Tuesday 7 May 2019

सूअर  पालन
ब्यबसायिक तौर  पर सूअर पालन एक फायदे मंद बिजनेस हो सकता है |  सूअर पालन कम कीमत में कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय हैं,जो युवक पशु पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहते हैं सूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि सूकर का मांस प्राप्त करने के लिए ही पाला जाता हैं । इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो सूकर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है, जिनसे मांस तो अधिक  प्राप्त  होता ही है और दूसरा इस पशु में अन्य पशुओं की तुलना में साधारण आहार को मांस में परिवर्तित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, जिस कारण रोजगार की दृष्टि से यह पशु लाभदायक सिद्ध होता है ।
सूकर का मांस भोजन के रूप में खाने के अलावा इस पशु का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में उपयोगी है। सूकर की चर्बी, पोर्क, त्वचा, बाल और हड्डियों से विलासिता के सामान तैयार किये जाते हैं। इसे अपनाकर बेरोजगार युवक आत्मनिर्भर हो सकते हैं । अपने देश के बेरोजगार ग्रामीण युवकों, अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए तो सूकर पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय साबित हो सकता है, बशर्ते इस व्यवसाय को आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ अपनाया जाये ।यह व्यवसाय किसानों को रोजगार का एक अवसर देता है इसलिए हम कह सकते हैं कि यह किसानों के लिए फायदे का सौदा है लेकिन इसके लिए आवश्यकता है सही जानकारी की।

सुअरों के लिए आवास की व्यवस्था
आवास आधुनिक ढंग से बनाए जायें ताकि साफ सुथरे तथा हवादार हो। भिन्न- भिन्न उम्र के सुअर के लिए अलग – अलग कमरा होना चाहिए। ये इस प्रकार हैं –
क) प्रसूति सुअर आवास
यह कमरा साधारणत: 10 फीट लम्बा और 8 फीट चौड़ा होना चाहिए तथा इस कमरे से लगे इसके दुगुनी क्षेत्रफल का एक खुला स्थान होना चाहिए। बच्चे साधारणत: दो महीने तक माँ के साथ रहते हैं। करीब 4 सप्ताह तक वे माँ के दूध पर रहते हैं। इस की पश्चात वे थोड़ा खाना आरंभ कर देते हैं। अत: एक माह बाद उन्हें बच्चों के लिए बनाया गया इस बात ध्यान रखना चाहिए। ताकि उनकी वृद्धि तेजी से हो सके। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुअरी बच्चे के खाना को न सके। इस तरह कमरे के कोने को तार के छड़ से घेर कर आसानी से बनाया जाता है। जाड़े के दिनों में गर्मी की व्यवस्था बच्चों केलिए आवश्यक है। प्रसूति सुअरी के गृह में दिवार के चारों ओर दिवार से 9 इंच अलग तथा जमीन से 9 इंच ऊपर एक लोहे या काठ की 3 इंच से 4 इंच मोटी बल्ली की रूफ बनी होती है, जिसे गार्ड रेल कहते हैं। छोटे-छोटे सुअर बचे अपनी माँ के शरीर से दब कर अक्सर मरते हैं, जिसके बचाव के लिए यह गार्ड रेल आवश्यक है।
ख) गाभिन सुअरी के लिए आवास
इन घरों ने वैसी सुअरी को रखना चाहिए, जो पाल खा चुकी हो। अन्य सुअरी के बीच रहने से आपस में लड़ने या अन्य कारणों से गाभिन सुअरी को चोट पहुँचने की आंशका रहती है जिससे उनके गर्भ को नुकसान हो सकता है। प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी को आसानी से रखा जा सकता है। प्रत्येक गाभिन सुअरी को बैठने या सोने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए। रहने के कमरे में ही उसके खाने पीने के लिए नाद होना चाहिए तथा उस कमरे से लेगें उसके घूमने के लिए एक खुला स्थान होना चाहिए।
ग) विसूखी सुअरी के  लिए आवास
जो सुअरी पाल नहीं खाई हो या कूंआरी सुअरी को ऐसे मकान में रखा जाना चाहिए। प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी तक रखी जा सकती है। गाभिन सुअरी घर के समान ही इसमें भी खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए स्थान होना चाहिए। प्रत्येक सुअरी के सोने या बैठने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए।
घ) नर सुअर के लिए आवास
नर सुअर जो प्रजनन के काम आता है उन्हें सुअरी से अलग कमरे में रखना चाहिए। प्रत्येक कमरे में केवल एक नर सुअर रखा जाना चाहिए। एक से ज्यादा एक साथ रहने आपस में लड़ने लगते हैं एवं दूसरों का खाना खाने की कोशिश करते हैं नर सुअरों के लिए 10 फीट। रहने के कमरे में X 8 फीट स्थान देना चाहिए। रहने के कमरे में खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए कमरे से लगा खुला स्थान जोना चाहिए। ऐसे नाद का माप 6 X4 X3 X4’ होना चाहिए। ऐसा नाद उपर्युक्त सभी प्रकार के घरों में होना लाभप्रद होगा।
ङ) बढ़ रहे बच्चों के लिए आवास
दो माह के बाद साधारण बच्चे माँ से अलग कर दिए जाते हैं एवं अलग कर पाले जाते हैं। 4 माह के उम्र में नर एवं मादा बच्चों को अलग –अलग कर दिया जाता है। एक उम्र के बच्चों को एक साथ रखना अच्छा होता है। ऐसा करने से बच्चे को समान रूप से आहार मिलता है एवं समान रूप बढ़ते हैं। प्रत्येक बच्चे के लिए औसतन 3X4’ स्थान होना चाहिए तथा रात में उन्हें सावधानी में कमरे में बंद कर देना चाहिए।

सुअरों के लिए आहार
पूरा फायदा उठाने के लिए खाने पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। ऐसा देखा गया है कि पूरे खर्च का 75 प्रतिशत खर्च उसके खाने पर होता है। सुअर के जीवन के प्रत्येक पहलू पर खाद्य संबंधी आवश्यकता अलग- अलग होती है। बढ़ते हुए बच्चों एवं प्रसूति सुअरों को प्रोटीन की अधिक मात्रा आवश्यक होती है अत: उनके भोजन में प्रोटीन की अधिक मात्रा 19 प्रतिशत या उससे अधिक ही रखी जाती है।
खाने में मकई, मूंगफली कि खल्ली, गेंहूं के चोकर, मछली का चूरा, खनिज लवण, विटामिन एवं नमक का मिश्रण दिया जाता है। इसके मिश्रण को प्रारंभिक आहार, बढ़ोतरी आहार प्रजनन आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया – घटाया जाता है।
जंगल में बहुत से फल वृक्ष जैसे – गुलर, महूआ पाये जाते है। गुलर फल पौष्टिक तत्व हैं। इसे सूखाकर रखने पर इसे बाद में भी खिलाया जा सकता है। सखूआ बीज, आम गुठली एवं जामुन का बीज भी सुअर अच्छी तरह खाते हैं। अमरुद एवं केंदू भी सोअर बड़ी चाव से खाते हैं।
माड़ एवं हडिया का सीठा जिसे फेंक देते हैं, सुअरों को अच्छी तरह खिलाया जा सकता है। पहाड़ी से निकले हुए घाट में सुअर जमीन खोद कर कन्द मूल प्राप्त करते हैं।

सूकर की मुख्य प्रजातियाँ
देश में सूकर  की काफी प्रजातियाँ हैं लेकिन मुख्यतः सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस, हल्का सफेद यॉर्कशायर, हैम्पशायर, ड्युरोक, इन्डीजीनियस और घुंघरू अधिक प्रचलित हैं।

1 सफेद यॉर्कशायर सूकर
यह प्रजाति भारत में बहुत अधिक पाई जाती है। हालांकि यह एक विदेशी नस्ल है। इसका रंग सफेद और कहीं-कहीं पर काले धब्बे भी होते हैं। कान मध्यम आकार के होते हैं जबकि चेहरा थोड़ा खड़ा होता है। प्रजनन के मामले में ये बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन 300-400 किग्रा. और मादा सुअर का वजन 230-320 किग्रा के आसपास होता है।

2 लैंडरेस सूकर
इसका रंग सफेद, शारीरिक रूप से लम्बा, कान-नाक-थूथन भी लम्बे होते हैं। प्रजनन के मामले में भी यह बहुत अच्छी प्रजाति है। इसमें यॉर्कशायर के समान ही गुण हैं। इस प्रजाति का नर सुअर 270-360 किग्रा. वजनी होता है जबकि मादा 200 से 320 किग्रा. वजनी होती है।

3 हैम्पशायर सूकर
इस प्रजाति के सुअर मध्यम आकार के होते हैं। शरीर गठीला और रंग काला होता है। मांस का व्यवसाय करने वालों के लिए यह बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलो और मादा सुअर 250 किग्रा. वजनी होती है।

4 घुंघरू सूकर
इस प्रजाति के सूकर  का पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इसकी वृद्धि दर बहुत अच्छी है।सूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूकर  की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं।  इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।
रानी, गुवाहाटी के राष्ट्रीय सूकर अनुसंधान केंद्र पर घुंगरू सूअरों को मानक प्रजनन, आहार उपलब्धता तथा प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है। भविष्य में प्रजनन कार्यक्रमों में उनकी आनुवंशिक सम्भावनाओं पर मूल्यांकन जारी है तथा उत्पादकता और जनन के लिहाज से यह देशी प्रजाति काफी सक्षम मानी जाती है। कुछ चुनिन्दा मादा घुंगरू सूअरों ने तो संस्थान के फार्म में अन्य देशी प्रजाति के सूकर की तुलना में 17 बच्चों को जन्म दिया है।

5 सूकर का विपणन और बाजार
वैसे तो भारत और नेपाल में सुकर की मांस की काफी अच्छी मांग है। हालांकि क्षेत्रीय मांग के अलावा विदेशों में भारत से इसके मांस का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यह ऐसा पशु है जिसके मांस से लेकर चर्बी तक को काम में लिया जाता है। भारत से लगभग 6 लाख टन से ज्यादा सुअर का मांस दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। इसके मांस का प्रयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधनों और कैमिकल के रूप में प्रयोग होता है इसलिए यह व्यवसाय किसानों के लिए लाभकारी है जिससे वो अच्छा लाभ ले सकते हैं

संकर सूकर पालन संबंधी कुछ उपयोगी बातें

देहाती सूकर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है।
विलायती सूकर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है।
विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूकर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूकर के बच्चों से 50-100 रुपये प्रति सूकर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ।
इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस संबंध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त की जा सकती है।
इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है।
एक बड़ा सूकर 3 किलों के लगभग दाना खाता है।
इनके शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते हैं, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए।
साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूकर की नई प्रजाति ब्रिटेन की टैमवर्थ नस्ल के नर तथा देशी सूकरी के संयोग से विकसित की है। यह आदिवासी क्षेत्रों के वातावरण में पालने के लिए विशेष उपयुक्त हैं। इसका रंग काला तथा एक वर्ष में औसत शरीरिक वजन 65 किलोग्राम के लगभग होता है। ग्रामीण वातावरण में नई प्रजाति देसी की तुलना में आर्थिक दृष्टिकोण से चार से पाँच गुणा अधिक लाभकारी है।
सूकर पालन के लिए जरुरी है एक ऐसे स्थान का चुनाव करना जो थोड़ा खुले में हो और आसानी से इन पशुओं के रहने की व्यवस्था हो सके। यदि 20 सुअर  हैं  तो उनके लिए कम से कम 2 वर्ग मीटर प्रति सुअर रहने का स्थान उपलब्ध हो। साथ ही उनके प्रजनन के लिए स्थान होना आवश्यक है।

दिन में ही सूकर से प्रसव
दिन में प्रसव होने से सूकर के बच्चों में मृत्यु दर काफी कम हो जाती है, जिससे सूकर पालकों को काफी फायदा हुआ है।
नर सुअर 8-9 महीनों में पाल देने लायक जो जाते हैं। लेकिन स्वास्थ ध्यान में रखते हुए एक साल के बाद ही इसे प्रजनन के काम में लाना चाहिए। सप्ताह में 3-4 बार इससे प्रजनन काम लेना चाहिए। मादा सुअर भी करीब एक साल में गर्भ धारण करने लायक होती है।

सूकर के लिए दवा और टॉनिक : सूकरों को महीने में एक बार, निम्नांकित दवा अवश्य दें ,ये दवाएं १०० % प्रभावकारी है ,इसकी हम गारंटी देतें हैं ।

ग्रोलिवफोर्ट  (Growlive Forte):
प्रति सूकर महीने में ग्रौलिव फोर्ट दस दिनों तक अवस्य दें । ग्रोलिवफोर्ट(Growlive Forte) के अनेको फायेदें हैं । यह दवा सूकरों के लिवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी लिवर और किडनी से सम्बंधित बीमारी से बचाता है । सूकरों को दस्त और कब्ज की स्थिति में काफी फायदेमंद है और उनका उपचार करता है । सूकरों के खाने की छमता को बढ़ाता है और जो दाना सूकर खातें हैं वो उनके शरीर में तुरंत काम करता है और सूकरों के खाने के खर्चे में कमी आती है । सूकरों के पाचन शक्ति को काफी मजबूत करता है। सूकरों में फ़ीड रूपांतरण अनुपात को बढ़ाता है।सूकरों में दूध बढाने में मदद करता है।ग्रौलिव फोर्ट सूकरों की भूख बढ़ता है और पाचन शक्ति को सुदृढ़ करता है ,जो की सूकरों के वजन को तेजी से बढ़ने में मदद करता है।

अमीनो पॉवर (Amino Power):
प्रति सूकर महीने में अमीनो पॉवर दस दिनों तक अवस्य दें ।अमीनो पॉवर(Amino Power) 46 शक्तिशाली अमीनो एसिड, विटामिन और खनिज का एक अनोखा मिश्रण है और इसके उल्लेखनीय परिणाम है। ये दवा पशु डॉक्टरों द्वारा हमेशा देने की सिफारिश की गई है । यह एक सुपर और शक्तिशाली टॉनिक है जो सूकरों के तेजी से वजन बढ़ने, स्वस्थ विकास रोगों प्रतिरोधी के लिए काफी उपयोगी है ।विटामिन , प्रोटीन और सूअरों में पोषण संबंधी विकारों के सुधार के लिए काफी उपयोगी हैं । किसी भी तनाव और बीमारियों के बाद एक त्वरित ऊर्जा बूस्टर के रूप में काम करता हैं ।सूकरों में दूध बढाने में मदद करता है ।
Note इसके अलावा सूकरों के बाड़ें में नियमित रूप से विराक्लीन का छिड़काव करें ,उनके खाने के नाद को इससे सफाई , इससे फायदा ये होगा की बीमारी और महामारी फैलने का डर काम रहेगा । आप सूकरों के चारे में नियमित रूप से ग्रोवेल का मिक्चर-मिनरल्स Chelated Growmin Forte चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट और Immune Booster (Feed Premix) इम्यून बुस्टर प्री-मिक्स  भी दे सकतें हैं ,इन सभी दवाईयों और टॉनिक देने से फायदा ये होगा की उनका वजन तेजी से बढ़ेगा और आपका खर्च काम और लाभ अधिक होगा ।बस एक बार हमारी सलाह को अपना कर देखें ,आपको फायदा ही फायदा होगा आपके सुकर पालन के ब्यवसाय में।

संक्रामक रोग
क) आक्रांत या संदेहात्मक सुअर की जमात रूप से अलग कर देना चाहिए। वहाँ चारा एवं पानी का उत्तम प्रबंध होना आवश्यक है। इसके बाद पशु चिकित्सा के सलाह पर रोक थाम का उपाय करना चाहिए।
ख) रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को हाथ पैर जन्तूनाशक दवाई से धोकर स्वस्थ पशु के पास जाना चाहिए।
ग) जिस घर में रोगी पशु रहे उसके सफाई नियमित रूप से डी. डी. टी. या फिनाईल से करना चाहिए।
घ) रोगी प्शूओन्न के मलमूत्र में दूषित कीटाणु रहते हैं। अत: गर्म रख या जन्तु नाशक दवा से मलमूत्र में रहने वाले कीटाणु को नष्ट करना चाहिए। अगर कोई पशु संक्रामक रोग से मर जाए तो उसकी लाश को गढ़े में अच्छी तरह गाड़ना चाहिए। गाड़ने के पहले लाश पर तथा गढ़े में चूना एवं ब्लीचिंग पाउडर भर देना चाहिए जिससे रोग न फ़ैल सके।

सुअरों के कुछ संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं
क) सूकर ज्वर
इसमें तेज बुखार, तन्द्र, कै और दस्त का होना, साँस लेने में कठिनाई होना, शरीर पर लाला तथा पीले धब्बे निकाल आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। समय-समय पर टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है।

ख) सूकर चेचक
बुखार होना, सुस्त पड़ जाना, भूख न लगना, तथा कान, गर्दन एवं शरीर के अन्य भागों पर फफोला पड़ जाना, रोगी सुअरों का धीरे धीरे चलना, तथा कभी-कभी उसके बाल खड़े हो जाना बीमारी के मुख्य लक्षण है। टीका लगवाकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है।

ग) खुर मुंह पका
बुखार हो जाना, खुर एवं मुंह में छोटे-छोटे घाव हो जाना, सुअर का लंगड़ा का चलना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। मुंह में छाले पड़ जाने के कारण खाने में तकलीफ होती है तथा सुअर भूख से मर जाता है।
खुर के घावों पर फिनाईल मिला हुआ पानी लगाना चाहिए तथा नीम की पत्ती लगाना लाभदायक होता है। टीका लगवाने से यह बीमारी भी जानवरों के पास नहीं पहुँच पाती है।

घ) एनये पील्ही ज्वर
इस रोग में ज्वर बढ़ जाता है। नाड़ी तेज जो जाती है। हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं। पशु अचानक मर जाता है। पेशाब में भी रक्त आता है। इस रोग में सुअर के गले में सृजन हो जाती का भी टीका होता है।

ङ) एरी सीपलेस
तेज बुखार, खाल पर छाले पड़ना, कान लाल हो जाना तथा दस्त होना इस बीमारी को मुख्य लक्षण हैं। रोगी सुअर को निमानिया का खतरा हमेशा रहता है। रोग निरोधक टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है।

च) यक्ष्मा
रोगी सुअर के किसी अंग में गिल्टी फूल जाती है जो बाद में चलकर फूट जाता है तथा उससे मवाद निकलता है। इसके अलावे रोगी सुअर को बुखार भी आ जाता है। इस सुअर में तपेदिक के लक्षण होने लगते हैं। उन्हें मार डाल जाए तथा उसकी लाश में चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर गाड़ किया जाए।

छ) पेचिस
रोगी सुअर सुस्त होकर हर क्षण लेटे रहना चाहता है। उसे थोड़ा सा बुखार हो जाता है तथा तेजी से दुबला होने लगता है। हल्के सा पाच्य भोजन तथा साफ पानी देना अति आवश्यक है। रोगी सुअर को अलग- अलग रखना तथा पेशाब पैखाना तुरंत साफ कर देना अति आवश्यक है।

परजीवी जय एवं पोषाहार संबंधी रोग
1 सुअरों में ढील अधिक पायी जाती है। जिसका इलाज गैमक्सीन के छिड़काव से किया जा सकता है। सुअर के गृह के दरारों एवं दीवारों पर भी इसका छिड़काव करना चाहिए।
2 सुअरों में खौरा नामक बीमारी अधिक होता है जिसके कारण दीवालों में सुअर अपने को रगड़ते रहता है। अत: इसके बचाव के लिए सुअर गृह से सटे, घूमने के स्थान पर एक खम्भा गाड़ कर कोई बोरा इत्यादि लपेटकर उसे गंधक से बने दवा से भिगो कर रख देनी चाहिए। ताकि उसमें सुअर अपने को रगड़े तथा खौरा से मुक्त हो जाए।
3 सुअर के पेट तथा आंत में रहने वाले परोपजीवी जीवों को मारने के लिए प्रत्येक माह पशु चिकित्सक की सलाह से परोपजीवी मारक दवा पिलाना चाहिए। अन्यथा यह परोपजीवी हमारे लाभ में बहुत बड़े बाधक सिद्ध होगें।
4 पक्का फर्श पर रहने वाली सुअरी जब बच्चा देती है तो उसके बच्चे में लौह तत्व की कमी अक्सर पाई जाती है। इस बचाव के लिए प्रत्येक प्रसव गृह के एक कोने में टोकरी साफ मिट्टी में हरा कशिस मिला कर रख देना चाहिए सुअर बच्चे इसे कोड़ कर लौह तत्व चाट सकें।

ध्यान देने योग्य बातें
1. प्रसूति सुअर से बच्चों को उनके जरूरत के अनुसार दूध मिल पाता है या नहीं अगर तो दूध पिलाने की व्यवस्था उनके लिए अलग से करना चाहिए। अन्यथा बच्चे भूख से मर जाएंगें।
2. नवजात बच्चों के नाभि में आयोडीन टिंचर लगा देना चाहिए।
3. जन्म के 2 दिन के बाद बच्चों को इन्फेरोन की सूई लगा देनी चाहिए।
4. सुअरों का निरिक्षण 24 घंटो में कम से कम दो बाद अवश्य करना चाहिए।
5. कमजोर  सुअर के लिए भोजन की अलग व्यवस्था करनी चाहिए।
6. आवास की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
7. प्रत्येक सुअर बच्चा या बड़ा भली भांति खाना खा सके, इसकी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
8. एक बड़े नर सुअर के लिए दिन भर के के लिए 3-4 किलो खाने की व्यवस्था होना चाहिए।
9. एक बार में मादा सुअर 14 से 16 बच्चे दे सकती है अगर उचित व्यवस्था की जाए तो एक मादा सुअरी साल में बार बच्चा दे सकती है।
10. सुकर ज्वर एवं खुर मुंह पका का का टीका वर्ष में 1 बार जरूर लगा लेना चाहिए।
11. बच्चों को अलग करने के 3-4 दिन के अंतर में ही सुअरी गर्भ हो जाती है और यदि सुअरी स्वस्थ हालर में हो तो उससे साल में 2 बार बच्चा लेने के उद्देश्य से तुरंत पाल दिला देना चाहिए।
12. सूअरियों नका औसतन 12, 14 बाट (स्तन) होते हैं। अत: प्रत्येक स्तन को पीला कर इतनी ही संख्या में बच्चों को भली भांति पालपोस सकती है। सूअरियों को आगे की ओर स्तन में दूध का प्रवाह बहुधा पीछे वाले स्तन से अहिक होता है। अत; आगे का स्तन पीने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ होता है। यदि पीछे का स्तन पीने वाला बच्चा कमजोर होता जा रहा है तो यह प्रयास करना चाहिए कि 2-3 दिन तक आगे वाला बात दूध पीने के समय पकड़वा दिया जाय ताकि वह उसे पीना शुरू कर दे।

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