Tuesday 7 May 2019

मछली पालन
मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित जलचर जीव है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पहले मछली पालन उद्योग मछुआरों तक ही सीमित था , किन्तु आज यह सफल और प्रतिष्ठित लघु उद्योग के रूप में स्थापित हो रहा है। मछली हेतु तालाब की तैयारी बरसात के पूर्व ही कर लेना उपयुक्त रहता है। मछलीपालन सभी प्रकार के छोटे-बड़े मौसमी तथाबारहमासी तालाबों में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसे तालाब जिनमें अन्य जलीय वानस्पतिक फसलें जैसे- सिंघाड़ा, कमलगट्‌टा, मुरार (ढ़से ) आदि ली जाती है, वे भी मत्स्यपालन हेतु सर्वथा उपयुक्त होते हैं। मछलीपालन हेतु तालाब में जो खाद, उर्वरक, अन्य खाद्य पदार्थ इत्यादि डाले जाते हैं उनसे तालाब की मिट्‌टी तथा पानी की उर्वरकता बढ़ती है, परिणामस्वरूप फसल की पैदावार भी बढ़ती है। इन वानस्पतिक फसलों के कचरे जो तालाब के पानी में सड़ गल जाते हैं वह पानी व मिट्‌टी को अधिक उपजाऊ बनाता है जिससे मछली के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार प्लैकटान (प्लवक) उत्पन्न होता है। इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं और आपस में पैदावार बढ़ाने मे सहायक होते हैं। धान के खेतों में भी जहां जून जुलाई से अक्टूबर नवंबर तक पर्याप्त पानी भरा रहता है, मछली पालन किया

मछलियों के तालाब तैयार करना:
मछली पालन उद्योग के लिए सबसे महत्वपूर्ण है तालाब। तालाब का चयन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। पानी का स्त्रोत तालाब के समीप हो, ताकि जरूरत पड़ने पर उसे भरा जा सके। उसमें अनावश्यक चीजें जैसे मेंढ़क, केंकड़े आदि न हों। जलीय पौधों से रहित दोमट मिट्टी वाले तालाब का चयन करना चाहिए। तालाब ऐसा होना चाहिए, जिसमें कम से कम 5-6 फुट तक पानी भरा रहे। यदि तालाब में जलीय खरपतवार या पौधे हों तो उन्हें उखाड़ देना चाहिए। ये जलीय पौधे तालाब की मिट्टी और पानी में उपलब्ध भोजन तथा पोषक तत्वों को कम कर देते हैं।
खरपतवार नाशक दवा 2-4 डी का इस्तेमाल करें। इसके बाद पानी में बारीक जाल डाल कर मांसाहारी तथा मिनोज मछलियों को निकाल दें। ये मछलियां पाली जाने वाली मछलियों को चट कर जाती हैं। उसके बाद चूने का छिड़काव करना चाहिए। चूने का यह काम ‘लाइमिंग’ कहलाता है।

मत्स्य बीज संचयन
सामान्यतया सभी मछलियां जुलाई-अगस्त में अंडे देती हैं। ‘कॉमन कार्य’ नामक मछली साल में तीन बार ब्रीडिंग करती है। जीरा, फ्राय और अंगुलिकाएं में से किसी भी बीज को अपनाया जा सकता है। पालने योग्य देशी प्रमुख सफर मछलियों (कतला, रोहू, म्रिगल ) के अलावा कुछ विदेशी प्रजाति की मछलियां (ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प कामन कार्प) भी आजकल बहुतायत में संचय की जाने लगी है। अतः देशी व विदेशी प्रजातियों की मछलियों का बीज मिश्रित मछलीपालन अंतर्गत संचय किया जा सकता है। विदेशी प्रजाति की ये मछलियां देशी प्रमुख सफर मछलियों से कोई  प्रतिस्पर्धा नहीं करती है। सिल्वर कार्प मछली कतला के समान जल के ऊपरी सतह से, ग्रास कार्प रोहू की तरह स्तम्भ से तथा काँमन कार्प मृगल की तरह तालाब के तल से भाजे न ग्रहण करती है। अतः इस समस्त छः प्रजातियोंके मत्स्य बीज संचयन होने पर कतला, सिल्वरकार्प, रोहू, ग्रासकार्प, म्रिगल तथा कामन कार्प को 20:20:15:15:15:15 के अनुपात में संचयन किया जाना चाहिए। सामान्यतः मछलीबीज पाँलीथीन पैकट में पानी भरकर तथा आँक्सीजन हवा डालकर पैक की जाती है।तालाब मेंमत्स्यबीज छोड़ने के पूर्व उक्त पैकेट को थोड़ी देर के लिए तालाब के पानी में रखना चाहिए। तदुपरांत तालाब का कुछ पानी पैकेट के अन्दर प्रवेद्गा कराकर समतापन (एक्लिमेटाइजेद्गान) हेतु वातावरण तैयार कर लेनी चाहिए और तब पैकेट के  छलीबीज को धीरे-धीरे तालाब के पानी में निकलने देना चाहिए। इससे मछली बीज की उत्तर जीविता बढ़ाने में मदद मिलती है।

मछलियों का आहार
मछलियों को रोजाना एक निश्चित समय पर भोजन अवश्य देना चाहिए। गेंदनुमा लोइयां किसी बाल्टी आदि में रख कर पानी में लटका देनी चाहिए। गौरतलब है कि भोजन की मात्रा जानने के लिए अपना हाथ कोहनी तक तालाब के पानी में डालें। यदि हथेली साफ दिखाई नहीं देती तो इसका मतलब है कि भोजन काफी मात्रा में है।

ऊपरी आहार
मछली बीज संचय के उपरात यदि तालाब में मछली का भोजन कम है या मछली की बाढ़ कम है तो चांवल की भूसी (कनकी मिश्रित राईस पालिस) एवं सरसो या मूगं फली की खली लगभग 1800 से 2700 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष के मान से देना चाहिए।
इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर डालना चाहिए जिससे मछली उसे खाने का समय बांध लेती है एवं आहार व्यर्थ नहीं जाता है। उचित होगा कि खाद्य पदार्थ बारे को में भरकर डण्डों के सहारे तालाब में कई जगह बांध दें तथा बारे में में बारीक-बारीक छेद कर दें।यह भी ध्यान रखना आवश्यक  है कि बोरे का अधिकांश भाग पानी के अन्दर डुबा रहे तथा कुछ भाग पानी के ऊपर रहे।
सामान्य परिस्थिति मेंप्रचलित पुराने तरीकों से मछलीपालन करने में जहां 500-600 किलो प्रति हेक्टेयरप्रतिवर्ष का उत्पादन प्राप्त होता है, वहीं आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से मछलीपालन करने से 3000 से 5000 किलो/हेक्टर /वर्ष मत्स्य उत्पादन कर सकते हैं। आंध्रप्रदेश में इसी पद्धति से मछलीपालन कर 7000 किलो/हेक्टर/वर्ष तक उत्पादन लिया जा रहा है।
मछली पालकों को प्रतिमाह जाल चलाकर संचित मछलियों की वृद्धि का निरीक्षण करते रहना चाहिए, जिससे मछलियों कोदिए जाने वाले परिपूरक आहार की मात्रा निर्धारित करने में आसानी होगी तथा संचित मछलियों की वृद्धि दर ज्ञात हो सकेगी। यदि कोई बीमारी दिखे तो फौरन उपचार करना चाहिए।

मछलियों की देखभाल व उपचार:
तालाब में मछलियों के बीज डालने के बाद समय-समय पर मछलियों की देखभाल करते रहना चाहिए। मछलियों को तालाब में छोड़ने से पहले पोटेशियम परमेगनेट के पानी के घोल से स्नान कराके छोड़ा जाए। करीब महीने भर बाद पानी बदल जाना चाहिए। तालाब में बार-बार जाल चलाया जाए। किसी मछली पर कट लगा हो तो उसे तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए। अगर किसी मछली के चकत्ते झड़ने लगें तो उसे सिल्वर नाइट्रेट का घोल लगा दें। ठंड, गैस और सिन्ड्रोम जैसे रोगों का भी ध्यान रखना चाहिए। 

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