Tuesday 7 May 2019

अजवाइन के खेती
अजवाइन ( थाईमा वलगेरिस लिना ) लैमिऐसी कुल का सदस्य है । अजवायन एक झाड़ीनुमा वनस्पति है जो मसाला एवं औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है, जो हमारे सेहत के लिए फायदेमंद है। यह एक महत्वपूर्ण सगंधीय जड़ी है जिसे पत्तियों और फूलों के लिए उगाया जाता है । इसका मुख्य उपयोग मछली और मांस वाले भोज्य पदार्थों में होता है ।  इसकी पत्तियों से ष्थाईम तेलष् प्राप्त होता है जिसे पूरे विश्व में औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । यह थाईल तेल दस्तावर, एन्टीसैपटिक, कृमिनाशक, कफनाशक होता है । इसका उपयोग सांस की बीमारियों जैसे अस्थमा और ब्रोनकाइटिस में होता है । यह तेल किडनी ( गुर्दे ), आँख और खून को साफ करता है इसके अलावा इन्हें इत्र एवं शराब बनाने वाले उद्योग में भी किया जाता है । अजवाइन की फसल लगभग 140-150 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
इसके बीजों में 2.5-4% तक वाष्पशील तेल पाया जाता है।अजवाइन(celery seed )खजीज तत्वों का अच्छा स्रोत हैं। इसमें 8.9% नमी, 15.4% प्रोटीन, 18.1% वसा, 11.9% रेशा, 38.6% कार्बोहाइड्रेट, 7.1% खनिज पदार्थ, 1.42% कैल्शियम एवं 0.30% फास्फोरस होता हैं। प्रति 100 ग्राम अजवाइन से 14. 6मी.ग्रा. लोहा तथा 379 केलोरिज मिलती हैं।

अजवायन उगाने वाले क्षेत्र
महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य्प्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा राजस्थान

जलवायु
उत्तरी अमेरिका, मिस्त्र ईरान, अफगानिस्तान तथा भारत में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य्प्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा राजस्थान के कुछ हिसों में अजवाइन की व्यावसायिक खेती की जाती हैं। अजवाइन की बुवाई के समय मौसम शुष्क होना चाहिए। अत्यधिक गर्म एवं ठंडा मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता हैं। अजवाइन पाले को कुछ स्तर तक सहन कर सकती हैं।

मिट्टी
इस फसल को हल्की परन्तु उपजाऊ और कैलकेरियस मिट्टी चाहिए । लेकिन भारी और गीली मिट्टी में नहीं उगाना चाहिए क्योंकि, इससे पौधे के सूखने का भय रहता है ।

भूमि की तैयारी
बलुई दोमट तथा दोमट मृदा जिसमे जल निकास की अच्छी सुविधा हो तथा जिसका पी एच मान 7.0 के आसपास हो इसकी खेती के लिए उत्तम रहती है ! अगर खेत में नही कम हो तो एक हल्की सिंचाई ( पलेवा) करके खेत की जुताई करनी चाहिए ! दीमक व् अन्य भूमिगत किटो की रोकथाम के लिए बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय मिथाइल पाराथियान 2 % चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला देना चाहिए ! इसके स्थान पर नीम की खली 2.5 से 3 क्विंटल/ हैक्टेयर का भी प्रयोग किया जा सकता है !

बुवाई की विधि (METHOD OF SOWING)
अजवायन की बुवाई दो प्रकार से की जा सकती है ! छिडकाव विधि व् कतार विधि के द्वारा !
1 छिडकाव विधि के द्वारा
इस विधि में अजवायन के बीजो को हाथ के द्वारा पुरे खेत में छिड़का जाता है !

2 कतार विधि
इस विधि में बीजो को कतारों में बोया जाता है !अजवायन के लिए पौधे से पौधे की दुरी तथा कतार से कतार की दुरी निम्नलिखित है !
फसल का नाम लाइन से लाइन की दुरी  (cm) पौधे से पौधे की दुरी (cm)
अजवायन 20-30 40-45

सिंचाई व निंदाई
वर्षा न होने की स्थ्तिि में पहली सिंचाई रोपाई के तुरन्त बाद दी जानी चाहिए । इस फसल को एम माह तक अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है । बाद में साप्ताहिक अन्तराल पर सिंचाई की जा सकती है । फसल में निंदाई समय- समय पर की जाती है । पहाड़ी क्षेत्रों में मलचिंग ठंड से बचने के लिए की जाती है ।

पौध सुरक्षा
मुख्य कीट
दीमक – दीमक के नियंत्रण हेतु 25 किलोग्राम हैप्टाक्लोर, प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलाकर डाल दें और सिंचाई कर दें ।

मुख्य बीमारियां
विल्ट – विल्ट के नियंत्रण हेतु साफ सफाई रखें और 0.2 प्रतिशत बेविस्टीन का छिड़काव करें ।

 कटाई एवं उपज
यह फसल लगभग 180 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है । इसकी पत्तियां और फूलों की कटाई सतह से 15 से.मी. ऊपर की जाती है, कटाई के तुरन्त बाद इन्हें छाया में ड्रायर द्वारा सुखा कर, हवा बंद डिब्बों में रख देना चाहिए, जिससे कि इसकी खुशबू को उड़ने से रोका जा सके । सूखे हुए भाग पर पाउडर बनाकर इकट्ठा कर लेना चाहिए । इस फसल से प्रति हेक्टेयर 1100 से 2200 किलोग्राम सूखी उपज प्राप्त होती है । इसमें लगभग 2 प्रतिशत तेल होता है जिससे आसवन के पश्चात् 22 से 44 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है ।

उर्वरक की जानकारी
10 टन गोबर की सड़ी खाद बुवाई के 1 माह पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। नत्रजन 80 किग्रा, फास्फोरस 60-70 किग्रा, पोटाश 50-60 किग्रा प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है । नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में भली-भांति मिला देना चाहिए। जिससे पौध रोपने तक खाद व उर्वरक मिल सकें तथा शेष नत्रजन की मात्रा को दो बार में खड़ी फसल में छिड़क कर, टोप-ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

रोग एवं उपचार
(i) छाछया  रोग - इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है। इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।आवश्यकता पड़ने पर इसे 15 दिन बाद दोहरायें।
(ii) झुलसा रोग - इस रोग के लक्षण में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनते है एवं अधिक प्रकोप में पत्तियां झुलस जाती हैं। इस रोग की रोकथाम हेतु मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें। जरुरत होने पर दो छिड़काव करें

उन्नत किस्में
1 लाम सलेक्शन-1
135 से 145 दिन में पक कर तैयार होने वाली इस किस्म की औसत उपज 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती हैं।

2 लाम सलेक्शन-2
इसके पौधे झाड़ीदार होते हैं इसकी औसत उपज 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।

3 आर.ए. 1-80
यह किस्म 170-180 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं। दाने बारीक़ परन्तु अधिक सुगंधित होते हैं इसमें 10-11 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती हैं। इस किस्म पर सफेद चूर्णिल आसिता रोग का प्रकोप अधिक रहता हैं।
4 लाभ सेलेक्सन-2 (labh Selection -2)
5 लाभ सलेक्सन-1 (Labh Selection-1)
6 गोल्डन सेल्फ ब्लान्चिंग  (Golden self bloching)
7 यूटाह (Yuhata)
8 स्टैण्डर्ड बेयरर (standard Bearer)
9 जायंट पास्कल (Giant Paskal)

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