Tuesday 7 May 2019

चीकू की खेती
चीकू या सपोटा सैपोटेसी कुल का पौधा है,भारत में चीकू अमेरिका के उष्ण कटिबन्धीय भाग से लाया गया था। इसका मूल स्थान मैक्सिको और दक्षिण अमेरिका के अन्य देश हैं। चीकू की खेती मुख्यत: भारत में की जाती है। इसे मुख्यत: लेटेक्स के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसका उपयोग खाने के साथ-साथ जैम, व जैली  चूइंग गम तैयार करने के लिए किया जाता है। परन्तु भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में इसकी बड़े क्षेत्रफल में खेती की जाती है।  चीकू की खेती 65 हज़ार एकड़ की भूमि पर की जाती है और इसका वार्षिक उत्पादन 5.4 लाख मीट्रिक टन होता है। इसका फल छोटे आकार का होता है जिसमें 3-5 काले चमकदार बीज होते हैं। चीकू के फलों की त्वचा मोटी व भूरे रंग का होता है। झारखंड, बिहार , उत्तर प्रदेश में चीकू की खेती करने की काफी अच्छी संभावना है। यहाँ अभी चीकू का आयात गुजरात से किया जाता है जो कि ऊँचे दाम पर बिकता है। अत: यदि इसकी खेती झारखंड, बिहार , उत्तर प्रदेश  में शुरू की जाय तो यहाँ के किसानों की अच्छी आमदनी प्राप्त हो सकती है। यहाँ की मिट्टी एवं जलवायु सपोटा के लिए बहुत उपयुक्त है। इस फल को उपजाने के लिये बहुत ज्यादा सिंचाई और अन्य रख-रखाव की जरूरत नहीं है। थोड़ा खाद और बहुत कम पानी इसके पेड़ फलने-फूलने लगते हैं।

मिट्टी जलवायु
इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे निकास वाली गहरी जलोढ़, रेतीली  दोमट और काली मिट्टी चीकू की खेती के लिए उत्तम रहती है। चीकू की खेती के लिए मिट्टी की पी एच 6.0-8.0 उपयुक्त होती है। चिकनी मिट्टी और कैल्शियम की उच्च मात्रा युक्त मिट्टी में इसकी खेती ना करें।  इसकी खेती के लिए गर्म व नम मौसम की आवश्यकता होती है। गर्मी में इसके लिए उचित पानी की व्यवस्था का होनी भी आवश्यक है।

ज़मीन की तैयारी
चीकू की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जोताई करके ज़मीन को समतल करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
काली पत्ताी
यह किस्म 2011 में जारी की गई है। यह अधिक उपज वाली और अच्छी गुणवत्ता वाली किस्म है। इसके फल अंडाकार और कम बीज वाले होते हैं  जैसे 1-4 बीज प्रति फल में होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 166 किलो प्रति वृक्ष होती है।

क्रिकेट बाल
 यह किस्म 2011 में जारी की गई है। यह किस्म Calcutta large नाम से प्रसिद्ध है। इसके फल बड़े गोल आकार के, गुद्दा दानेदार होता है । ये फल ज्यादा मीठे नहीं होते। इसकी औसतन पैदावार 157 किलो प्रति वृक्ष होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

छतरी
यह काली पत्ताी किस्म से कम गुणवत्ता वाली किस्म है। यह अधिक उपज वाली किस्म है।

ढोल दीवानी
यह किस्म अच्छी गुणवत्ता वाली उपज देती है। इसके फल अंडाकार होते हैं।
बारामासी: यह किस्म उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है। इसके फल गोल और मध्यम होते हैं। यह 12 महीने उपज देने वाली किस्म है।

पॉट सपोटा
पौधे गमले में ही फल देना शुरू कर देते हैं। इसके फल छोटे होते हैं जो कि अंडाकार और शिखर से तीखे होते हैं। फल मीठे और सुगंधित होते हैं।
Calcutta Round, Pala, Vavi Valsa, Pilipatti, Murabba, Baharu, and Gandhevi दूसरे राज्यों में उगाने वाली किस्म है।

बिजाई, बिजाई का समय, फासला, बीज की गहराई

बिजाई मुख्यत: फरवरी से मार्च और अगस्त से अक्तूबर महीने में की जाती है। बिजाई के लिए 9 मी. फासले का प्रयोग करें। 1 मीटर गहरे गड्ढे में बिजाई की जाती है।

खाद
Age of tree (in years) FYM (kg/tree) UREA (gm/tree) SSP (gm/tree) MOP (gm/tree)
1-3 years 25 220-660 300-900 75-250
4-6 years 50 880-1300 1240-1860 340-500
7-9 years 75 1550-2000 2200-2800 600-770
10 years and above 100 2200 3100 850


दिसंबर से जनवरी महीने में, अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद, फासफोरस और पोटाशियम की मात्रा डालें। नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर, पहला भाग मार्च के महीने में और बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा जुलाई से अगस्त महीने में डालें।

सिंचाई
यद्यपि चीकू कुछ सीमा तक सूखे की स्थिति को सहन कर लेता है फिर भी अच्छी उपज के लिए सिंचाई आवश्यक है। छोटे पौधों को 6 से 12 दिन के अन्तर पर सर्दियों से गर्मियों तक सिंचाई करते रहें परन्तु वर्षा के समय अधिक दिनों के अन्तर पर आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें

प्रमुख कीट
चीकू का पंतगा इस पंतगें की पहली जोड़ी के पंखों का रंग काला होता है तथा आधे भाग पर पीले रंग के धब्बे होते हैं। इसकी लटों का रंग गहरा गुलाबी होता है तथा पूरे शरीर पर लम्बी काले रंग की धारियां होती है। यह कीट पत्ताों का गुच्छा बनाकर उसमें रहता है। यह पत्तिायों, कलियों एंव नये पौधों में छेद करके नुक्सान पहुंचाता है।
नियंत्रण
 एण्डोसल्फान 35 ई.सी., 1.5 मिलीलीटर या मोनोकोटोफोस 36 एसएस-1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें । आवश्यकतानुसार यह छिड़काव 15 दिन बाद दोहरायें ।

पर्णजीवी (थ्रिप्स) 
यह कीट बहुत छोटे आकार व काले रंग के होते हैं। यह कोमल तथा नई पत्तिायों का हरा पदार्थ खुरचकर खाते हैं जिससे पत्तिायों पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह पत्तिायां पीली पड़कर सूख जाती है।
नियन्त्रण
पौधों पर फॉस्फोमिडॉन 85 एस एल 0.5 मिलीलीटर या डाईमिथोएड 30 ई.सी. 1.5 मिलीलीटर या मोनोकोटोफोस 36 एस.एस. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें ।

पत्ते का जाला
इससे पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। जिससे पत्ते सूख जाते हैं और वृक्ष की टहनियां भी सूख जाती हैं।
नियन्त्रण  नई टहनियां बनने के समय या फलों की तुड़ाई के समय कार्बरील 600 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. या क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।

कली की सुंडी
इसकी सुंडियां  वनस्पति कलियों को खाकर उन्हें नष्ट करती हैं।
नियन्त्रण
क्विनलफॉस 300 मि.ली. या फेम 20 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

बालों वाली सुंडी
ये कीट नई टहनियों और पौधे को अपना भोजन बनाकर नष्ट कर देते हैं।
नियन्त्रण
क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

प्रमुख व्याधियाँ
इस रोग के प्रकोप से पत्तिायों पर छोटे-छोटे भूरे धब्बे बन जाते हैं। उनकी वजब से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
नियन्त्रण
 मैन्कोजेब या जाईनेब 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से, का छिड़काव 15 दिव बाद दोहरायें ।

पत्तों पर धब्बा रोग
गहरे जामुनी भूरे रंग के धब्बे जो कि मध्य मे से सफेद रंग के होते हैं देखे जा सकते हैं। फल के तने और पंखुड़ियों पर लंबे धब्बे देखे जा सकते हैं।
नियन्त्रण
कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

पुष्पन एवं फलन
वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार चीकू के पौधों में दो वर्षो के बाद फूल एवं फल आना आरम्भ हो जाता है। इसमें फल साल में दो बार आता है, पहला फरवरी से जून तक और दूसरा सितम्बर से अक्टूबर तक। फूल लगने से लेकर फल पककर तैयार होने में लगभग चार महीने लग जाते हैं। चीकू में फल गिरने की भी एक गंभीर समस्या है। फल गिरने से रोकने के लिये पुष्पन के समय फूलों पर जिबरेलिक अम्ल के 50 से 100 पी.पी.एम. अथवा फल लगने के तुरन्त बाद प्लैनोफिक्स 4 मिली./ली.पानी के घोल का छिड़काव करने से फलन में वृद्धि एवं फल गिरने में कमी आती है।

उपज:
चीकू का पेड़ तीन चार साल बाद फल देने लग जाता है। जो फल गर्मी में तैयार होते हैं वह अधिक मीठे होते है। विकसित पेड़ से 150 से 200 किलों ग्राम फल प्राप्त हो जाते हैं।

फसल की कटाई
तुड़ाई जुलाई - सितंबर महीने में की जाती है। पर एक बात को ध्यान में रखना चाहिए कि अनपके फलों की तुड़ाई ना करें। तुड़ाई मुख्यत: फलों के हल्के संतरी या आलू रंग के और फलों में कम चिपचिपा दुधिया रंग होने पर की जाती है और इनको वृक्ष से तोड़ना आसान होता है। मुख्यत: 5-10 वर्ष का वृक्ष 250-1000 फल देता है।

कटाई के बाद
तुड़ाई के बाद, छंटाई की जाती है और 7-8 दिनों के लिए 20डिगरी सेल्सियस पर स्टोर किया जाता है। इसकी स्टोरेज क्षमता को 21-25 दिनों तक बढ़ाने के लिए इथाइलिन को निकालकर 5-10 प्रतिशत कार्बनडाईऑक्साइड को डाला जाता है। भंडारण के बाद लकड़ी के बक्सों में पैकिंग की जाती है और लंबी दूरी वाले स्थानों पर भेजा जाता है।

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