Tuesday 7 May 2019

बकरी पालन
हमारे देश में कई प्रकार की बकरिया पाई जाती हैं और जिसका इस्तेमाल लोग ज्यादा तर दूध और मांस के लिए सदियों से करते आरहे हैं
बकरी पालन प्रायः सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव तथा पालन-पोषण के साथ संभव है। इसके उत्पाद की बिक्री हेतु बाजार सर्वत्र उपलब्ध है। इन्हीं कारणों से पशुधन में बकरी का एक विशेष स्थान है।

बकरी पालन की उपयोगिता
बकरी पालन मुख्य रूप से मांस, दूध एवं रोंआ (पसमीना एवं मोहेर) के लिए किया जा सकता है।बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश राज्य के लिए बकरी पालन मुख्य रूप से मांस उत्पादन हेतु एक अच्छा व्यवसाय का रूप ले सकती है। इस क्षेत्र में पायी जाने वाली बकरियाँ अल्प आयु में वयस्क होकर दो वर्ष में कम से कम 3 बार बच्चों को जन्म देती हैं और एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती हैं। बकरियों से मांस, दूध, खाल एवं रोंआ के अतिरिक्त इसके मल-मूत्र से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। बकरियाँ प्रायः चारागाह पर निर्भर रहती हैं। यह झाड़ियाँ, जंगली घास तथा पेड़ के पत्तों को खाकर हमलोगों के लिए पौष्टिक पदार्थ जैसे मांस एवं दूध उत्पादित करती हैं।

बकरी की नस्लें
हमारे भारत में अलग अलग राज्य में कई अलग नस्ल की बकरे बकरिया पाए जाते हैं जो अपने नस्ल में खास होते हैं |  वैसे तो बकरी की जमुनापारी, बरबरी एवं ब्लेक बंगाल इत्यादि नस्लें होती हैं। लेकिन यहां पर लोग सूखा की स्थिति में देशी एवं बरबरी नस्ल की बकरियों का पालन करते हैं, जिनकी देख-रेख आसानी से हो जाती है।
1) सिरोही (sirohi)
सिरोही नस्ल की बकरिया राजस्थान के सिरोही जिला और गुजरात में पलामपुर में ज्यादा तर पाए जाती हैं बकरी की यह नस्ल लोग दूध और मांस के लिए पालते हैं इस नस्ल के बकरियों के गले के नीचे कलंगी होती जिससे इस नस्ल की पहचान होती हैं बकरी का रंग मुख्य रूप से भूरा होता हैं और हल्के या गहरे भूरे रंग का पैंच होता हैं  बहुत कम बकरिया पूरी तरह से सफेद होते हैं और इस बकरिया के शरीर में काफी बाल होते हैं और इसके बाल 3 cm  हर साल बढ़ता हैं
सिरोही नस्ल की बकरिया साल में दो बार बच्चे देती हैं औसतन,जन्म वजन लगभग 3 kg होता हैं यह बकरी 30% सिंगल बच्चे जन्म देते हैं जबकि 70% मामलों में जुड़वां होता हैं दूध देने के क्षमता इसमें थोड़ी कम होती हैं यह एक दिन में सिर्फ half liter ही दूध देती हैं तथा 120 days में 65 liter दूध देती हैं सिरोही नस्ल की बकरी की यह खास बात हैं की किसी भी मौसम में आराम से पल बढ़ जाता हैं इसको पालने में ज्यादा परेशानी नहीं होती हैं गाँव हो यह सहर सब जगह आराम से पाला जा सकता है

2) जमुनापारी (jamunapari)
यह बकरी का नाम यमुना नदी से जुड़ा हुवा हैं और यह नस्ल की बकरी ज्यादा तर यूपी के जमुना, गंगा और चंबल के क्षेत्र में पाई जाती हैं और भारत की सब से बड़ी बकरी की नस्ल में से एक हैं यह बकरी का सींग का आकार छोटा होता है इसके कान 8 से 9(inch) इंच लम्बा और लटका हुवा होता है इसके पेअर के पीछे काफी लम्बे लम्बे बाल होते है
जमुना पारी नेसल की बकरिया साल में सिर्फ एक बार बच्चे देती है और इसके बच्चे का जन्म वजन 2 से 3 kg तक का होता है यह बकरी 70% सिंगल बच्चे जन्म देते हैं 30% मामलों में जुड़वां होता हैं यह नस्ल की बकरी का पालन मांस और दूध के लिए लोग करते हैं जमनापारी बकरी की दूध देने की छमता भी बहुत अच्छी होती हैं यह रोज 2 से 3(liter) लीटर दूध दे सकती हैं यह नस्ल के बकरी लम्बी और वाइट रंग की होती हैं

3) बर्बरी (barbari)
बर्बरी नस्ल एक डेयरी प्रकार बकरी हैं जो अफ्रीका के सोमाली भूमि में बरबेरा शहर में पैदा हुई हैं यह नस्ल की बकरिया भारत में लाई गयी हैं जो के अब UP के आगरा, मथुरा, इटावा अलीगढ़ और राजस्थान के जिले के आस पास भरी संख्या में पाई जाती हैं बर्बरी बकरिया की शरीर छोटी और ठोस होती हैं यह बकरिया की शरीर के बाल छोटे होते हैं इसके शरीर सफेद के साथ साथ छोटे हल्के भूरे रंग के पैंच होते हैं इसके कान छोटे और हमेशा खड़े रहते हैं
इन बकरियों की प्रजनन क्षमता बहुत ही अच्छी होती हैं ज्यादा तर जुड़वां यह तीन बच्चे को जन्म देती हैं यह साल में दो बार बच्चे देती हैं यह 20% सिंगल बच्चे जन्म देते हैं 65% मामलों में जुड़वां होता हैं और 15% तीन बच्चे देती हैं यह बौना नस्ल की बकरी हैं जिसे हम लोग गाय की तरह अपने घर में भी पाल सकते हैं और इसलिए आमतौर पर शहरों में पाई जाती हैं इन बकरियों को लोग मांस और दूध के लिए इस्तेमाल करते हैं यह बकरी का मांस बहुत ही स्वादिष्ट होता हैं और यह रोज अवसत 1 kg दूध देती हैं

4) बोअर (Boer)
बोअर नस्ल की बकरी 1 9 00 के दशक में मांस उत्पादन के लिए दक्षिण अफ्रीका में विकसित की गई थी “बोअर” शब्द का मतलब अफ्रीका भाषा में किसान होता हैं यह बकरी को दूध और मांस के लिए लोग इस्तेमाल करते हैं यह बकरी पूरी दुनिया में मांस के लिए लोकप्रिय नस्लों में से एक माना जाता हैं यह बकरिया की बढ़ने की छमता बहुत ज्यादा होता हैं यह तीन महीना में 30 से 35 kg की हो जाती हैं और सब से बड़ी बात यह की इसे हर मौसम में ढलने और बिमारी से लड़ने की गज़ब की छमता होती हैं
बोअर बकरी ज्यादा तर सफ़ेद रंग और उसका सर भूरा होता हैं और उनके लम्बे लटकते हुये कान होते हैं इनमें बढ़ने और बच्चा देने की छमता सब बकरियों से अलग होती हैं बोअर बकरा ज्यादा तर प्रजनन के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं यह बकरी बहुत ही ज्यादा महंगी होती हैं क्युकी यह भारत में बहुत ही काम पाई जाती हैं कुछ कुछ state में जैसे की tamil naidu,pune,ajmer.Up,rajasthan में ज्यादा नहीं कुछ पाई जाती हैं बोअर बकरी को अगर आप अपने बकरी पालन के लिए इस्तेमाल करेंगे तो इससे आप ज्यादा से ज्यादा प्रौफिट बहुत की काम समय में कामा सकते हैं

5) सुरति (Surti)
सुरति नस्ल की बकरिया ज्यादा तर गुजरात के इलाके सूरत और बड़ौदा में पाए जाने वाली नस्ल में से एक हैं यह सूरत में ज्यादा पाई जाती हैं इस लिए इनका नाम सुरति रखा गया हैं यह नस्ल की बकरिया छोटी होती हैं इनका आकर ज्यादा बड़ा नहीं होता हैं इनके छोटे छोटे कान और बाल होते हैं यह सफेद रंग की होती हैं और इनका शरीर का बाल चमकीला होता हैं इनकी जनसंख्या भारत में बहुत ही कम हैं गिने चुने कुछ राज्य में पाई जाती हैं
सुरति नस्ल की बकरिया बहुत ही लोकप्रिय हैं क्युकी इनकी दूध देने की छमता बाकी बकरियों से अच्छी होती हैं इन्हें ज्यादातर लोग दूध के लिए पालते हैं यह बकरिया रोज कम से कम 2 kg दूध देती हैं इनकी चलने की छमता बहुत कम होती हैं यह ज्यादा दूर नहीं चल सकती इस लिए लोग इन्हें ज्यादा तर अपने घर में ही पालते हैं यह बकरी को पालना बहुत ही आसान होता हैं यह छोटे जगह में भी पल जाती हैं

6) बीतल (Beetal)
बीतल नस्ल की बकरिया हमारे भारत और कुछ एशियाई मुल्क में बहुत ही लोकप्रिय बकरी की नस्ल में माना जाता हैं बीतल हरयाणा और पंजाब के गुर दासपुर, अमृतसर और फिरोजपुर जिलों में इनके अच्छे नस्ल पाए जाते हैं बीतल बकरिया अन्य रंग के होते हैं मुख्य रूप से काला  (8 0%) या भूरा (20%) होता हैं और इनके शरीर में सफेद यह सुनहरा रंग का छोटे छोटे धब्बे होते हैं यह बकरिया ज्यादा तर देखने में जमुनापरी बकरी जैसी लगती हैं मगर यह जमुनापारी बकरी से अलग होती हैं इनकी शरीर की वजन और उँचाई जमुनापारी बकरी से कम होती हैं इनका कान लम्बे लम्बे और थोड़े चौड़े नीचे के तरफ लटके हुये होते हैं इनका सींग छोटा और पीछे की साइड मुंडा हुवा होता हैं
बीतल बकरिया दूध और मांस के लिए ज्यादा तर इस्तेमाल में लाई जाती हैं इनके दूध देने की छमता बहुत अच्छी होती हैं यह डेली 1.5 से 2 kg तक दूध देती हैं यह बकरिया साल में एक बार बच्चे देती हैं और इनके बच्चे का वजन 2 से 3 kg तक होता हैं यह 41% सिंगल जन्म देते हैं 50% मामलों में जुड़वां होता हैं और 9% तीन बच्चे देती हैं बीतल बकरे दाढ़ीदार होते हैं और बकरिया दाढ़ीदार नहीं होती यह किसी भी मौसम में अन्य बकरी की तुलना में रह सकती हैं यह बकरी पालन व्यवसाय के लिए अच्छी मानी जाती हैं

7) ओस्मनाबादी (Osmanabadi)
ओस्मनाबादी बकरिया की नस्ल ज्यादा तर तैलगंना, कर्नाटक,और महाराष्ट्र के कुछ राजय लातूर, तुलजापुर में पाई जाती हैं इनका रंग 70% कला होता हैं और 30% सफेद यह भूरे रंग के होते हैं इनका शरीर का आकर बड़ा होता हैं और पेअर लम्बे लम्बे होते हैं यह नस्ल की बकरिया 16 से 19 महीने की उमर में बच्चा देती हैं यह साल में 2 से 3 बार बच्चे दे सकती हैं ओस्मनाबादी बकरियों को ज्यादा तर मांस और दूध के लिए इस्तेमाल में लाया जाता हैं इनकी पर्जन्य छमता अच्छी होने के कारन यह बहुत ही लोकप्रिय बकरी की नस्ल में से एक हैं
यह बकरिया एक दिन में कम से कम 1 से 1.5 लीटर दूध देती हैं और यह किसी में मौसम यह सूखे की स्थिति में भी आराम से रह सकती हैं इनका मांस बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं और यह नस्ल की बकरी की मांग लोगो में बहुत ज्यादा हैं यह बकरी की कीमत 4 से 6 हज़ार तक होती हैं अपने बकरी फार्म में पालन कर के आप यह बकरी से ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकते हैं

8) झाकरण (Jhakrana)
झाकरण नस्ल की बकरियां राजस्थान के अलवर जिले के आस पास के गांव में पाया जाता हैं यह नस्ल की बकरियां बड़ी बड़ी होती हैं और यह डेरी फ़ार्मिग के लिए भी होती हैं यह बकरियां काली और शरीर में सफेद धब्बे के साथ कान लम्बे लम्बे होते हैं यह नस्ल की बकरियां बीतल बकरियों से काफी मिलती जुलती लगती हैं मगर इनकी नस्ल बीतल से बड़ी हैं
यह बकरियां का इस्तेमाल लोग दूध उत्पादन के लिए करते हैं यह रोज 2 से 3 लीटर दूध देती हैं और इन बकरियों की मांस और खाल भी बहुत लोकप्रिय हैं यह बकरियां साल में एक बार बच्चे देती हैं इनके बच्चे की वजन 1.5 से 2 kg तक होती हैं और यह ज्यादा तर 70% सिंगल जन्म देते हैं 30% मामलों में जुड़वां हो सकता हैं

9) सोजत (Sojat)
सोजत नस्ल के बकरे राजस्थान के छोटे सहर सोजत में पाई जाती हैं यह पाली मारवाड़ और अजमेर मार्ग के बिच में पड़ता हैं और यही पूरे मार्ग में यह सोजत बकरी पाई जाती हैं 4 बड़े सहर हैं जहां आपको यह नस्ल की बकरी मिलेगी वो हैं Sojat, Phalodi, Pipar, Jodhpur पहले इस नस्ल की बकरी को दूध के लिए लोग इस्तेमाल करते थे मगर आज लोग इसे मांस के लिए भी अपने इस्तेमाल में लाते हैं सोजत बकरी में यह ख़ास बात होता हैं की ज्यादा तर बकरी यह बकरा के सींग नहीं होते हैं यह बकरी का रंग सफेद होता हैं और इनके शरीर में छोटे छोटे काले धब्बे होते हैं इनके कान 8 से 10 इंच तक लम्बे होते हैं
यह नस्ल की बकरिया बकरी फार्म के लिए इस्तेमाल होती हैं जो लोग बकरी पालन करने की सोच रहे हैं उनके लिए यह नस्ल की बकरी बहुत ही लाभदायक होगी यह बहुत ही खाने पीने वाली बकरी हैं और यह 3 month में 25 से 30 kg तक बढ़ सकती हैं यह बकरी 14 month में 2 बार बच्चे देती हैं और 40% सिंगल और 60% जुड़वाँ बच्चे देती हैं और यह बकरे सभी मौसम के लिए उचित होते हैं यह बकरी औसत एक दिन में 1.5 से 2 लीटर दूध देती हैं

10) ब्लैक बंगाल (Black bengal)
ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां ज्यादा तर पश्चिम बंगाल,झारखंड,उड़ीसा,आसाम में पाई जाने वाली नस्ल हैं यह बकरी की मांग यह सब छेत्र में बहुत ज्यादा हैं यह नस्ल की बकरी ज्यादा तर काली भूरी और सफेद होती हैं इनके सिंह 4 से 5 इंच तक बड़ी और आगे की तरफ निकला हुवा होती हैं इन नस्ल की बकरियों का शरीर मोटा और चावड़ी होता हैं इनके छोटे छोटे खड़े हुये कान होते हैं
यह बकरियों की ख़ास बात यह की इनकी प्रजनन क्षमता बहुत ही अच्छी होती हैं यह 2 साल में 3 बार बच्चे देती हैं और कुछ बकरियां तो एक साल में 2 बार बच्चे भी देती हैं और एक बार में कभी 4 बच्चे भी दे देती हैं यह नस्ल की बकरियां 15 महीने के उमर में बच्चे देना शुरु कर देती हैं इनकी प्रजनन क्षमता अच्छी होने के कारन इनकी आबादी बाकी दूसरे नस्ल की बकरी से भी ज्यादा हैं
इन नस्ल के बकरे का मांस भी बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट और इनके खाल सब बकरियों से अच्छे होता हैं लोग इन नस्ल की बकरियों को मांस के लिए अपने इस्तेमाल में लाते हैं बकरी पालन के लिए यह नस्ल की बकरियां बहुत ही ख़ास होती हैं अगर आप बकरी पालन करने की सोच रहे हैं तो यह नस्ल की बकरी और बकरा आप रख सकते हैं क्युकी तह ज्यादा बीमार भी नहीं पड़ती और किसी भी मौसम में यह आसानी से पल सकती हैं इनकी दूध देने की छमता कम होती हैं यह जो दूध देती हैं वो इनके बच्चे के लिए होता हैं

विदेशी बकरियों की प्रमुख नस्लें
1 अल्पाइन
यह स्विटजरलैंड की है। यह मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त है। इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्रों में औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।

2 एंग्लोनुवियन 
यह प्रायः यूरोप के विभिन्न देशों में पायी जाती है। यह मांस तथा दूध दोनों के लिए उपयुक्त है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता 2-3 किलो ग्राम प्रतिदिन है।

3 सानन 
यह स्विटजरलैंड की बकरी है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता अन्य सभी नस्लों से अधिक है। यह औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन अपने गृह क्षेत्रों में देती है।

4 टोगेनवर्ग
टोगेनवर्ग भी स्विटजरलैंड की बकरी है। इसके नर तथा मादा में सींग नहीं होता है। यह औसतन 3 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।


प्रजनन क्षमता
एक बकरी लगभग डेढ़ वर्ष की अवस्था में बच्चा देने की स्थिति में आ जाती है और 6-7 माह में बच्चा देती है। प्रायः एक बकरी एक बार में दो से तीन बच्चा देती है और एक साल में दो बार बच्चा देने से इनकी संख्या में वृद्धि होती है। बच्चे को एक वर्ष तक पालने के बाद ही बेचते हैं।


बकरियों में प्रमुख रोग
देशी बकरियों में मुख्यतः मुंहपका, खुरपका, पेट के कीड़ों के साथ-साथ खुजली की बीमारियाँ होती हैं। ये बीमारियाँ प्रायः बरसात के मौसम में होती हैं।
उपचार
बकरियों में रोग का प्रसार आसानी से और तेजी से होता है। अतः रोग के लक्षण दिखते ही इन्हें तुरंत पशु डाक्टर से दिखाना चाहिए। कभी-कभी देशी उपचार से भी रोग ठीक हो जाते हैं।


बकरी पालन हेतु सावधानियां
बीहड़ क्षेत्र में बकरी पालन करते समय निम्न सावधानियां बरतनी पड़ती हैं-
आबादी क्षेत्र जंगल से सटे होने के कारण जंगली जानवरों का भय बना रहता है, क्योंकि बकरी जिस जगह पर रहती है, वहां उसकी महक आती है और उस महक को सूंघकर जंगली जानवर गांव की तरफ आने लगते हैं।
बकरी के छोटे बच्चों को कुत्तों से बचाकर रखना पड़ता है।
बकरी एक ऐसा जानवर है, जो फ़सलों को अधिक नुकसान पहुँचाती है। इसलिए खेत में फसल होने की स्थिति में विशेष रखवाली करनी पड़ती है। वरना खेत खाने के चक्कर में आपसी दुश्मनी भी बढ़ने लगती है।

बकरी पालन में समस्याएं
बरसात के मौसम में बकरी की देख-भाल करना सबसे कठिन होता है। क्योंकि बकरी गीले स्थान पर बैठती नहीं है और उसी समय इनमें रोग भी बहुत अधिक होता है।
बकरी का दूध पौष्टिक होने के बावजूद उसमें महक आने के कारण कोई उसे खरीदना नहीं चाहता। इसलिए उसका कोई मूल्य नहीं मिल पाता है।
बकरी को रोज़ाना चराने के लिए ले जाना पड़ता है। इसलिए एक व्यक्ति को उसी की देख-रेख के लिए रहना पड़ता है।

फायदे

सूखा प्रभावित क्षेत्र में खेती के साथ आसानी से किया जा सकने वाला यह एक कम लागत का अच्छा व्यवसाय है, जिससे मोटे तौर पर निम्न लाभ होते हैं-
जरूरत के समय बकरियों को बेचकर आसानी से नकद पैसा प्राप्त किया जा सकता है।
इस व्यवसाय को करने के लिए किसी प्रकार के तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं पड़ती।
यह व्यवसाय बहुत तेजी से फैलता है। इसलिए यह व्यवसाय कम लागत में अधिक मुनाफा देना वाला है।
इनके लिए बाजार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध है। अधिकतर व्यवसायी गांव से ही आकर बकरी-बकरे को
खरीदकर ले जाते हैं।

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Mr Niraj Kumar

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