के बाद जब मिट्टी दब जाये तब पूर्व चिन्हित स्थान पर खुरपी की सहायता से पौधे की पिंडी के आकार की जगह बनाकर पौधा लगायें। पौधा लगाने के बाद आस-पास की मिट्टी को अच्छी तरह दबाकर एक थाला बना दें एवं हल्की सिंचाई करें।  पौधों की किस्म के अनुसार 10 से 12 मीटर पौध से पौध की दूरी होनी चाहिए, परन्तु आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2.5 मीटर ही होनी चाहिएI

प्रवर्धन या प्रोपोगेशन

आम की फसल में प्रवर्धन या प्रोपोगेशन किन- किन विधियो दवारा किया जा सकता है?
आम के बीजू पौधे तैयार करने के लिए आम की गुठलियों को जून-जुलाई में बुवाई कर दी जाती है आम की प्रवर्धन की विधियों में भेट कलम, विनियर, साफ्टवुड ग्राफ्टिंग, प्रांकुर कलम, तथा बडिंग प्रमुख है, विनियर एवम साफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा अच्छे किस्म के पौधे कम समय में तैयार कर लिए जाते हैI

खाद एवं उर्वरक

आम की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग कब करना चाहिए ?
बागो की दस साल की उम्र तक प्रतिवर्ष उम्र के गुणांक में नाइट्रोजन, पोटाश तथा फास्फोरस प्रत्येक को १०० ग्राम प्रति पेड़ जुलाई में पेड़ के चारो तरफ बनायीं गयी नाली में देनी चाहिएI इसके अतिरिक्त मृदा की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार हेतु 25 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पौधा देना उचित पाया गया हैI जैविक खाद हेतु जुलाई-अगस्त में 250 ग्राम एजोसपाइरिलम को 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ मिलाकर थालो में डालने से उत्पादन में वृदि पाई गयी हैI

सिंचाई का समय

आम की फसल सिचाई हमें कब करनी चाहिए, और किस प्रकार करनी चाहिए?
आम की फसल के लिए बाग़ लगाने के प्रथम वर्ष सिचाई 2-3 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए 2 से 5 वर्ष पर 4-5 के अन्तराल पर आवश्यकताअनुसार करनी चहियेI तथा जब पेड़ो में फल लगने लगे तो दो तीन सिचाई करनी अति आवश्यक हैI आम के बागो में पहली सिचाई फल लगने के पश्चात दूसरी सिचाई फलो का काँच की गोली के बराबर अवस्था में तथा तीसरी सिचाई फलो की पूरी बढवार होने पर करनी चाहिएI सिचाई नालियों द्वारा थालो में ही करनी चाहिए जिससे की पानी की बचत हो सकेI
गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण
आम की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवारो का नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करे?
आम के बाग को साफ रखने के लिए निराई गुड़ाई तथा बागो में वर्ष में दो बार जुताई कर देना चाहिए इससे खरपतवार तथा भूमिगत कीट नष्ट हो जाते है इसके साथ ही साथ समय समय पर घास निकलते रहना चाहिएI
रोग और नियंत्रण

आम की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उसका नियंत्रण हम किस प्रकार करें?

आम के रोगों का प्रबन्धन कई प्रकार से करते हैI जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्ड्यू यह एक बीमारी लगती है इसी प्रकार से खर्रा या दहिया रोग भी लगता है इनसे बचाने के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या ट्राईमार्फ़ 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाईनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिडकाव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिडकाव 10 से 15 दिन बाद तथा तीसरा छिडकाव उसके 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए आम की फसल को एन्थ्रक्नोज फोमा ब्लाइट डाईबैक तथा रेडरस्ट से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तरालपर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर दो छिडकाव तथा अक्टूबर-नवम्वर में 2-3 छिडकाव करना चाहिएI जिससे की हमारे आम के बौर आने में कोइ परेशानी न होI इसी प्रकार से आम में गुम्मा विकार या माल्फर्मेशन भी बीमारी लगती है इसके उपचार के लिए कम प्रकोप वाले आम के बागो में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दे एवम अधिक प्रकोप होने पर एन.ए.ए. 200 पी. पी. एम्. रसायन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी घोलकर छिडकाव करना चहियेI इसके साथ ही साथ आम के बागो में कोयलिया रोग भी लगता हैI जिसको की क
सान भाई सभी आप लोग जानते है इसके नियंत्रण के लिए बोरेक्स या कास्टिक सोडा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिडकाव फल लगने पर तथा दूसरा छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए जिससे की कोयलिया रोग से हमारे फल ख़राब न हो सकेI

कीट और उनका नियंत्रण

कौन - कौन से कीट है, जो आम में लगते है, और उनका नियंत्रण किस प्रकार होना चाहिए?
आम में भुनगा फुदका कीट, गुझिया कीट, आम के छल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट, आम में डासी मक्खी ये कीट हैI आम की फसल को फुदका कीट से बचाव के लिए एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिडकाव फूल खिलने से पहले करते हैI दूसरा छिडकाव जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाये, तब कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर छिडकाव करना चाहिएI इसी प्रकार से आम की फसल को गुझिया कीट से बचाव के लिए दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में आम के तने के चारो ऒर गहरी जुताई करे, तथा क्लोरोपईरीफ़ास चूर्ण 200 ग्राम प्रति पेड़ तने के चारो बुरक दे, यदि कीट पेड़ पर चढ़ गए हो तो एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर जनवरी माह में 2 छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए तथा आम के छल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 0.5 प्रतिशत रसायन के घोल में रूई को भिगोकर तने में किये गए छेद में डालकर छेद बंद कर देना चाहिएI एस प्रकार से ये सुंडी ख़त्म हो जाती हैI आम की डासी मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाईलयूजीनाल ट्रैप का प्रयोग प्लाई लकड़ी के टुकडे को अल्कोहल मिथाईल एवम मैलाथियान के छः अनुपात चार अनुपात एक के अनुपात में घोल में 48 घंटे डुबोने के पश्चात पेड़ पर लटकाए ट्रैप मई के प्रथम सप्ताह में लटका दे तथा ट्रैप को दो माह बाद बदल देI

फल वृक्षों का पोषण: 

आम के पौधों में खाद एवं उर्वरक निम्नानुसार दें : क्र. वर्ष गोबर की खाद (कि.ग्रा.) नीम की खली (कि.गा.) युरिया (ग्रा) सिंगल सुपर फॉस्फेट (ग्रा.) म्युरेट ऑफ पोटाश (ग्रा.) 1. 1 से 3 25 2 200 150 150 2. 4 से 10 40 3 900 800 600 3. 10 वर्ष पश्चात् 75 3 2000 1500 800 नोट: उपरोक्त खाद एवं उर्वरक की मात्रा भूमि परीक्षण के पश्चात् परिणाम के अनुसार परिवर्तित करें। 

पौधे की देखरेख: 

आम के पौधे की देखरेख उसके समुचित फलन एवं पूर्ण उत्पादन हेतु आवश्यक है। पौधों को लगाने के बाद पौधों के पूर्ण रूप से स्थापित होने तक, सिंचाई करें। प्रारंभिक दो तीन वर्षों तक लू से बचाने के लिये सिंचाई करें। ज़मीन से 80 से.मी. की ऊँचाई तक की शाखाओं को निकाल दें, जिससे मुख्य तने का समुचित विकास हो सके। ग्राफ्टिंग के स्थान के नीचे से कोई शाखा नहीं निकलनी चाहिये। ऊपर की 3-4 शाखाओं को बढ़ने दें। बड़े छत्रक वाले घने वृक्षों में, न फलने वाली बीच की शाखाओं को काट दें। फलों को तोड़ने के बाद मंजर के साथ-साथ 2-3 से.मी. टहनियों को काट दें ताकि स्वस्थ्य शाखायें निकलें। अगले मौसम में अच्छा फलन होगा। 


पौध संरक्षण के अंतर्गत कीट तथा रोग नियंत्रण कर पौध सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। यह इस प्रकार हैं – 
कीट नियंत्रण 

आम का फुदका (मैंगो हॉपर): 
इस कीड़े का प्रकोप फरवरी एवं मार्च महीने में होता है। वयस्क कीड़े हल्के भूरे रंग के होते हैं जिनके शरीर पर काली एंव पीली रेखायें होती हैं, सिर बड़ा तथा शरीर पीछे की ओर नुकीला होता है। कीट के शिशु की सफेद तथा लाल आँख होती है जो बाद में पीले रंग की हो जाती हैं। शिशु तथा वयस्क दोनों फूलों एवं पत्तियों का रस चूसते है। परिणामस्वरूप फूल एवं फल झड़ने लग जाते हैं। कीट, चिपचिपा रस उत्सर्जित करें जो पत्तियों पर फैल जाता है एवं काली फफूँदी उत्पन्न हो जाती है। जिससेे पौधे का प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है तथा पौधे कमज़ोर हो जाते हैं। 

नियंत्रण:
 इस कीट की रोकथाम के लिये फॉस्फोमिडॉन का 0.04 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। 

आम का फुंगा (मिली बग): 

कीट के बदन का रंग लाल, सिर, पंख, टाँगे तथा ऐंटिनी काले होते हैं। सिर छोटा, काला, बिना मुखांग वाला होता है। मादा कीट का शरीर कोमल, कुछ लालिमा लिये हुये हल्का भूरा होता है। जो मोम से ढक जाने के कारण सफेद दिखाई देता है। उदर में दस खंड स्पष्ट दिखाई देते हैं। कीट नवम्बर माह में सर्वप्रथम जड़ों के पास हज़ारों की संख्या में पाये जाते हैं। फरवरी माह में कीट के निम्फ नई टहनियों, बौर की मुजरियों से रस चूसते हैं जिससे फूल एवं फल झड़ते हैं। 

नियंत्रण:
कीट के नियंत्रण हेतु दिसम्बर-जनवरी माह में तने के चारों ओर गुड़ाई तथा क्लोरपायरीफाॅस या मिथाईल पैराथियॉन के 200 ग्राम चूर्ण का भुरकाव करें अथवा पाॅलीथिन की चादर से तने पर 20 से.मी. की पट्टी एवं ग्रीस लगाने से भी कीट का नियंत्रण किया जा सकता है। 

दीमक: 
दीमक के प्रकोप से तने पर मिट्टी की एक पर्त चढ़ जाती है। कीट, पौधे की छाल एवं अन्य भागों को खाता है। नियंत्रण: इसके नियंत्रण हेतु थीमेट (10 जी) 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर या मिथाईल पैराथियॉन (10 प्रतिशत) 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर भूमि में मिला कर इसका नियंत्रण करें। नियमित सिंचाई भी इसके नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान देती है। 

रोग नियंत्रण 
कालव्रण (एन्थे्रक्नोज़): 
इस बीमारी का प्रकोप नई पत्तियों, टहनियों, फूलों और फलों पर होता है। शुरू में छोटे भूरे धब्बे बनते हैं और बाद में आपस में मिलकर बड़े-बड़े गोल भूरे धब्बे बनाते हैं। भंडारण के समय फलों पर गोल, भूरे धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में काले भूरे रंग के हो जाते हैं। 

नियंत्रण: 
मानेब 2 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। ब्लाईटॉक्स 3 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी रोग पर काबू पा सकते हैं। फलों को बेनलेट या कार्बैंडाज़िम के घोल में डुबाकर भंडारण करने से भी रोग को रोका जा सकता है। 

बंचीटाप (मैंगो मैलफार्मेशन): 

इस रोग में मंजरी एक गुच्छे के रूप में परिवर्तित हो जाती है जो अधिक कड़े एवं हरे होते हैं इसमें सिर्फ नर फूल ही होते हैं। जिसके कारण इसमें फल नहीं लगते। नियंत्रण हेतु अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में गुच्छों की कटाई कर प्लैनोफिक्स 200 पी.पी.एम. का छिड़काव करें। 

कोलसी (सूटी मोल्ड): 

यह रोग कीड़ो द्वारा निकाले हुये चिपचिपे मीठे पदार्थ के कारण फैलता जा रहा है। इस चिपचिपे पदार्थ पर काली फफूँद की पपड़ी सी बन जाती है। यह काली फफूँद टहनियों को भी ढक लेता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रूकने के कारण पौधों का विकास रूक जाता है। 

नियंत्रण 
वेटासुल (0.2 प्रतिशत), मैटासिड (0.1 प्रतिशत), गम-एकेसिया (0.3 प्रतिशत) के छिड़काव कर रोग को प्रभावी ढंग से रोकें। डायमिथियोएट अथवा मिथाईल डेमेटॉन कीटनाशी का 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें जिससे भुनगे, हॉपर और अन्य कीट नियंत्रित हो जायें। काली पपड़ी हटाने के लिये 2 ग्राम घुलनशील स्टार्च प्रति लीटर पानी में घोल कर पत्तियों पर छिड़काव करें। 



पौध संरक्षण 

पौध संरक्षण के अंतर्गत कीट तथा रोग नियंत्रण कर पौध सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। यह इस प्रकार हैं – 
कीट नियंत्रण 

आम का फुदका (मैंगो हॉपर): 
इस कीड़े का प्रकोप फरवरी एवं मार्च महीने में होता है। वयस्क कीड़े हल्के भूरे रंग के होते हैं जिनके शरीर पर काली एंव पीली रेखायें होती हैं, सिर बड़ा तथा शरीर पीछे की ओर नुकीला होता है। कीट के शिशु की सफेद तथा लाल आँख होती है जो बाद में पीले रंग की हो जाती हैं। शिशु तथा वयस्क दोनों फूलों एवं पत्तियों का रस चूसते है। परिणामस्वरूप फूल एवं फल झड़ने लग जाते हैं। कीट, चिपचिपा रस उत्सर्जित करें जो पत्तियों पर फैल जाता है एवं काली फफूँदी उत्पन्न हो जाती है। जिससेे पौधे का प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है तथा पौधे कमज़ोर हो जाते हैं। 

नियंत्रण:
 इस कीट की रोकथाम के लिये फॉस्फोमिडॉन का 0.04 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। 

आम का फुंगा (मिली बग): 

कीट के बदन का रंग लाल, सिर, पंख, टाँगे तथा ऐंटिनी काले होते हैं। सिर छोटा, काला, बिना मुखांग वाला होता है। मादा कीट का शरीर कोमल, कुछ लालिमा लिये हुये हल्का भूरा होता है। जो मोम से ढक जाने के कारण सफेद दिखाई देता है। उदर में दस खंड स्पष्ट दिखाई देते हैं। कीट नवम्बर माह में सर्वप्रथम जड़ों के पास हज़ारों की संख्या में पाये जाते हैं। फरवरी माह में कीट के निम्फ नई टहनियों, बौर की मुजरियों से रस चूसते हैं जिससे फूल एवं फल झड़ते हैं। 

फलों को तोड़ने का समय

आम की फसल कीखतरा नहीं रहता हैI तुड़ाई के समय फलो को चोट व् खरोच न लगने दें, तथा मिटटी के सम्पर्क से बचायेI आम के तुड़ाई कब करनी चाहिए और किस प्रकार करनी चाहिए?
आम की परिपक्व फलो की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लम्बी डंठल के साथ करनी चाहिए, जिससे फलो पर स्टेम राट बीमारी लगने का  फलो का श्रेणीक्रम उनकी प्रजाति, आकार, भार, रंग व परिपक्ता के आधार पर करना चाहिएI

उपज

आम की फसल से औसतन उपज कितनी प्राप्त कर सकते है?
रोगों एवं कीटो के पूरे प्रबंधन पर प्रति पेड़ लगभग 150 किलोग्राम से 200 किलोग्राम तक उपज प्राप्त हो सकती हैI लेकिन प्रजातियों के आधार पर यह पैदावार अलग-अलग पाई गयी हैI दी गई जानकारी के अन्य संस्करण के लिए कृपया नीचे एग्रोपीडिया पर क्लिक करें

तुड़ाई एंव भंडारण: 

आम किस्म के अनुसार, 85-105 दिनांे में पकते हैं। फलों को काटने पर गूदे का रंग हल्का पीला हो तो फल को पका हुआ समझें। आम के पके फलों की तुड़ाई सुबह के समय इस प्रकार करें ताकि फलों को चोट एवं खरोंच न आये, चोटिल फलों पर फफूँद के प्रकोप से सड़न पैदा हो जाती है। जिससे आर्थिक हानि होती है फलों को तुड़ाई के बाद छायादार स्थानों में रखें। अगर प्रशीतन की सुविधा हो तो इन फलों को प्रशीतित करें जिससे फलों की भंडारण क्षमता बढ़ जाती है। यह सुविधा उपलब्ध न होने पर फलों को ठंडे पानी में धोकर हवादार एवं छाया वाले स्थान में सुखा लें। आम के फलों का श्रेणीकरण फलों के आकार, किस्म, वजन, रंग व परिपक्वता के आधार पर करें। फलों को सुरक्षित भंडारण, परिवहन तथा विपणन के लिये पैक करना अति आवश्यक है। भारत में अधिकतर फल बाँस, अरहर, शहतूत, फालसा आदि की लकडि़यों की बनी टोकरियों में पैक किये जाते हैं।

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